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Showing posts from October, 2012

राग रंग - संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक ब्रोडकास्ट (१८)- राग रंग

भारतेंदु हरिश्चंद्र की अद्भुत संवाद - अनुराग शर्मा के स्वर में

बोलती कहानियाँ: भारतेंदु हरिश्चंद्र की अद्भुत संवाद 'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्राख्यात स्वाधीनता सेनानी अमर शहीद पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल की जीवनी से एक बहुचर्चित अंश " श्री अशफाक उल्ला खां – मैं मुसलमान तुम काफिर? " सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं भारतेंदु हरिश्चंद्र की कहानी " अद्भुत संवाद ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 1 मिनट 19 सेकंड। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।। ~ भारतेंदु हरिश्चंद्र (१८५०-१८८५) हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी “कूदेगा! भला कूदेगा क्यों? लो संभालो।”

पैप्पी और कदम थिरकाता 'अजब गजब लव'

प्लेबैक वाणी - संगीत समीक्षा - अजब गजब लव  निर्माता वाशु भगनानी के बेटे जैकी भगनानी नए जोश खरोश के साथ लौटे रहे हैं तेलुगु हिट फिल्म के रिमेक के साथ. फिल्म का नाम है अजब गजब लव, अलबम में संगीत है साजिद वाजिद का, और गीतकारों में हैं प्रिया पांचाल, कौसर मुनीर, और सुखजीत थांडी. आईये नज़र डालें अल्बम में संकलित ४ गीतों पर. अल्बम की शुरुआत बहुत ही धमाकेदार तरीके से होती है. जबरदस्त रिदम के साथ उठता है गीत ‘ बूम बूम बूम ’ . मिका सिंह की दमदार आवाज़ खूब जमती है गीत पर. बीट्स थिरकने पर मजबूर करने वाले हैं. प्रिया के शब्द गीत के अनुरूप ही हैं. निश्चित ही एक चार्ट बस्टर साबित होगा ये गीत. पहले गीत में ही बढ़िया माहौल बनाने के बाद साजिद वाजिद अपने चिर परिचित रोमांटिक टोन में लौटते हैं गीत  “ तू ”  के साथ. मोहित चौहान की आवाज़ का पीछा करती  वोइलेन की स्वर लहरियाँ बहुत सुहाती है, धुन और आवाज़ की मधुरता के मुकाबले में शब्दों का चुनाव और बेहतर हो सकता था. गिटार के सुरीले सुरों के खुलता है गीत  “ सुन सोणिये ” , जिसे इरफ़ान और अंतरा मित्रा ने बहुत खूबसूरती से निभाया है. रियलिटी शो स

फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – ५

स्वरगोष्ठी – ९४ में आज ‘कौन गली गयो श्याम...’ : श्रृंगार और भक्ति का अनूठा समागम ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ की आज पाँचवीं कड़ी है। इस श्रृंखला में हम आपके लिए कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं, जिन्हें फिल्मों में भी शामिल किया गया। ऐसी ठुमरियों का पारम्परिक और फिल्मी, दोनों रूप आप सुन रहे हैं। आज के अंक में हम प्रस्तुत करने जा रहे हैं, खमाज की एक बेहद लोकप्रिय ठुमरी- ‘कौन गली गयो श्याम...’। आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करते हुए, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आरम्भ करता हूँ, ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ श्रृंखला का नया अंक। ह मारी आज की पारम्परिक ठुमरी राग खमाज की है, जिसके स्थायी के बोल हैं- ‘कौन गली गयो श्याम...’ । इस ठुमरी को कई गायक-गायिकाओं ने गाया है। इनमें से आज के अंक में हम विदुषी रसूलन बाई, डॉ. प्रभा अत्रे, पण्डित छन्नूलाल मिश्र और विदुषी परवीन सुलताना के स्वरों में यह ठुमरी प्रस्तुत करेंगे। पिछले अंक में भी हमने रसूलन बाई के स्वर में एक अन्य ठुमरी प्रस्तु

"रोमांस के जादूगर" और "हँसी के शहंशाह" को 'सिने पहेली' का सलाम...

