'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का 'सिने पहेली' स्तंभ में। प्रतियोगियों के अनुरोध पर आज से यह स्तंभ सोमवार के स्थान पर शनिवार को प्रकाशित हुआ करेगा। तीसरे सेगमेण्ट में कुल 26 खिलाड़ियों ने भाग लिया था, अब हम उम्मीद करेंगे कि चौथे सेगमेण्ट में यह संख्या बढ़ कर दुगुनी हो जाए! आप सब अपने सगे-संबंधियों, दोस्तों और सहयोगियों से इस प्रतियोगिता से जुड़ने का सुझाव दें। जितने ज़्यादा प्रतियोगी इसमें भाग लेंगे, खेल उतना ही ज़्यादा मज़ेदार व मनोरंजक बन पड़ेगा।
आज से 'सिने पहेली' का चौथा सेगमेण्ट शुरू हो रहा है जो अगले दस सप्ताह तक चलेगा। आइए आज सबसे पहले आपको बता दें 'सिने पहेली' प्रतियोगिता के नियम।
कैसे बना जाए 'सिने पहेली महाविजेता'?
1. सिने पहेली प्रतियोगिता में होंगे कुल 100 एपिसोड्स। इन 100 एपिसोड्स को 10 सेगमेण्ट्स में बाँटा गया है। अर्थात्, हर सेगमेण्ट में होंगे 10 एपिसोड्स।
2. प्रत्येक सेगमेण्ट में प्रत्येक खिलाड़ी के 10 एपिसोड्स के अंक जुड़े जायेंगे, और सर्वाधिक अंक पाने वाले तीन खिलाड़ियों को सेगमेण्ट विजेताओं के रूप में चुन लिया जाएगा।
3. इन तीन विजेताओं के नाम दर्ज हो जायेंगे 'महाविजेता स्कोरकार्ड' में। प्रथम स्थान पाने वाले को 'महाविजेता स्कोरकार्ड' में 3 अंक, द्वितीय स्थान पाने वाले को 2 अंक, और तृतीय स्थान पाने वाले को 1 अंक दिया जायेगा। तीसरे सेगमेण्ट की समाप्ति पर अब तक का 'महाविजेता स्कोरकार्ड' यह रहा...
4. 10 सेगमेण्ट पूरे होने पर 'महाविजेता स्कोरकार्ड' में दर्ज खिलाड़ियों में सर्वोच्च पाँच खिलाड़ियों में होगा एक ही एपिसोड का एक महा-मुकाबला, यानी 'सिने पहेली' का फ़ाइनल मैच। इसमें पूछे जायेंगे कुछ बेहद मुश्किल सवाल, और इसी फ़ाइनल मैच के आधार पर घोषित होगा 'सिने पहेली महाविजेता' का नाम। महाविजेता को पुरस्कार स्वरूप नकद 5000 रुपये दिए जायेंगे, तथा द्वितीय व तृतीय स्थान पाने वालों को दिए जायेंगे सांत्वना पुरस्कार।
तो चलिए शुरू किया जाए 'सिने पहेली' का चौथा सेगमेण्ट, अर्थात् 'सिने पहेली' # 31
आज की पहेलियाँ : बूझो तो जाने...
दोस्तों, आज 4 अगस्त है। गायक और हरफ़नमौला कलाकार, हम सब के चहेते, किशोर कुमार का जनमदिवस। इसलिए आइए किशोर दा के गाये गीतों पर आधारित करें आज की पहेलियाँ। नीचे हम पाँच पहेलियाँ लिख रहे हैं, हर पहेली के लिए आपको पहचानना है गीत। अर्थात् आपको बताना है कि प्रत्येक पहेली किस गीत की तरफ़ इशारा कर रही है। तो ये रही आज की पहेलियाँ...
किशोर बने बंगाली बाबू, मद्रासी बनीं आशा,
प्रेम निवेदन करते करते गूँजी प्यार की भाषा।
चुटकुले पे चुटकुला, किशोर दा चले सुनाते हुए,
बच्चों के संग बच्चे बन कर काका हैं छाए हुए।
पंचम ने कहा किशोर से, लाया हूँ एक गाना राग शिवरंजिनी जैसा,
तेरे राग की ऐसी तैसी, पहले लता से गवा, तब गाऊँगा बिलकुल वैसा।
यार को अल्लाह कहती किशोर दा की ये गजल,
सुर्खियों में न आ पाई, पर हीरा है असल।
बाप और बेटे, दोनों के होठों पर सजा है यह गीत,
रोमीयो बने युवाओं को ख़ूब भाया यह गीत,
मुखड़े के पहले तीन शब्दों को लेकर बनी है एक फ़िल्म,
मुखड़े के अन्य चार शब्दों को लेकर भी बनी है एक फ़िल्म,
किस गीत की बात हो रही है, क्या आपको है यह इल्म?
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और अब ये रहे इस प्रतियोगिता में भाग लेने के कुछ आसान से नियम....
1. उपर पूछे गए सवालों के जवाब एक ही ई-मेल में टाइप करके cine.paheli@yahoo.com के पते पर भेजें। 'टिप्पणी' में जवाब न कतई न लिखें, वो मान्य नहीं होंगे।
2. ईमेल के सब्जेक्ट लाइन में "Cine Paheli # 31" अवश्य लिखें, और अंत में अपना नाम व स्थान अवश्य लिखें।
3. आपका ईमेल हमें बृहस्पतिवार 9 अगस्त शाम 5 बजे तक अवश्य मिल जाने चाहिए। इसके बाद प्राप्त होने वाली प्रविष्टियों को शामिल नहीं किया जाएगा।
4. सभी प्रतियोगियों ने निवेदन है कि सूत्र या हिंट के लिए 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के किसी भी संचालक या 'सिने पहेली' के किसी भी प्रतियोगी से फ़ोन पर या ईमेल के ज़रिए सम्पर्क न करे। हिंट माँगना और हिंट देना, दोनों इस प्रतियोगिता के खिलाफ़ हैं। अगर आपको हिंट चाहिए तो अपने दोस्तों, सहयोगियों या परिवार के सदस्यों से मदद ले सकते हैं जो 'सिने पहेली' के प्रतियोगी न हों।
तो बस अब जुट जाइए आज की पहेलियों के समाधान के लिए और निर्धारित समय सीमा के भीतर लिख भेजिए अपने जवाब। मैं आपसे फिर मिलूँगा अगले शनिवार 'सिने पहेली' की 32-वीं कड़ी के साथ। तब तक के लिए अनुमति दीजिए, नमस्कार!
