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"आप जैसा कोई मेरी ज़िन्दगी में आये...", सच में नाज़िया और बिद्दु ने बात बना दी थी इस गीत में


एक गीत सौ कहानियाँ - 30
 

'आप जैसा कोई मेरी ज़िन्दगी में आये तो बात बन जाये...' 





'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारी ज़िन्दगियों से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कम सुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह साप्ताहिक स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 30वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'क़ुर्बानी' के गीत "आप जैसा कोई मेरी ज़िन्दगी में आये..." के बारे में।




नाज़िया हसन
बिद्दु
डिस्को, यूरो-डिस्को और इण्डि-पॉप के नीव रखवाने और इन्हें लोकप्रियता की बुलन्दियों तक पहुँचाने में जिन कलाकारों का नाम लिया जाता है, उनमें एक महत्वपूर्ण नाम है बिद्दु का। बिद्दु अप्पय्या का जन्म कर्नाटक में हुआ। 60 के दशक में उन्होंने अपना करीयर एक म्युज़िक बैण्ड के रूप में यहीं से शुरु किया पर जल्द ही इंग्लैण्ड स्थानान्तरित हो गए और एक म्युज़िक प्रोड्युसर के रूप में कार्य करने लगे। पाँच दशक लम्बे उनके करीयर में उन्होंने संगीतकार, गीतकार, गायक और निर्माता की भूमिकाएँ निभाईं और बेहद चर्चित व सफल रहे। उनके द्वारा स्वरबद्ध "आप जैसा कोई मेरी ज़िन्दगी में आये..." गीत के बारे में जानने से पहले यह ज़रूरी है कि इस गीत से पहले के उनके संगीत यात्रा पर नज़र डाली जाये। उनके द्वारा निर्मित पहला हिट गीत 1969 में जापानीज़ बैण्ड 'The Tigers' के लिए आया। उसके बाद 1972 में अंग्रेज़ी फ़िल्म 'Embassy' में उनके द्वारा रचा साउण्डट्रैक सराहा गया। इसके बाद उनके शुरुआती डिस्को गीतों ने 70 के दशक के आरम्भिक वर्षों में ब्रिटिश क्लबों में लोकप्रियता हासिल किये। उन्हें पहली बार अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति मिली 1974 में कार्ल डॉगलस द्वारा गाये "Kung Fu Fighting" गीत से जिसे उन्होंने प्रोड्युस और कम्पोज़ किया। दिलचस्प बात है कि उनके इस कम्पोज़िशन का प्रयोग लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल ने 1980 की फ़िल्म 'राम बलराम' में "यार की ख़बर मिल गई" गीत में किया। हैरत में डालने वाली एक और बात यह है कि "Kung Fu Fighting" के बनने के कई वर्ष पहले, 1966 में, तमिल संगीतकार एम. एस. विश्वनाथन ने तमिल फ़िल्म 'नदोदी' के लिए लगभग इसी धुन पर एक गीत कम्पोज़ किया था जिसके बोल थे "उलगम एलुगुम..."। क्या बिद्दु इस गीत से प्रेरित होकर "Kung Fu Fighting" की रचना की थी, कहना मुश्किल है। पर सच यही है कि इस गीत ने बिद्दु को विश्व भर में मशहूर बना दिया। इस गीत के एक करोड़ रेकॉर्ड्स बिके और यह न केवल एक 'all time best-selling singles' के रूप में मशहूर हुआ बल्कि इसने डिस्को संगीत को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यूरोप की तरफ़ से अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार के लिए यह पहला डिस्को गीत था, और इसने बिद्दु को सबसे ज़्यादा चर्चित ग़ैर-अमरीकी डान्स-म्युज़िक प्रोड्युसर की उपाधि दिला दी।