(27 अक्टूबर, 2012) सिने-पहेली # 43 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। अक्टूबर का यह सप्ताह जहाँ एक ओर त्योहारों की ख़ुशियाँ लेकर आया, वहीं दूसरी ओर दो दुखद समाचारों ने सब के दिल पर गहरा चोट पहुँचाया। मनोरंजन जगत के दो दिग्गज कलाकारों को काल के क्रूर हाथों ने हम से छीन लिए। इनमें एक हैं रोमांस के जादूगर, सुप्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता व निर्देशक  यश चोपड़ा और दूसरे हैं हँसी के शहंशाह, जाने-माने हास्य अभिनेता जसपाल भट्टी। आज की 'सिने पहेली' समर्पित है यश चोपड़ा और जसपाल भट्टी की पुण्य स्मृति को।  य श चोपड़ा अपनी फ़िल्मों (ख़ास कर अपनी निर्देशित फ़िल्मों) में रोमांस को उस मकाम तक लेकर गये कि हर पीढ़ी के लोगों को उनकी फ़िल्मों से, उनकी फ़िल्मों की नायक-नायिकाओं से प्यार हो गया। हर फ़िल्म में प्यार की एक नई परिभाषा उन्होंने बयाँ की। उनकी फ़िल्मों की सफलता का राज़ है कि लोग उनके किरदारों में अपनी झलक पाते हैं या अपने आप को उन किरदारों जैसा बनने का सपना देखते हैं। जनता की नव्ज़ को बख़ूबी पकड़ती रही है यश

शब्दों के चाक पर - 18

" आओ घोटाला करें " और " आवाज़ दे, कहाँ है " काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में उतरा है रामराज विधायक निवास में पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में जनता के पास एक ही चारा है बगावत यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में दोस्तों, आज की कड़ी में हमारे दो विषय हैं - " आओ घोटाला करें " और " आवाज़ दे, कहाँ है " है। जीवन के इन दो अलग-अलग पहलुओंकी कहानियाँ पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है अभिषेक ओझा ओर  अनुराग शर्मा  ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें) या फिर यहाँ से डाउनलोड करें "शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते हो

भारतीय सिनेमा के सौ साल - अंजू पंकज की दिव्य प्रेरणा "जय संतोषी माँ"

मैंने देखी पहली फिल्म भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का चौथा गुरुवार है और आज बारी है- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ की। इस द्विसाप्ताहिक स्तम्भ के पिछले अंक में आपने कवि और पत्रकार निखिल आनन्द गिरि के संस्मरण के साझीदार रहे। आज के अंक में हम प्रस्तुत कर रहे हैं, रेडियो प्लेबैक इण्डिया के नियमित पाठक और शुभचिन्तक पंकज मुकेश की पत्नी अंजू पंकज की पहली देखी फिल्म ‘जय सन्तोषी माँ’ का संस्मरण। यह प्रतियोगी वर्ग की प्रविष्टि है। फिल्म देख कर सन्तोषी माँ का व्रत करने की इच्छा हुई : अंजू पंकज मैं ने अपने जीवन में सबसे पहली फिल्म देखी -"जय सन्तोषी माँ"। इस फिल्म के बारे में हर एक बात मैं आज तक भूल नहीं पायी। सच में पहली फिल्म कुछ ज्यादा ही यादगार होती है। बात उस समय की हैं जब मैं पाँचवीं कक्षा में पढ़ती थी, महज दस साल कि उम्र थी। दुनियादारी से कहीं दूर एक बच्ची के मन में जो कुछ आता था, उनमें कहीं न कहीं चम्पक, नन्हें सम्रा

बोलती कहानियाँ - "श्री अशफाक उल्ला खां – मैं मुसलमान तुम काफिर?"

'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्राख्यात साहित्यकार श्री अन्तोन चेख़व की कहानी " "कमज़ोर" का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं शहीद अशफ़ाक़ उल्लाह खाँ के जन्मदिन पर काकोरी काण्ड के शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि प्रस्तुत करते हुए प्राख्यात स्वाधीनता सेनानी अमर शहीद पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल की जीवनी से एक अंश " श्री अशफाक उल्ला खां – मैं मुसलमान तुम काफिर ? ", अनुराग शर्मा की आवाज़ में। मार्मिक संस्मरण " मैं मुसलमान तुम काफिर? " का टेक्स्ट "काकोरी काण्ड" पर उपलब्ध है। कहानी का कुल प्रसारण समय 3 मिनट 19 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।  यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। श्री अशफाक उल्ला खां (22 अक्टूबर 19