'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शेफाली गुप्ता की आवाज़ में सुधा ओम ढींगरा की कथा "बिखरते रिश्ते" का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार उषा प्रियंवदा की कहानी "वापसी", जिसको स्वर दिया है शेफाली गुप्ता ने।
इस कहानी का कुल प्रसारण समय 22 मिनट 10 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।
यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें।
उषा प्रियंवदा आज हिंदी कहानी का एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। परिवार और समाज की विसंगतियों और विडंबनाओं को उन्होंने जितनी सूक्ष्मता से चित्रित किया है, उतनी ही व्यापकता में व्यक्ति के बाह्य और आंतरिक संसार के बीच के संबंध को भी उकेरा है।
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हर शुक्रवार को "बोलती कहानियाँ" पर सुनें एक नयी कहानी
"पढने का तो बहाना है, कभी जी ही नहीं लगता।"
(उषा प्रियंवदा की "वापसी" से एक अंश)
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भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में आयोजित विशेष श्रृंखला ‘स्मृतियों के झरोखे से’ के एक नये अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने सहयोगी स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी के साथ आपका स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में प्रत्येक मास के पहले और तीसरे गुरुवार को हम आपके लिए लेकर आते हैं, मूक फिल्मों के प्रारम्भिक दौर के कुछ रोचक तथ्य और दूसरे हिस्से में सवाक फिल्मों के प्रारम्भिक दौर की कोई उल्लेखनीय संगीत रचना और रचनाकार का परिचय। आज के अंक में हम आपसे इस युग के कुछ रोचक तथ्य साझा करेंगे।
‘राजा हरिश्चन्द्र’ से पहले : उत्कृष्ट वृत्त-चित्रों से आगे बढ़ा भारतीय फिल्मों का काफिला
भारतीय सिनेमा के शुरुआती दौर में भावी फिल्मों के लिए दिशा की खोज जारी थी। मुहावरे गढ़े जा रहे थे। 3मई, 1913 को भारत में निर्मित पहली कथा-फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ तक पहुँचने में भारतीय फ़िल्मकारों को 17वर्ष लगे। 1896 से 1913 तक की अवधि में भारतीय फ़िल्मकार दो अलग-अलग दिशाओं में सक्रिय रहे। एक वर्ग फिल्म के निर्माण में तो दूसरा वर्ग फिल्म के व्यावसायिक प्रदर्शन के क्षेत्र में सलग्न था। बीसवीं शताब्दी के पहले दशक में कथा-फिल्म की अवधारणा का जन्म तो हुआ परन्तु दिशा की तलाश की जा रही थी। हाँ, इस दौर में कुछ अच्छे वृत्त-चित्र अवश्य बने। 1905 में ज्योतिष सरकार नामक एक स्वप्नदर्शी फ़िल्मकार ने बंग-भंग आन्दोलन के अग्रणी नेता सुरेन्द्रनाथ सेन के व्यक्तित्व और आन्दोलन के औचित्य पर
जे.एफ. मदान
एक प्रभावी वृत्त-चित्र- ‘ग्रेट बेंगाल पार्टीशन मूवमेंट’ का निर्माण किया था। यह भारत में बनाने वाला पहला राजनैतिक वृत्त-चित्र था। इसी प्रकार 1911 में एक ब्रिटिश छायाकर चार्ल्स अर्बन ने ‘दिल्ली दरबार’ का रंगीन फिल्मांकन किया था। चार्ल्स के अलावा दो भारतीय फ़िल्मकारों- हीरालाल सेन और एस.एन. पाटनकर ने भी इस महत्त्वाकांक्षी राजनैतिक समारोह का फिल्मांकन किया था।
फिल्मों के निर्माण के साथ-साथ प्रदर्शन के क्षेत्र में भी प्रयत्न किये जा रहे थे। 1902 में जे.एफ. मदान ने एक फ्रांसीसी कम्पनी से प्रोजेक्टर और फिल्म प्रदर्शन से सम्बन्धित अन्य उपकरण खरीदा और कलकत्ता (अब कोलकाता) के मैदान में अस्थायी सिनेमाघर बना कर फिल्मों का प्रदर्शन आरम्भ किया। मदान ने ही 1907 में बम्बई (अब मुम्बई) में पहला स्थायी सिनेमाघर ‘एल्फ़िल्स्टन पिक्चर पैलेस’ का निर्माण कराया। 1904 में मानेक डी. सेठना ने मुम्बई में ‘टूरिंग सिनेमा कम्पनी’ की स्थापना की और पहली बार नियमित सिनेमा का प्रदर्शन आरम्भ किया। इस नियमित प्रदर्शन का आरम्भ एक विदेशी फिल्म ‘लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ के प्रदर्शन से हुआ। उस दौर में फिल्म-निर्माण और प्रदर्शन के क्षेत्र में किये गए ये कुछ ऐसे प्रयास थे जिन्हें फिल्म-इतिहास के पृष्ठों पर सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा।
सवाक युग के धरोहर : 'पूरन भगत' की बातें और के.सी. डे का स्मरण