फिर इसके बाद बिद्दु कामयाबी की नई-नई ऊँचाइयाँ चढ़ते चले गए। बहुत सारे रेकॉर्ड्स बने, जिनमें कई बेस्ट-सेलर्स भी रहे। 70 के ही दशक के अन्त में पाश्चात्य डिस्को एशिया में भी लोकप्रिय होने लगा। भारत में बप्पी लाहिड़ी ने डिस्को को लोकप्रिय बनाया, 'डिस्को डान्सर' फ़िल्म इसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण उदाहरण है। पर उस दौरान भारत में ऐसा कोई कलाकार नहीं था जिसे "डिस्को स्टार" कहा जा सके। और यही वजह 1979 में फ़िल्मकार फ़िरोज़ ख़ान को इंगलैण्ड ले गया बिद्दु के पास। फ़िरोज़ ख़ान चाहते थे कि उनकी अगली फ़िल्म 'कुर्बानी' में एक ऐसा गीत रहे जिसे सुनते ही लोग उससे जुड़ जाये और ज़ुबाँ-ज़ुबाँ पर फ़ौरन चढ़ जाये। फ़िल्म के मुख्य संगीतकार के रूप में कल्याणजी-आनन्दजी काम कर रहे थे, पर फ़िरोज़ ख़ान को जिस गीत की तलाश थी वो नहीं मिल पा रही थी। शुरु-शुरु में बिद्दु किसी हिन्दी फ़िल्मी गीत कपोज़ करने के लिए तैयार नहीं थे, पर सोच विचार के बाद फ़िरोज़ ख़ान के इस ऑफ़र को स्वीकारते हुए कहा कि शायद इससे मेरी माँ, जो कि भारत में है, ख़ुश हो जायेगी। बिद्दु को "आप जैसा कोई मेरी ज़िन्दगी में आये" तैयार करने में समय नहीं लगा। इस गीत की धुन उनकी पहली कई धुनों से मेल खाती है। ख़ास कर 1976 की टिना चार्ल्स का हिट गीत "Dance Little Lady Dance" से इस गीत का स्वरूप काफ़ी हद तक मेल खाता है।


नाज़िया और ज़ोहेब
फिरोज खान
इन्हीं दिनो फ़िरोज़ ख़ान के एक दोस्त ने उनकी मुलाक़ात 15-वर्षीया नाज़िया हसन से करवाई लंदन की किसी पार्टी में। जिस तरह से बिद्दु मूल रूप से भारतीय थे, वैसे ही नाज़िया हसन पाक़िस्तानी मूल की थीं, और इंग्लैण्ड में पल-बढ़ रही थीं। 70 के दशक में नाज़िया ने पाक़िस्तान में बतौर बाल-गायिका कई गीत गा चुकी थीं। तो उस पार्टी में ख़ान साहब ने नाज़िया को गाते हुए सुना, उनकी आवाज़ उन्हें पसन्द आई, और नाज़िया से कहा कि वो बिद्दु के पास जा कर एक ऑडिशन दे आये। "आप जैसा कोई..." गीत के लिए जिस आवाज़ की ज़रूरत थी, वह आवाज़ नाज़िया के गले में बिद्दु ने पायी, और फ़ौरन इस गीत के लिए उन्हें चुन लिया। नाज़िया ने यह प्रस्ताव हाथों-हाथ ग्रहण किया। इन्दीवर के लिखे लगभग 3 मिनट 45 सेकण्ड्स अवधि के इस गीत को फ़िल्म में एक आइटम नंबर के रूप में दर्शाया गया और इसे ज़ीनत अमान पर फ़िल्माया गया है। नाज़िया हसन की आवाज़ नैज़ल थी। बिद्दु ने इको ईफ़ैक्ट के लिए इसे बैकट्रैक करने की सोची। लंदन में इस गीत की रेकॉर्डिंग हुई और फ़िल्म-संगीत इतिहास का यह वह पहला गीत था जिसकी रेकॉर्डिंग कुल 24 ट्रैक पर हुई। 1980 में रिलीज़ हुई 'क़ुर्बानी'। फ़िल्म सुपर-डुपर हिट हुई, और इसके गानें भी उतने ही लोकप्रिय हुए। "लैला ओ लैला" और "आप जैसा कोई" गीतों को सर्वाधिक लोकप्रियता मिली। नाज़िया हसन रातों-रात मशहूर हो गईं। सिर्फ़ भारत में ही नहीं, समूचे दक्षिण एशिया में इस गीत ने हलचल पैदा कर दी। उस वर्ष 'बिनाका गीतमाला' के वार्षिक काउण्टडाउन में 'क़ुर्बानी' के कुल चार गीत शामिल थे। 26 और 27 पायदान पर "अल्लाह को प्यारी है क़ुर्बानी" और "क्या देखते हो सूरत तुम्हारी" थे, 6 पर "लैला मैं लैला" तथा 4 पर रहा "आप जैसा कोई..."। इस गीत ने उस वर्ष कई मशहूर गीतों को पीछे छोड़ दिया जैसे कि "परदेसिया यह सच है पिया", "हमें तुमसे प्यार कितना", "छू कर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा", "आनेवाला पल जानेवाला है", "जब छाये मेरा जादू" आदि। उस वर्ष फ़िल्मफ़ेअर पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ गायिका के लिए जिन पाँच गायिकाओं का नामांकन हुआ, वो सभी नई पौध की गायिकायें थीं। "आप जैसा कोई" के लिए नाज़िया तो थीं ही, इसी फ़िल्म की "लैला मैं लैला" के लिए कंचन, 'आप तो ऐसे न थे' फ़िल्म के "तू इस तरह से मेरी ज़िन्दगी में शामिल है" के लिए हेमलता, 'गृहप्रवेश' फ़िल्म के "पहचान तो थी" के लिए चन्द्राणी मुखर्जी और 'प्यारा दुश्मन' फ़िल्म के "हरि ओम हरि" के लिए उषा उथुप के बीच टक्कर थी। और विजेता बनी नाज़िया हसन। नाज़िया न केवल पहली पाक़िस्तानी गायिका थीं जिसने किसी हिन्दी फ़िल्म के लिए गाया, बल्कि 15 वर्ष की आयु में फ़िल्मफ़ेअर पुरस्कार जीतने वाली सबसे कम आयु की गायिका होने का रेकॉर्ड भी कायम किया।

