Skip to main content

"क़िस्मत ने हमें रोने के लिए दुनिया में अकेला छोड़ दिया...", क्यों आँखें भर आईं सुरैया की इस गीत को फ़िल्माते हुए?


एक गीत सौ कहानियाँ - 43
 

‘क़िस्मत ने हमें रोने के लिए दुनिया में अकेला छोड़ दिया...






'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 43-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'मोतीमहल' के गीत "क़िस्मत ने हमें रोने के लिये दुनिया में अकेला छोड़ दिया" के बारे में।




फ़िल्मों में कलाकार अपना अपना किरदार निभाते हैं, कई रिश्तों को पर्दे पर साकार करना होता है, जैसे कि पति-पत्नी, माँ-बेटा, पिता-पुत्री, भाई-बहन, दो बहनें आदि। पर्दे पर भले दो कलाकारों के बीच का रिश्ता बिल्कुल पक्का दिखाई दे, पर यह तो हक़ीक़त नहीं। शूटिंग ख़त्म होते ही सब अपनी अपनी राह पर आगे बढ़ निकलते हैं। लेकिन कई बार ऐसा भी हुआ कि फ़िल्मों में एक साथ अभिनय करते-करते दो कलाकार असली ज़िन्दगी में भी बहुत क़रीब आ गये हों। जी नहीं, मैं उन कलाकारों की बात नहीं कर रहा जिन्होंने एक दूसरे से शादी कर ली। बल्कि मेरा इशारा है उन दो अभिनेत्रियों की तरफ़ है, जिनका एक साथ अभिनय करते हुए आपस में बहनों जैसा रिश्ता बन गया था। बल्कि यूँ कहें कि वो दो बहनें बन चुकी थीं। ज़िक्र हो रहा है सिंगिंग स्टार सुरैया और प्यारी सी बेबी तबस्सुम का। सन् 1950 की फ़िल्म 'बड़ी बहन' और 1952 की फ़िल्म 'मोती महल' में बेबी तबस्सुम और सुरैया जी ने एक साथ काम किया। इसमें तबस्सुम ने सुरैया की छोटी बहन का रोल निभाया था। और यह दोनो किरदार निभाते-निभाते हक़ीक़त में एक दूसरे से बहनों जैसा प्यार करने लगीं। बेबी तबस्सुम सुरैया को आपा कह कर बुलाने लगी। एक अजीब सा अपनापन दोनो एक दूसरे में महसूस करने लगीं। फ़िल्म 'मोती महल' की कहानी ऐसी थी कि जिसमें तबस्सुम के किरदार को मरना होता है। यह जानकर सुरैया काँप उठीं; उनके हाथ-पाँव ठंडे हो गये यह सोच कर कि यह सीन वो कैसे करेंगी। वो ऐसा हक़ीक़त में तो दूर फ़िल्म की कहानी में भी नहीं सोच सकती थी कि तबस्सुम की बेजान शरीर उनके सामने रखी है। उस पर से फ़िल्म के निर्देशक रवीन्द्र दवे ने सुरैया को बताया कि तबस्सुम के किरदार के मरने वाले सीन में एक गाना रखा गया है जो उन्हें गाना है। और वह गीत था "क़िस्मत ने हमें रोने के लिए दुनिया में अकेला छोड़ दिया, "। सुरैया सोच में पड़ गईं कि 3 मिनट तक तबस्सुम के मरने के इस सीन को वो कैसे झेल पायेंगी?

असद भोपाली व हंसराज बहल
ख़ैर, फ़िल्म की कहानी और निर्देशक के फ़ैसले को ध्यान में रखते हुए सुरैया ने अपनी निजी परेशानी का ज़िक्र किसी से नहीं किया और यह सीन करने के लिए तैयार हो गईं और प्रोफ़ेशन के साथ अन्याय नहीं होने दिया। इस सीन के शूटिंग का दिन आ ही गया। इस ईमोशनल सीन के लिए जब सुरैया जी को ग्लिसरीन दी गई आँखों में डालने के लिए, तो सुरैया जी ने आँखों में ग्लिसरीन डालने से मना कर दिया। बेबी तबस्सुम की तरफ़ देखते हुए उससे कहा, "बस इस गाने में शॉट के समय तुम मेरे सामने रहना। तुम मेरी बहन की तरह हो, तुम्हे देख कर सच में मुझे लगेगा कि मेरी बहन मेरे सामने है और मुझे अपने आप ही रोना आ जायेगा। ग्लिसरीन की कोई ज़रूरत नहीं है"। गाना शुरू हुआ, गीतकार असद भोपाली ने ऐसे दिल को छू लेने वाले बोल लिखे और संगीतकार हंसराज बहल ने ऐसी करुण धुन बनाई कि सुरैया की आँखें भर आईं और सीन बिल्कुल जीवन्त लगने लगा। यह एक ग़ज़लनुमा गीत था जिसके अन्तरों के शेर थे "सुख चैन लुटा दुख दर्द मिला बेचैन है दिल मजबूर है हम, दुनिया ने हमारे जीने का हर एक सहारा तोड़ दिया" और "बेदर्द ख़िज़ाँ की नज़रों से मासूम बहारें बच ना सकीं, लो आज चमन में आँधी ने डाली से कली को तोड़ दिया"। गाने की शूटिंग्‍ के दौरान सुरैया जी के सामने तबस्सुम रहीं और सुरैया जी बस तबस्सुम को देखतीं गईं और ज़ार-ज़ार रोती रहीं। और इस तरह से अपनी छोटी बहन के मरने के सीन को सुरैया ने पर्दे पर निभाया।