सवाक फ़िल्मों के पहले दौर में जिन कम्पनियों का फ़िल्म निर्माण में सराहनीय योगदान रहा उनमें एक है कलकत्ता का 'न्यू थिएटर्स'। यह वह कम्पनी है जिसने न केवल रुचिकर फ़िल्में बनाई, बल्कि एक से एक महान कलाकार को मंच दिया, ताकि वे अपनी कला को देश-विदेश तक पहुँचा सकें। रुचिकर फ़िल्में अर्थात वो फ़िल्में जो हर कोई देख सकता था। लता मंगेशकर ने एक बार किसी साक्षात्कार में कहा था कि जब वो छोटी थीं तब उनके पिता दीनानाथ जी उन्हें केवल 'न्यू थिएटर्स' की फ़िल्मों को ही देखने की अनुमति दिया करते थे, क्योंकि उनके हिसाब से इस बैनर की फ़िल्में बहुत शालीन होती थीं और गीत-संगीत भी ऊँचे स्तर का होता था। 'न्यू थिएटर्स' की फ़िल्मों में चलताऊ चीज़ें नहीं होती थीं। कलाकारों की बात करें तो कुन्दनलाल सहगल, कानन देवी, रायचन्द्र बोराल, पंकज मल्लिक, तिमिर बरन, पहाड़ी सान्याल और के.सी. डे जैसे कलाकारों ने इसी कम्पनी की छत्र-छाया में रह कर अपनी यात्रा शुरू की थी और नाम कमाया। बी.एन. सरकार द्वारा गठित 'न्यू थिएटर्स', जिसकी स्थापना 10फ़रवरी 1931 को कलकत्ता में हुई, इस कम्पनी ने 1931 से लेकर 1955 तक करीब 150 फ़िल्मों का निर्माण किया, और न केवल फ़िल्मों में, बल्कि फ़िल्म-संगीत की धरोहर को समृद्ध करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। ‘न्यू थिएटर्स’ की फ़िल्मों के गाने इतने उत्कृष्ट हुआ करते थे कि आने वाली पीढ़ियों के बहुत से दिग्गज कलाकार इस कम्पनी के गीतों से प्रेरित होकर ही इस क्षेत्र में आने की बात करते थे। ‘न्यू थिएटर्स’ ने 1932 में जिन तीन फ़िल्मों के माध्यम से संगीतकार रायचन्द्र बोराल और गायक-अभिनेता कुन्दनलाल सहगल को फ़िल्म-संगीत में उतारा, वो हैं– ‘मोहब्बत के आँसू’, ‘सुबह का सितारा’ और ‘जिन्दा लाश’। 1933 में इसकी तीन महत्त्वपूर्ण फ़िल्में आईं– ‘राजरानी मीरा’, ‘यहूदी की लड़की’, और ‘पूरन भगत’। बोराल और सहगल की जोड़ी ने पुन: अपना जादू जगाया, ‘पूरन भगत’ में। राग बिहाग और यमन-कल्याण पर आधारित “राधे रानी दे डारो ना...” हो या “दिन नीके बीते जाते हैं सुमिरन कर पिया राम नाम...”, फ़िल्म के सभी गीत, जो मूलत: भक्तिरस पर आधारित थे, लोकप्रिय हुए। वैसे सहगल इस फ़िल्म में नायक नहीं थे, सिर्फ़ उनके गाये गीत रखने के लिये उन्हें पर्दे पर उतारा गया था। “राधा रानी…” भजन संगीतकार रोशन के मनपसन्द भजनों में से एक है, ऐसा उन्होंने एक रेडियो कार्यक्रम में कहा था।
के.सी. डे
कृष्णचन्द्र डे, जो के.सी. डे के नाम से भी जाने गए, ने इस फ़िल्म में अभिनय और गायन प्रस्तुत किया था। “जाओ जाओ हे मेरे साधु रहो गुरु के संग...” और “क्या कारण है अब रोने का, जाये रात हुई उजियारा...” जैसे गीत उन्हीं के गाये हुए थे। सहगल और के.सी. डे की दो आवाज़ें एक दूसरे से बिल्कुल ही अलग थीं। एक तरफ़ सहगल की कोमल मखमली आवाज़, तो दूसरी तरफ़ के.सी. डे की बुलन्द आवाज़ थी। के.सी. डे के बारे में यह बताना ज़रूरी है कि वो आँखों से अन्धे थे। कुछ लोग कहते हैं कि वो जन्म से ही अन्धे थे, जबकि कई लोगों का कहना है कि कड़ी धूप में पतंगबाज़ी से उनके आँखों की रोशनी जाती रही। उन्हें फिर ‘अन्ध-कवि’ की उपाधि दी गई। पार्श्वगायक मन्ना डे इन्हीं के भतीजे हैं। मन्ना डे ने सहगल और अपने चाचाजी का ज़िक्र एक रेडियो कार्यक्रम में कुछ इस तरह से किया था- ‘सहगल साहब बहुत लोकप्रिय थे। मेरे सारे दोस्त जानते थे कि मेरे चाचा जी, के.सी. डे के साथ उनका रोज़ उठना-बैठना है। इसलिए उनकी फ़रमाइश पर मैंने सहगल साहब के कई गाने एक दफ़ा नहीं, बल्कि कई बार गाये होंगे। 'कॉलेज-उत्सवों में उनके गाये गाने गा कर मैंने कई बार इनाम भी जीते’। के.सी. डे एक गायक और अभिनेता होने के साथ-साथ एक संगीतकार भी थे।
बतौर संगीतकार के.सी. डे की पहली फ़िल्म थी 'आबे-हयात' (1933), पर यह फ़िल्म नहीं चली। संगीतकार के रूप में उनकी पहली उल्लेखनीय फ़िल्म थी 1934 की 'चन्द्रगुप्त'। भले उन्होंने 'न्यू थिएटर्स' की कई फ़िल्मों में गायन और अभिनय किया, लेकिन संगीतकार भी भूमिका उन्होंने 'ईस्ट इण्डिया फ़िल्म कॉर्पोरेशन' की फ़िल्मों में ही निभाई। इन दो फ़िल्मों के अलावा 1934 की ही फिल्म 'किस्मत की कसौटी', 'शहर का जादू', और 'सीता' में भी उनका संगीत था। 'सीता' में सचिनदेव बर्मन का गाया गीत था और यही वह पहली फ़िल्म थी जिसने कोई अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीता था। वेनिस में 1935 के तीसरे ‘सिनेमेट्रोग्राफ़िक आर्ट एक्जीबिशन’ में उसे स्वर्ण पदक मिला था। के.सी. डे के स्वरबद्ध कुछ और उल्लेखनीय फ़िल्मों के नाम हैं- 'सुनहरा संसार' (1936), 'मिलाप' (1937), 'आँधी' (1940), 'मेरा गाँव' (1942), 'तमन्ना' (1942), 'बदलती दुनिया' (1943), 'सुनो सुनाता हूँ' (1944), 'देवदासी' (1945), 'दूर चलें' (1946)। फ़िल्म संगीत की पाँचवें दशक के अन्त की बदलती धारा में के.सी. डे के नीतिप्रधान, भक्तिप्रधान गानों की कमी आती गई और वो धीरे-धीरे फ़िल्म जगत से दूर चले गए।
'पूरन भगत' के माध्यम से सहगल और के.सी. डे का उल्लेख इस लेख में हुआ, पर यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि न तो सहगल इस फ़िल्म के नायक थे और न ही के. सी. डे। देवकी बोस निर्देशित इस फ़िल्म के नायक-नायिका थे कुमार और अनवरी। फ़िल्म के गीत GCIL-HMV/ Hindustan-New Theatres Label के रेकॉर्ड्स पर जारी किए गए। ये रहे इस फ़िल्म के कुल 20 गीतों की सूची -
1. मोरे महाराजा के भई सन्तान, कैसी खुशी का आज समय है...