जवां रिदम पर पुरानी तान छेड़ता स्टूडेंट ऑफ द ईअर का संगीत

प्लेबैक वाणी   एक अरसे के बाद निर्देशन में उतरे हैं करण जौहर, और उनकी नयी फिल्म में न शाहरुख, न हृतिक, न काजोल, न रानी मुखर्जी. यानी बड़े सितारों से अलग उन्होंने चुने हैं एकदम नए नौजवान सितारे, अब देखना है कि इन नए घोड़ों के कन्धों पर करण एक और बड़ी हिट दे पायेंगें या नहीं. उनकी फिल्मों की सफलता का एक बड़ा श्रेय संगीत का रहा है. अब तक की उनकी हर फिल्म संगीत के लिहाज से जबरदस्त रही है. आईये देखें  “ स्टूडेंट ऑफ द ईयर ”  के संगीत का हाल, हमारी आज की चर्चा में. अल्बम में संगीत है विशाल शेखर का और गीत लिखें हैं अन्विता दस गुप्तन ने. अल्बम की शुरुआत होती है ८० के दशक के यादगार हिट  “ डिस्को दीवाने ”  के रीमिक्स से. जैसे कि हमारे श्रोता वाकिफ होंगें कि किस तरह नाजिया हसन का ये लाजवाब डिस्को गीत एक दौर में हर जवां दिल की धडकन हुआ करता था. नाज़िया हसन के सफर का जिक्र हम अपनी सिरीस  “ अधूरी रही जिनकी कहानियाँ ”  में कर चुके हैं. किसी पुराने गीत को नए दौर के लिए कैसे फिर से जिंदा किया जा सकता है ये कोई विशाल शेखर से सीखे. डिस्को दीवाने का ये संस्करण बेहद ऊर्जात्मक है मगर फिर भी इसमें

फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – ४

       स्वरगोष्ठी – ९३ में आज रसूलन बाई, जद्दन बाई और मन्ना डे के स्वरों में एक ठुमरी ‘फूलगेंदवा न मारो लगत करेजवा में चोट...’ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ जारी है। इस श्रृंखला की चौथी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज के अंक में हम आपसे पूरब अंग की एक विख्यात ठुमरी गायिका रसूलन बाई और जद्दन बाई के व्यक्तित्व पर और उन्हीं की गायी एक अत्यन्त प्रसिद्ध ठुमरी- ‘फूलगेंदवा न मारो, लगत करेजवा में चोट...’ पर चर्चा करेंगे। इसके साथ ही इस ठुमरी के फिल्मी प्रयोग पर भी आपसे चर्चा करेंगे। बी सवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में पूरब अंग की ठुमरी गायिकाओं में विदुषी रसूलन बाई का नाम शीर्ष पर था। पूरब अंग की उप-शास्त्रीय गायकी- ठुमरी, दादरा, होरी, चैती, कजरी आदि शैलियों की अविस्मरणीय गायिका रसूलन बाई बनारस के निकट स्थित कछवा बाज़ार (वर्तमान मीरजापुर ज़िला) की रहने वाली थीं और उनकी संगीत शिक्षा बनारस (अब वाराणसी) में हुई थी। संगीत का संस्कार इन्हें अपनी

त्योहारों की खुशियों में पहचानें कुछ छुपे चेहरे

20 अक्तूबर, 2012 सिने-पहेली # 42  'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार और हार्दिक स्वागत है आप सभी का, आपके मनपसन्द स्तम्भ 'सिने पहेली' में। सबसे पहले आप सबको नवरात्रि, दुर्गापूजा और दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएँ देते हैं। उत्सव के ये 10 दिन आपके जीवन में ढेर सारी ख़ुशियाँ लेकर आये, और आने वाला वर्ष आपके लिए शुभ हो, मंगलमय हो, यही हम कामना करते हैं।  दो स्तों, पिछले कुछ दिनों से 'सिने पहेली' प्रतियोगिता में भाग लेने वाले प्रतियोगियों की संख्या में कटौती हुई है और न ही कोई नया खिलाड़ी इस खेल में शामिल हो रहा है। जब मैंने और कृष्णमोहन जी ने अपने-अपने मण्डलो में लोगों से इसका कारण पूछा तो अधिकतर ने यही बताया कि 'सिने पहेली' की पहेलियाँ बहुत कठिन होती हैं, जिनका उनके पास जवाब नहीं होता, वरना उन्हें इसमें भाग लेने में कोई परेशानी नहीं है। इसके जवाब में हम यही कहना चाहेंगे कि 'सिने पहेली' के प्रश्न इतने कठिन होने पर भी कई खिलाड़ी पूरे के पूरे अंक हासिल कर रहे हैं। ऐसे में अगर पहेली क