सुरैया व तबस्सुम
फ़िल्म 'मोती महल' में ही सुरैया और तबस्सुम पर फ़िल्माया हुआ एक और गाना था जिसके बोल थे "छी छी छी रोना नहीं..."। सुरैया के साथ गीत में आवाज़ थी शमशाद बेग़म की जिन्होंने तबस्सुम के लिए गाया। तबस्सुम जी के अनुसार इस फ़िल्म के बाद वो सुरैया जी के और भी ज़्यादा क़रीब आ गईं। जैसा कि सभी को मालूम है कि सुरैया और देव आनन्द के बीच एक प्रेम का रिश्ता बना था और वो दोनों एक दूसरे से शादी भी करना चाहते थे, पर सुरैया की नानी को इस रिश्ते से ऐतराज़ होने की वजह से सुरैया और देव आनन्द का आपस में मिलना-जुलना तक बन्द हो गया था। ऐसी स्थिति में वह तबस्सुम ही थीं जो इन दोनो के बीच की कड़ी बनी। यानी कि तबस्सुम के माध्यम से ही सुरैया और देव आनन्द एक दूसरे को ख़ैर-ख़बर पहुँचाया करते थे। तबस्सुम जी ने सुरैया जी को बहुत क़रीब से जाना है। देव आनन्द ने तो शादी कर ली, पर सुरैया आजीवन अविवाहित ही रहीं और अपनी नानी के आगे नहीं झुकीं। उन्होंने अपनी नानी को साफ़ कह दिया था कि आपने देव आनन्द के साथ रिश्ते को स्वीकारा नहीं, इसलिए मैं भी किसी और रिश्ते को नहीं स्वीकार करूँगी। सुरैया की यह सफल प्रेम की दास्तान इतनी सशक्त है कि किसी फ़िल्मकार की आज तक हिम्मत नहीं हुई इसे पर्दे पर साकार करने की। सुरैया जी के अन्तिम दिनों में उन्होंने सबसे खु़द को अलग कर लिया था, किसी से वो मिलती नहीं थीं। तब ये तबस्सुम जी ही थीं जो उनके सम्पर्क में रहीं। वो बताती हैं कि सुरैया ने अपने आप को जैसे घर में क़ैद कर लिया हो। किसी के लिए दरवाज़ा तक नहीं खोलती थीं। जब जब तबस्सुम उनसे मिलने जाती तो बाहर रखे दूध के पैकेट और बहुत दिनों के अख़बार उठाकर अन्दर ले जाती। फोन पर अपनी आपा से हुई आख़िरी बातचीत को याद करते हुए तबस्सुम कहती हैं कि उन्होंने जब पूछा सुरैया जी से "आपा आप कैसी हैं?", तो सुरैया जी का जवाब था "कैसी गुज़र रही है सब पूछते हैं मुझसे, कैसे गुज़ारती हूँ कोई नहीं पूछता"। और इस बातचीत के कुछ ही दिनों बाद आपा इस दुनिया से चली गईं। सुरैया जैसी स्टार का अन्त भी बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था। कोई सोच सकता था कि एक ज़माने में सारी दुनिया की चहेती, सारी दुनिया से घिरी रहने वाली सुरैया का आख़िरी वक़्त तनहा बीतेगा? उनके पास कोई नहीं होगा, न उनका कोई अपना, न पराया। सुरैया का इन्तकाल हुआ था साल 2004 में। और इससे 52 साल पहले सुरैया ने पर्दे पर तबस्सुम के किरदार के मरने पर गीत गाया था "क़िस्मत ने हमें रोने के लिए दुनिया में अकेला छोड़ दिया", और 52 साल बाद जब सुरैया हक़ीक़त में इस फ़ानी दुनिया को अल्विदा कह गईं तब जाकर तबस्सुम जी को अहसास हुआ कि 52 साल पहले अपनी बहन के मरने के सीन को करते हुए सुरैया जी को कितनी तक़लीफ़ हुई होगी।

फिल्म - मोती महल - 1952 : 'किस्मत ने हमें रोने के लिए दुनिया में अकेला छोड़ दिया...' : गायिका - सुरैया : गीत - असद भोपाली : संगीत - हंसराज बहल 




अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें cine.paheli@yahoo.com के पते पर। 





अपना मनपसन्द स्तम्भ पढ़ने के लिए दीजिए अपनी राय



नए साल 2015 में शनिवार के नियमित स्तम्भ रूप में आप कौन सा स्तम्भ पढ़ना सबसे ज़्यादा पसन्द करेंगे?

1.  सिने पहेली (फ़िल्म सम्बन्धित पहेलियों की प्रतियोगिता)

2. एक गीत सौ कहानियाँ (फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया से जुड़े दिलचस्प क़िस्से)

3. स्मृतियों के स्वर (रेडियो (विविध भारती) साक्षात्कारों के अंश)

4. बातों बातों में (रेडियो प्लेबैक इण्डिया द्वारा लिये गए फ़िल्म व टीवी कलाकारों के साक्षात्कार)

5. बॉलीवुड विवाद (फ़िल्म जगत के मशहूर विवाद, वितर्क और मनमुटावों पर आधारित श्रृंखला)


अपनी राय नीचे टिप्पणी में अथवा cine.paheli@yahoo.com या radioplaybackindia@live.com पर अवश्य बताएँ।



खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 
 प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र 

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की