2. दु:ख सुख है सब एक समान, सुख की छाई जग में बदरिया...
3. बात कहूँ मैं मन की कैसे कासी, कैसी यह सुगन्ध है...
4. क्या कारण है अब रोने का काली रात हुई उजियारी.... (के.सी. डे)
5. कैसी चलत पवन मस्तानी, छिटकी हुई है चाँदनी...
6. जगत में प्रेम की बंसी बाजे, जाकी बंसी वही को साजे...
7. काहे करे कोई दु:ख नैनन का, कौन बिचारे दु:खड़ा मन का...
8. हे शम्भू हे विश्वनाथ, कैलाशपति हे भोलानाथ...
9. भज भज मन राम चरण निसदिन सुखदाई...
10. गावो जय जय आज भक्तों, भक्ति दिखाती है शक्ति...
11. भजूँ मैं तो भाव से श्री गिरिधारी हृदय से अब... (सहगल)
12. आज जय गावो मिल सब साधु, आज एक साधु की कुटिया पर...
13. सत प्रेम पर नारी के हँसी न सोहाय...
14. सखी री पिया मिलन की आस, जैन करे जवा में...
15. मानव जीवन प्यारे जग का सिंगार, केवल परीक्षा ही है...
16. प्रीतम मेरी आस न तोड़, अब तो प्रेम की आस लगी है...
17. जाओ-जाओ ऐ मेरे साधो रहो गुरू के संग... (के.सी. डे)
18. दिन नीके बीत जात हैं... (सहगल)
19. अवसर बीतो जाए... (सहगल)
20. राधे रानी दे डारो न बंसरी मोरी रे... (सहगल)
फिल्म ‘पूरन भगत : ‘जाओ-जाओ ऐ मेरे साधो रहो गुरू के संग...’ : के.सी. डे
फिल्म ‘पूरन भगत : ‘क्या कारण है अब रोने का...’ : के.सी. डे
इसी गीत के साथ इस अंक से हम विराम लेते हैं। आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी, हमें अवश्य लिखिएगा। आपकी प्रतिक्रिया, सुझाव और समालोचना से हम इस स्तम्भ को और भी सुरुचिपूर्ण रूप प्रदान कर सकते हैं। ‘स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल’ के आगामी अंक में बारी है- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ प्रतियोगिता की। हमारे अगले अंक में जो आलेख शामिल होगा वह प्रतियोगी वर्ग से होगा। आपके आलेख हमें जिस क्रम से प्राप्त हुए हैं, उनका प्रकाशन हम उसी क्रम से कर रहे हैं। यदि आपने ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ प्रतियोगिता के लिए अभी तक अपना संस्मरण नहीं भेजा है तो हमें तत्काल radioplaybackindia@live.com पर मेल करें।
शब्दों की चाक पर हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि हम पिछले हफ्ते की कविताओं को आत्मसात करें, आईये जान लें इस दिलचस्प खेल के नियम -
1. रश्मि प्रभा के संचालन में शब्दों का एक दिलचस्प खेल खेला जायेगा. इसमें कवियों को कोई एक थीम शब्द या चित्र दिया जायेगा जिस पर उन्हें कविता रचनी होगी ...ये सिलसिला सोमवार सुबह से शुरू होगा और गुरूवार शाम तक चलेगा, जो भी कवि इसमें हिस्सा लेना चाहें वो रश्मि जी से संपर्क कर उनके फेसबुक ग्रुप में जुड सकते हैं, रश्मि जी का प्रोफाईल यहाँ है.
2. सोमवार से गुरूवार तक आई कविताओं को संकलित कर हमारे पोडकास्ट टीम के हेड पिट्सबर्ग से अनुराग शर्मा जी अपने साथी पोडकास्टरों के साथ इन कविताओं में अपनी आवाज़ भरेंगें. और अपने दिलचस्प अंदाज़ में इसे पेश करेगें.
3. हमारी टीम अपने विवेक से सभी प्रतिभागी कवियों में से किसी एक कवि को उनकी किसी खास कविता के लिए सरताज कवि चुनेगें. आपने अपनी टिप्पणियों के माध्यम से ये बताना है कि क्या आपको हमारा निर्णय सटीक लगा, अगर नहीं तो वो कौन सी कविता जिसके कवि को आप सरताज कवि चुनते.
आज की कड़ी में शैफाली गुप्ता और अभिषेक ओझा के साथ ढेरों नन्हें नन्हें मेहमान भी हैं, टोरंटो से अदीति, और देहरादून से कुहू हैं तो दिल्ली से स्टीवन और क्रिस्टिन के साथ हैं औरंगाबाद से उम्र में बड़ी पर मन से बच्ची सुनीता यादव भी. स्क्रिप्ट है विश्व दीपक की, संचालन रश्मि प्रभा का, प्रस्तुति है अनुराग शर्मा और सजीव सारथी का. तो दोस्तों सुनिए सुनाईये और छा जाईये...
(नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)
या फिर यहाँसे डाउनलोड करें सूचना - इस हफ्ते हम कवितायेँ स्वीकार करेंगें भाई बहिन के अनूठे रिश्ते, और प्रेम की पहचान त्यौहार रक्षा बंधन पर. अपनी रचनाएँ आप उपर दिए रश्मि जी के पते पर भेज सकते हैं. गुरूवार शाम तक प्राप्त कवितायेँ ही स्वीकार की जायेंगीं.
छोटे परदे की बेहद सफल निर्मात्री एकता कपूर ने जब फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा तो वहाँ भी सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किये, बहुत ही अलग अलग अंदाज़ की फ़िल्में वो दर्शकों के लिए लेकर आयीं हैं, जिनमें हास्य, सस्पेंस, ड्रामा सभी तरह के जोनर शामिल हैं.
अपने भाई तुषार कपूर को लेकर उन्होंने “क्या कूल हैं हम” बनायीं थी जिसने दर्शकों को भरपूर हँसाया, इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए वो लायीं है अब “क्या सुपर कूल हैं हम” जिसमें तुषार कपूर के साथ है रितेश देशमुख. फिल्म हंसी का पिटारा है या नहीं ये तो दर्शकों को फिल्म देखने के बाद ही पता लग पायेगा, पर आईये हम जान लेते हैं कि फिल्म का संगीत कैसा है.
उभरते हुए संगीतकार जोड़ी सचिन जिगर के टेक्नो रिदम से लहराके उठता है “दिल गार्डन गार्डन” गीत. मयूर पूरी के बे सर पैर सरीखे शब्द गीत को एक अलग ही तडका देते हैं. जहाँ रिदम गीत की जान है वहीँ विशाल ददलानी की उर्जात्मक आवाज़ जोश से भरपूर है. गीत को सुनते हुए न सिर्फ आपके कदम थिरकेंगें बल्कि शब्दों की उटपटांग हरकतें आपके चेहरे पर एक मुस्कान भी ले आएगी...अगर आपने गीत का फिल्मांकन देखा होगा तो गौर किया होगा, सेट से लेकर पहनावे तक हर चीज को एक रेट्रो लुक से सराबोर किया हुआ है जो बेहद लुभावना लगता है, यक़ीनन ये गीत आप आने वाले समय में बहुत बहुत बार सुनने वाले हैं
इस तरह की फिल्म जिसमें कोमेडी का होना पागलपन की हद तक सुनिश्चित हो वहाँ कोई मेलोडिअस गीत की उम्मीद शायद ही कोई करेगा. पर इस अलबम में श्रोताओं के लिए एक बेहद ही मीठा सरप्रयिस है. गीत “शर्ट का बट्टन” दो अलग अलग संस्करणों में है, जहाँ सोनू की सुरीली आवाज़ में ये एक आउट एंड आउट रोमांटिक गीत बनकर उभरता है वहीँ कैलाश खेर और साथियों वाला संस्करण सूफी रोमंसिसिम को हलके फुल्के अंदाज़ में समेटता है. दोनों गीतों के बोल और धुन एक होने के बावजूद भी संगीत संयोजन और आवाजों के मुक्तलिफ़ अंदाजों के चलते दो अलग अलग गीत से सुनाई पड़ते हैं, और दोनों ही आपके दिल को छू जाते हैं, काफी समय से एक अच्छे ब्रेक की तलाश में चल रहे गीतकार कुमार के लिए इससे बेहतर प्लेटफोर्म नहीं हो सकता था और उन्होंने चालू शायरी के पुट में यक़ीनन अच्छी खासी गरिमा भरी है, दोस्तों यकीन मानिये इस तरफ के गीत लिखने में एक गीतकार को खासी मेहनत करनी पड़ती है. आधुनिक नारी के श्रृंगार प्रसाधनों को एक तार में पिरोता ये गीत बेहद ही खूबसूरत है. और साल के बेहतरीन गीतों में एक है. संगीतकार मीत ब्रोस अनजान और गीतकार कुमार को खासी बधाई. कहने की जरुरत नहीं कि सोनू की ठहराव से भरी गायिकी और कैलाश का लोक अंदाज़ गीत का बोनस है.
कई साल पहले आई फिल्म शूल के लिए शंकर एहसान लॉय ने एक आइटम गीत रचा ‘यु पी बिहार लूटने’ जो शिल्प शेट्टी पर फिल्माया गया था, उसी धमाकेदार गीत को मीत ब्रोस ने एक बार फिर एक नए अंदाज़ में उभारा है और इसे किसी अभिनेत्री पर नहीं बल्कि फिल्म के दो नायकों पर फिल्माया गया है. जहाँ सुखविंदर और दलेर प्राजी की दमदार आवाज़ के साथ महरास्त्रियन लावनी का फ्लेवर जमाया खुद रितेश देशमुख ने अपनी आवाज़ के जरिये. ये मस्त मस्त गीत खुल कर नाचने के लिए है बस.
अल्बम का अंतिम गीत “वोल्यूम हाई करले” बहुत मजेदार नहीं बन पाया है, और अल्बम के अन्य गीतों के मुकाबले कम इन्नोवेटिव भी है...पर फिर भी “दिल गार्डन”“शर्ट का बट्टन” और “केपेचिनो” गीत काफी है इस अल्बम को ४.१ की रेटिंग देने के लिए. एक बार “शर्ट का बट्टन” के लिए बधाई जो शायद इस फिल्म का सबसे बड़ा आकर्षण होने वाला है.