"आप जैसा कोई" की अपार सफलता को देखते हुए बिद्दु ने नाज़िया हसन और उनके भाई ज़ोहेब हसन को लेकर एक उर्दू पॉप ऐल्बम बनाने की सोची। इस तरह का कोई ऐल्बम इससे पहले भारतीय उपमहाद्वीप में नहीं आया था। बिद्दु ने नाज़िया और ज़ोहेब को उस समय के अमरीकी लोकप्रिय भाई-बहन जोड़ी 'The Carpenters' जैसी शक्ल देने की कोशिश की। बिद्दु ने "आप जैसा कोई" की तरह कुछ गीत कम्पोज़ कर 'डिस्को दीवाने' नामक ऐल्बम में जारी किया 1981 में। एशिया, दक्षिण अफ़्रीका और दक्षिण अमरीका के देशों में इसने ख़ूब लोकप्रियता हासिल की। तब तक कि यह एशिया की 'बेस्ट-सेलर' ऐल्बम रही है। हर कलाकार का अपना समय होता है, अपना दौर होता है जब वो आसमान की बुलन्दियों को छूता है। बिद्दु और नाज़िया का भी यह वही समय था। डिस्को की लोकप्रियता भी उस वक़्त सर चढ कर बोल रही थी। आज वह दौर गुज़र चुका है। नाज़िया भी अल्लाह को प्यारी हो चुकी हैं बहुत ही कम उम्र में। लेकिन जब-जब डिस्को के दौर का ज़िक्र होगा, तब-तब बिद्दु और नाज़िया हसन के इन गीतों का ज़िक्र होगा। और इस ज़िक्र में "आप जैसा कोई मेरी ज़िन्दगी में आये" सबसे उपर आयेगा। बस, इतनी सी है इस गीत की कहानी! अब आप यह गीत सुनिए।



फिल्म - कुर्बानी : 'आप जैसा कोई मेरी ज़िन्दगी में आये...' : गायिका - नाज़िया हसन : संगीत - बिद्दू : गीत - इन्दीवर





अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें cine.paheli@yahoo.com के पते पर।


खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 

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