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Showing posts from April, 2013

मुंशी प्रेमचंद की अमर रचना दो बैलों की कथा

इस साप्ताहिक स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा के स्वर में पुरुषोत्तम पाण्डेय की कहानी " लातों का देव " का पाठ सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी दो बैलों की कथा जिसे स्वर दिया है अर्चना चावजी ने। कहानी "दो बैलों की कथा" का गद्य भारत डिस्कवरी पर उपलब्ध है। इस कथा का कुल प्रसारण समय 26 मिनट 50 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ ... मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी हिन्दी कहानी “गधा सचमुच बेवकूफ है या उसके सीधेपन, उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका

सिनेमा के शानदार 100 बरस को अमित, स्वानंद और अमिताभ का संगीतमय सलाम

प्लेबैक वाणी -4 4 - संगीत समीक्षा - बॉम्बे टा'कीस सि नेमा के १०० साल पूरे हुए, सभी सिने प्रेमियों के लिए ये हर्ष का समय है. फिल्म इंडस्ट्री भी इस बड़े मौके को अपने ही अंदाज़ में मना या भुना रही है. १०० सालों के इस अद्भुत सफर को एक अनूठी फिल्म के माध्यम से भी दर्शाया जा रहा है. बोम्बे  टा'कीस  नाम की इस फिल्म को एक नहीं दो नहीं, पूरे चार निर्देशक मिलकर संभाल रहे हैं, जाहिर है चारों निर्देशकों की चार मुक्तलिफ़ कहानियों का संकलन होगी ये फिल्म. ये चार निर्देशक हैं ज़ोया अख्तर, करण जोहर, अनुराग कश्यप और दिबाकर बैनर्जी. अमित त्रिवेदी का है संगीत तथा गीतकार हैं स्वानंद किरकिरे और अमिताभ भट्टाचार्य. चलिए देखते हैं फिल्म की एल्बम में बॉलीवुड के कितने रंग समाये हैं.  पहला  गीत बच्चन  हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े सुपर स्टार अमिताभ बच्चन को समर्पित है...जी हाँ सही पहचाना वही जो रिश्ते में सबके बाप  हैं. शब्दों में अमिताभ भट्टाचार्य ने सरल सीधे मगर असरदार शब्दों में हिंदी फिल्मों पर बच्चन साहब के जबरदस्त प्रभाव को बखूबी बयाँ किया है. अमित की तो बात ही निराली है, गीत का संगीत संयोजन कम

आधी शताब्दी का हुआ भोजपुरी सिनेमा

स्वरगोष्ठी – 118 में आज यूँ बनी पहली भोजपुरी फिल्म- ‘गंगा मैया तोहें पियरी चढ़इबो’ संगीत-प्रेमियों की साप्ताहिक महफिल ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नये अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र पुनः उपस्थित हूँ। भारतीय सिनेमा के इतिहास में 4 अप्रैल, 1963 की तिथि इसलिए बेहद महत्त्वपूर्ण है कि इस दिन पहली भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मैया तोहें पियरी चढ़इबो’ का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन वाराणसी के प्रकाश सिनेमाघर में हुआ था। इस तिथि के अनुसार भोजपुरी सिनेमा प्रदर्शन की आधी शताब्दी पूर्ण कर चुका है। इस अवसर पर हम इस फिल्म के निर्माण से जुड़े कुछ ऐतिहासिक तथ्यों और रोचक प्रसंगों की चर्चा इस विशेष अंक में कर रहे हैं। आज का यह अंक प्रस्तुत कर रहे हैं, युवा फ़िल्म पत्रकार, शोधार्थी, स्वतंत्र डॉक्यूमेंट्री व लघु फिल्मकार तथा पटना स्थित सिने सोसाइटी के मीडिया प्रबन्धक, रविराज पटेल।    रविराज पटेल य ह प्रबल एवं प्रमाणित अवधारणा है कि सिनेमा समाज का आईना होता है। इस आईने में और भी स्पष्ट प्रतिछाया बने, इसके लिए एक सहज सम्प्रेषणशील भाषा की आवश्यकता समझी जाती है। एक ऐसी भाषा जिसमें हर दर्शक