नमस्कार दोस्तों! पिछले दस सप्ताहों से 'सिने पहेली' के तीसरे सेगमेण्ट का जो घमासान चल रहा था, वह अब अपने अंजाम तक पहुँच चुका है। गत सोमवार को 'सिने पहेली' की तीसवीं कड़ी में पूछे गए सवालों के जवाब और पूरे सेगमेण्ट के आँकड़ों के साथ मैं, आपका ई-दोस्त, सुजॉय चटर्जी, हाज़िर हूँ इस परिणाम विशेषांक के साथ। आज सबसे पहले मैं स्वागत करना चाहूँगा पिट्सबर्ग के डॉ. महेश बसंतनी का, जो इस सप्ताह 'सिने पहेली' से जुड़े हैं, और प्रतियोगिता में भाग लेते हुए 90 अंक भी बटोरे हैं। महेश जी पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय के एन्डोक्राइनोलोजी विभाग में पोस्ट-डॉकटरल ऐसोसिएट के पद पर कार्य कर रहे हैं। दोस्तों, ब्लॉगर के आँकड़ों के हिसाब से 'रेडियो प्लेबैक इंडिया' के लगभग 50% पाठक/श्रोता भारत में स्थित हैं, जबकि बाकी के 50% विश्व के अलग-अलग देशों से ताल्लुख रखते हैं जिनमें अमरीका, इंगलैण्ड, रूस, संयुक्त अरब अमीरात, ब्राज़िल, पाकिस्तान, कनाडा, फ़्रान्स, नेदरलैण्ड्स, ताइवान, ट्यूनिशिया और जर्मनी मुख्य रूप से शामिल हैं। दुनिया के कोने-कोने से आप 'रेडियो प्लेबैक इंडिया' के वेबसाइट पर पधार रहे हैं, यह हमारे लिए बेहद ख़ुशी की बात है, और इसके लिए हम आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करते हैं।
आइए सबसे पहले आपको बताएँ 'सिने-पहेली-30' में पूछे गए सवालों के सही जवाब।
'सिने पहेली - 30' के सही जवाब
सिने पहेली का पिछला अंक समर्पित था राजेश खन्ना की स्मृति को। उन पर पूछे गए दस सवालों के जवाब ये रहे....
1. "यूं ही तुम मुझसे बात करती हो" (सच्चा झूठा)
2. "और कुछ देर ठहर" (आख़िरी ख़त)
3. श्रीदेवी (मक्सद, मास्टरजी, नज़राना, नया कदम)
4. "आधी रोटी सारा कबाब, बोल मेरे मुर्गी कूक-ड़ू-कू" (जनता हवलदार)। इस गीत में राजेश खन्ना और हेमा मालिनी हैं, जबकि फ़िल्म में राजेश खन्ना की नायिका हैं योगिता बाली।
इस प्रश्न के जवाब में अधिकतर खिलाड़ियों ने "बागों में बहार है" गीत लिखा है जो ग़लत है क्योंकि न तो इसमें पहेलियों की लड़ाई है (महज़ सवाल जवाब हैं) और न ही राजेश खन्ना नायिका के अलावा किसी अन्य अभिनेत्री के साथ हैं। इस गीत में फ़रीदा जलाल हैं जो राजेश खन्ना के उस चरित्र की नायिका भी हैं।
5. 'महबूबा' और 'कुदरत'
6. "जवानी ओ दीवानी तू ज़िंदाबाद" (आन मिलो सजना)
7. 'डोली'
8. 'अनुरोध'
9. 'बावर्ची'
10. "जय गोविंदम जय गोपालम..... इत्तेफ़ाकम राजेश खन्नाम" (आँसू और मुस्कान), "सातों जनम तुझको पाते..... जो तू होती डिम्पल कपाडिया हम भी तो काका होते" (हीरो नंबर वन)। इन दो गीतों के अलावा 1974 की फ़िल्म 'राजा काका' में एक गीत था "काका हूँ मैं राजा काका"। यह फ़िल्म अपने आप में राजेश खन्ना को समर्पित थी। फ़िल्म के नायक किरण कुमार ने राजेश खन्ना के अंदाज़ में ही अभिनय किया था। फ़िल्म 'रब ने बना दी जोड़ी' के गीत "हम हैं राही प्यार के, फिर मिलेंगे चलते चलते" में राजेश खन्ना के नाम का उल्लेख तो नहीं है, पर फ़िल्मांकन में ज़रूर है।
'सिने पहेली - 30' का परिणाम
1. प्रकाश गोविन्द, लखनऊ --- 100 अंक
2. क्षिति तिवारी, जबलपुर --- 100 अंक
3. अल्पना वर्मा, अल-आइन, यू.ए.ई --- 90 अंक
4. तरुशिखा सुरजन, नई दिल्ली --- 90 अंक
5. महेश बसंतनी, पिट्सबर्ग, यू.एस.ए --- 90 अंक
6. विजय कुमार व्यास, बीकानेर --- 90 अंक
7. गौतम केवलिया, बीकानेर --- 90 अंक
8. पंकज मुकेश, बेंगलुरू --- 90 -अंक
9. रीतेश खरे, मुंबई --- 80 अंक
10. नीरजा श्रीवास्तव, सोनभद्र, यू.पी --- 80 अंक
11. शुभ्रा शर्मा, नई दिल्ली --- 80 अंक
12. मनु बेतख़ल्लुस, नई दिल्ली --- 70 अंक
13. चन्द्रकांत दीक्षित, लखनऊ --- 70 अंक
14. अदिति चौहान, देहरादून --- 60 अंक
और अब 'सिने पहेली' के तीसरे सेगमेण्ट के प्रथम तीन स्थान पाने वाले खिलाड़ी ये रहे....
प्रथम स्थान
क्षिति तिवारी व प्रकाश गोविंद
द्वितीय स्थान
गौतम केवलिया
तृतीय स्थान
रीतेश खरे
'सिने पहेली' प्रतियोगिता के तीसरे सेगमेण्ट का सम्मिलित स्कोर-कार्ड यह रहा...
क्षिति तिवारी, प्रकाश गोविंद, गौतम केवलिया और रीतेश खरे को हार्दिक बधाई। आप चारों को 'महाविजेता स्कोरकार्ड' में अंक प्राप्त हो रहे हैं। अब तक का 'महाविजेता स्कोरकार्ड' यह रहा...
पंकज मुकेश, विजय कुमार व्यास, अल्पना वर्मा, शुभ्रा शर्मा, चन्द्रकान्त दीक्षित, तरुशिखा सुरजन और सलमन ख़ान को भी बधाई और अगले सेगमेण्ट के लिए शुभकामनाएँ। वैसे सलमन भाई ने पिछली कड़ी में भाग न लेकर हमें बड़ा हतोत्साहित किया, और वो प्रथम स्थान से लुढ़क कर सीधे नौवे स्थान पर आ गए। आपकी क्या मजबूरी रही होगी ज़रूर बताइएगा ईमेल के द्वारा।
'सिने पहेली- 30' में कुल 26 खिलाड़ियों ने भाग लिया, जिनमें से केवल पाँच खिलाड़ी ऐसे हैं जिन्होंने इस सेगमेण्ट का एक भी एपिसोड मिस नहीं किया। और देखिए, ये ही पाँच खिलाड़ी आज स्कोरकार्ड में सबसे उपर बिराजमान हैं। अत: हम सभी खिलाड़ियों से यही निवेदन करना चाहते हैं कि अगले सेगमेण्ट से आप नियमित रूप से इस प्रतियोगिता में भाग लें, इधर आपने एक एपिसोड मिस किया कि बाकी खिलाड़ी आपसे चार कदम आगे निकल गए।
तो दोस्तों, आज बस इतना ही। 'सिने पहेली' के चौथे सेगमेण्ट की पहली कड़ी, यानी कि 'सिने पहेली' की 31वीं कड़ी के साथ मैं पुन: उपस्थित होऊँगा इसी सप्ताह शनिवार की सुबह, अर्थात् 4 अगस्त को, और हम सब फिर से जुट जायेंगे चौथे सेगमेण्ट की लड़ाई में। नए खिलाड़ियों के लिए इस प्रतियोगिता के नियम हम अगले अंक में दुबारा बतायेंगे। तो ज़रूर पधारिएगा इस मज़ेदार प्रतियोगिता में। एक बार फिर से सभी विजेताओं और सभी खिलाड़ियों को बधाई और शुभकामना देते हुए आज मैं आपसे विदा लेता हूँ, फिर मिलेंगे, नमस्कार!
'सिने पहेली' की अगली कड़ी इसी शनिवार 4 अगस्त सुबह 9:30 बजे पोस्ट होगी, भाग लेना न भूलें...
बाहर पावस की रिमझिम फुहार और आपकी ‘स्वरगोष्ठी’ में मल्हार अंग के रागों की स्वर-वर्षा जारी है। ऐसे ही सुहाने परिवेश में ‘वर्षा ऋतु के रंग : मल्हार अंग के रागों का संग’ श्रृंखला की चौथी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का स्वागत करते हुए, आज प्रस्तुत कर रहा हूँ- मल्हार अंग के दो रागों- रामदासी और सूरदासी अथवा सूर मल्हार के स्वरों से अनुगूँजित कुछ चुनी हुई संगीत-रचनाएँ। दोनों रागों के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि इनका नामकरण संगीत के मनीषियों के नामों पर हुआ है। पहले हम राग रामदासी मल्हार के बारे में आपसे चर्चा करेंगे।
रामदासी मल्हार
काफी ठाट के अन्तर्गत माना जाने वाला राग रामदासी मल्हार, दोनों गान्धार (शुद्ध और कोमल) तथा दोनों निषाद से युक्त होता है। इसकी जाति वक्र रूप से सम्पूर्ण होती है। अवरोह में दोनों गान्धार का प्रयोग वक्र रूप से करने पर राग का सौन्दर्य निखरता है। इसका वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। यह राग वर्षा ऋतु के परिवेश का सजीव चित्रण करने में समर्थ होता है, इसलिए इस ऋतु में रामदासी मल्हार का गायन-वादन किसी भी समय किया जा सकता है। आइए, अब हम आपको किराना घराने के सुविख्यात गायक उस्ताद अमीर खाँ के स्वर में राग रामदासी मल्हार का तीनताल में निबद्ध एक खयाल सुनवाते हैं।
राग रामदासी मल्हार के बारे में हमें विशेष जानकारी देते हुए लखनऊ स्थित भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय के गायन-शिक्षक श्री विकास तैलंग ने बताया कि इस राग की रचना ग्वालियर के विद्वान नायक रामदास ने की थी। इस तथ्य का समर्थन विख्यात संगीतज्ञ मल्लिकार्जुन मंसूर भी करते हैं। उनके मतानुसार नायक रामदास मुगल बादशाह अकबर से भी पूर्व काल में थे। श्री तैलंग के अनुसार राग रामदासी मल्हार में शुद्ध गान्धार के उपयोग से उसका स्वरूप मल्हार अंग से अलग व्यक्त होता है। राग का प्रस्तार वक्र गति से किया जाता है, जैसे- सा रे प ग म, प ध नि ध प, म प ग म, प ग(कोमल) म रे सा...। आजकल यह राग अधिक प्रचलन में नहीं है। इस राग का स्वरूप अत्यन्त मधुर होता है। मल्हार के म रे और रे प का स्वरविन्यास इस राग में बहुत लिया जाता है। इस राग के गायन-वादन में राग शहाना और गौड़ का आभास भी होता है। अब हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे है, राग रामदासी मल्हार का गमक से परिपूर्ण वाद्य सरोद पर वादन। वादक हैं, विश्वविख्यात सरोद-वादक उस्ताद अली अकबर खाँ।
रामदासी मल्हार : सरोद पर आलाप और गत : उस्ताद अली अकबर खाँ
सूरदासी अथवा सूर मल्हार
मल्हार अंग के रागों की श्रृंखला का एक और उल्लेखनीय राग है- सूर मल्हार। ऐसी मान्यता है कि इस राग की रचना हिन्दी के भक्त कवि सूरदास ने की थी। इस ऋतु प्रधान राग में निबद्ध रचनाओं में पावस के सजीव चित्रण का गुण तो होता ही है, नायिका के विरह के भाव को सम्प्रेषित करने की क्षमता भी होती है। राग सूर मल्हार काफी थाट का राग माना जाता है। इसकी जाति औडव-षाडव होती है, अर्थात आरोह में पाँच और अवरोह में छः स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इसका वादी मध्यम और संवादी षडज होता है। यह उत्तरांग प्रधान राग है।