‘बूझ मेरा क्या नाम रे...’ भाग 2

पार्श्वगायिका शमशाद बेगम को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की श्रद्धांजलि ‘ना बोल पी पी मोरे अँगना पंछी जा रे जा...' फिल्म संगीत के सुनहरे दौर की गायिकाओं में शमशाद बेगम का 23 अप्रैल को 94 वर्ष की आयु में निधन हो गया। खनकती आवाज़ की धनी इस गायिका ने 1941 की फिल्म खजांची से हिन्दी फिल्मों के पार्श्वगायन क्षेत्र में अपनी आमद दर्ज कराई थी। आत्मप्रचार से कोसों दूर रहने वाली इस गायिका को श्रद्धांजलि-स्वरूप हम अपने अभिलेखागार से अगस्त 2011 में अपने साथी सुजॉय चटर्जी द्वारा प्रस्तुत दस कड़ियों की लघु श्रृंखला 'बूझ मेरा क्या नाम रे…' के सम्पादित अंश का दूसरा भाग प्रस्तुत कर रहे हैं। श मशाद बेगम के गाये गीतों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु श्रृंखला 'बूझ मेरा क्या नाव रे' की तीसरी कड़ी में सुजॉय चटर्जी का नमस्कार। कुछ वर्ष पहले वरिष्ठ उद्‍घोषक कमल शर्मा के नेतृत्व में विविध भारती की टीम पहुँची थी शमशाद जी के पवई के घर में, और उनसे लम्बी बातचीत की थी। उसी बातचीत का पहला अंश पिछली कड़ी में हमनें पेश किया था, आइए आज उसी से आगे की बातचीत के कुछ और अंश पढ़े

शमशाद बेगम को श्रद्धांजलि : भाग 1

पार्श्वगायिका शमशाद बेगम को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की श्रद्धांजलि ‘बूझ मेरा क्या नाम रे...’ फिल्म संगीत के सुनहरे दौर की गायिकाओं में शमशाद बेगम का 23 अप्रैल को 94 वर्ष की आयु में निधन हो गया। खनकती आवाज़ की धनी इस गायिका ने 1941 की फिल्म खजांची से हिन्दी फिल्मों के पार्श्वगायन क्षेत्र में अपनी आमद दर्ज कराई थी। आत्मप्रचार से कोसों दूर रहने वाली इस गायिका को श्रद्धांजलि-स्वरूप हम अपने अभिलेखागार से अगस्त 2011 में अपने साथी सुजॉय चटर्जी द्वारा प्रस्तुत दस कड़ियों की लघु श्रृंखला 'बूझ मेरा क्या नाम रे…' के सम्पादित अंश प्रस्तुत कर रहे हैं। 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, स्वागत है आप सभी का इस सुरीले सफ़र में। आज से एक नई श्रृंखला के साथ, मैं सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ हाज़िर हो गया हूँ। आज से शुरु होने वाली लघु श्रृंखला ‘बूझ मेरा क्या नाम रे...’ , समर्पित है फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की एक लाजवाब पार्श्वगायिका को। ये वो गायिका हैं दोस्तों, जिनकी आवाज़ की तारीफ़ में संगीतकार नौशाद साहब नें कहा था कि इसमें पंजाब की पाँचों दरियाओं की रवानी ह

कारवाँ सिने-संगीत का : 1933 की दो उल्लेखनीय फिल्में

भारतीय सिनेमा के सौ साल – 42 कारवाँ सिने-संगीत का वाडिया मूवीटोन की फिल्म ‘लाल-ए-यमन’ और हिमांशु राय की ‘कर्म’ भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘कारवाँ सिने संगीत का’ में आप सभी सिनेमा-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का चौथा गुरुवार है और इस दिन हम ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ स्तम्भ के अन्तर्गत ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के संचालक मण्डल के सदस्य सुजॉय चटर्जी की प्रकाशित पुस्तक ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ से किसी रोचक प्रसंग का उल्लेख करते हैं। आज के अंक में सुजॉय जी 1933 में ‘वाडिया मूवीटोन’ के गठन और इसी संस्था द्वारा निर्मित फिल्म ‘लाल-ए-यमन’ का ज़िक्र कर रहे हैं। इसके साथ ही देविका रानी और हिमांशु राय अभिनीत पहली ‘ऐंग्लो-इण्डियन’ को-प्रोडक्शन फ़िल्म ‘कर्म’ की चर्चा भी कर रहे हैं। 1933 की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही ‘वाडिया मूवीटोन’ का गठन। वाडिया भाइयों, जे. बी. एच. वाडिया और होमी वाडिया, ने इस कंपनी के ज़रिए स्टण्ट और ऐक्शन फ़िल्मों का दौर शुरु किया। दरअसल वाडिया भाइयों ने मूक फ़िल्मों के जौनर म