इस राग की कुछ अन्य विशेषताओं को रेखांकित करते हुए जाने-माने इसराज और मयूर वीणा वादक श्री श्रीकुमार मिश्र ने बताया कि सूर मल्हार का मुख्य अंग है- सा [म]रे प म, नी(कोमल) म प, नी(कोमल)ध प, म रे सा होता है। राग के गायन-वादन में यदि सारंग झलकने लगे तो नी(कोमल) ध s म प नी(कोमल) ध s प स्वरों का प्रयोग करने से सारंग तिरोहित हो जाता है। श्री मिश्र के अनुसार सारंग के भाव में मेघ मल्हारांश उद्वेग के चपल और गम्भीर ओज से युक्त भाव में देसान्श के विरह भाव के मिश्रण से कसक-युक्त उल्लास में वेदना के मिश्रण से नये रस-भाव का सृजन होता है। अब आप पण्डित भीमसेन जोशी से सुनिए, राग सूर मल्हार में दो मनमोहक रचनाएँ। मध्यलय का खयाल- ‘बादरवा गरजत आए...’ एकताल में और द्रुतलय की रचना- ‘बादरवा बरसन लागे...’ तीनताल में निबद्ध है।
सूर मल्हार : ‘बादरवा गरजत आए...’ और ‘बादरवा बरसन लागे...’ : पण्डित भीमसेन जोशी
फिल्मी संगीतकारों ने वर्षा ऋतु के इन दोनों रागों- रामदासी और सूर मल्हार, पर आधारित एकाध गीत ही रचे हैं। रामदासी मल्हार पर आधारित एक भी ऐसा गीत नहीं मिला, जिसमें वर्षा ऋतु के अनुकूल भावों की अभिव्यक्ति हो। हाँ, सूर मल्हार पर आधारित, बसन्त देसाई का संगीतबद्ध किया एक कर्णप्रिय गीत अवश्य उपलब्ध हुआ। अब हम आपको वही गीत सुनवा रहे है। १९६७ में प्रदर्शित फिल्म रामराज्य का यह गीत भरत व्यास ने लिखा, बसन्त देसाई ने संगीतबद्ध किया और लता मंगेशकर ने स्वर दिया है। आप यह गीत सुनिए और मुझे इस अंक से यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए।
फिल्म रामराज्य : ‘डर लागे गरजे बदरवा...’ : लता मंगेशकर
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ में जारी संगीत-पहेली का आज से आरम्भ हो रहा है चौथा और एक नया सेगमेंट। आप जानते ही हैं कि ५१वें अंक से हमने संगीत पहेली को दस-दस अंकों की श्रृंखलाओं (सेगमेंट) में बाँटा था। पाँचवें सेगमेंट अर्थात १००वें अंक तक जो प्रतियोगी सर्वाधिक सेगमेंट का विजेता होगा, वही ‘महाविजेता’ के रूप में पुरस्कृत किया जाएगा। ७९वें अंक तक की पहेली के उत्तर हमें प्राप्त हो चुके हैं और ८०वें अंक की पहेली के उत्तर भेजने की अवधि अभी बीती नही है, अतः आज के अंक में हम सभी प्रतियोगियों के ७९वें अंक तक के कुल प्राप्तांक की घोषणा कर रहे हैं। अगले अंक में तीसरे सेगमेंट के विजेता के नाम की घोषणा, ८०वें अंक की पहेली के प्राप्तांक जोड़ कर करेंगे।
आज की संगीत-पहेली में हम आपको सुनवा रहे हैं, कण्ठ-संगीत का एक अंश। इसे सुन कर आपको हमारे दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ९०वें अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले पाठक/श्रोता हमारी चौथी पहेली श्रृंखला के ‘विजेता’ होंगे।
१ - संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि उत्तर भारतीय संगीत की यह परम्परागत शैली किस नाम से जानी जाती है?
२ – इस गीत के गायक कौन हैं?
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ८३वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा radioplaybackindia@live.com पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के ७९वें अंक में हमने आपको द्रुत तीनताल में निबद्ध खयाल का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग गौड़ मल्हार और दूसरे का उत्तर है- गायिका विदुषी मालिनी राजुरकर। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर मीरजापुर (उ.प्र.) के डॉ. पी.के. त्रिपाठी, जबलपुर की क्षिति तिवारी, लखनऊ के प्रकाश गोविन्द और पटना की अर्चना टण्डन ने दिया है। वाराणसी के अभिषेक मिश्रा ने राग का नाम तो सही पहचाना किन्तु गायिका को पहचानने में भूल की। उन्हें एक अंक से ही सन्तोष करना होगा। सभी विजेताओं को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से हार्दिक बधाई। ७९वें अंक तक पहेली के सभी प्रतिभागियों के अंकों का योग इस प्रकार है-
१– क्षिति तिवारी, जबलपुर – १८
२- डॉ. पी.के. त्रिपाठी, मीरजापुर – १२
३– अर्चना टण्डन, पटना – ९
४– प्रकाश गोविन्द, लखनऊ – ६
५- अभिषेक मिश्रा, वाराणसी – २
५– अखिलेश दीक्षित, मुम्बई – २
५– दीपक मशाल, बेलफास्ट (यू.के.) – २
झरोखा अगले अंक का
‘स्वरगोष्ठी’ में इन दिनों सप्त-स्वरों की रस-वर्षा जारी है। अगले अंक में ऋतु प्रधान मल्हार अंग के रागों से थोड़ा अलग हट कर आपसे चर्चा करेंगे। परन्तु वह वर्षा ऋतु का ही संगीत होगा। इसके साथ ही अगले अंक में संगीत-पहेली के तीसरे सेगमेंट के विजेता की घोषणा भी करेंगे। अगले रविवार को प्रातः ९=३० बजे आप और हम ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नये अंक में पुनः मिलेंगे। तब तक के लिए हमें विराम लेने की अनुमति दीजिए।