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प्लेबैक इंडिया वाणी (10) जिस्म और '...और प्राण'

संगीत समीक्षा - जिस्म



विशेष फिल्म्स या कहें भट्ट कैम्प की फिल्मों के संगीत से हमेशा ही मेलोडी की अपेक्षा रहती है. ये वाकई हिम्मत की बात है कि जहाँ दूसरे निर्माता निर्देशक चालू और आइटम गीतों से अपनी अल्बम्स को भरना चाहते हैं वहीँ भट्ट कैम्प ने कभी भी आइटम गीतों का सहारा नहीं लिया.


एक अल्बम के लिए एक से अधिक संगीतकारों को नियुक्त करने की परंपरा को भी भट्ट कैम्प ने हमेशा बढ़ावा दिया है, आज हम भट्ट कैम्प की नयी फिल्मजिस्म २ के संगीत की चर्चा करेंगें, इसमें भी ६ गीतों के लिए ४ संगीतकार जोड़े गए हैं. भारतीय मूल की विदेशी पोर्न स्टार सन्नी लियोनि को लेकर जब से इस फिल्म की घोषणा हुई है तब से फिल्म की हर बात सुर्ख़ियों में रही है. आईये नज़र दौडाएँ फिल्म के गीतों पर.


पियानो और रिदम गिटार के सुन्दर प्रयोग से निखार पाता है के के की आवाज़ में महकता गीत अभी अभी. के के की सुरीली और डूबी हुई आवाज़ में सरल सी धुन और मुखरित होकर खिल जाती है और इस रोमांटिक गीत में श्रोता डूब सा जाता है. शब्द भी अच्छे हैं, गीत का एक युगल संस्करण भी है जिसमें के के का साथ दिया है श्रेया घोषाल ने.
दिल्ली की गायिका सोनू कक्कड को आश्चर्य है कि कम ही मौके मिले हैं मगर जब भी उन्हें कोई अच्छा मौका मिला उन्होंने अपनी काबिलियत को खुल कर बिखरने दिया है अपनी आवाज़ के जरिये. अल्बम के दूसरे गीत ये कसूर में सोनू की ही आवाज़ है. मिथुन के स्वरबद्ध इस गीत को खुद उन्होंने ही लिखा है. धुन में हालाँकि कुछ नयापन नहीं है मगर फिर भी मेलोडी दिल को छू जाती है, गीत के लिए सोनू का चयन इसकी सबसे बड़ी सफलता कही जायेगी.
नब्बे के दशक मे जूनून के नाम से मशहूर हुए पाकिस्तानी बैंड को भट्ट कैम्प ने पहले भी अपनी फिल्मों में जगह दी है. जिस्म २ में भी जूनून बैंड के अली अजमत की दमदार आवाज़ में मौला गीत दर्द और अकेलेपन की पीड़ा को बखूबी उभारता है. अली की आवाज़ इस रोक जोनर के गीत को खासा नयापन भी देता है. शब्दों में भी गहराई है.
वोइलिन का खूबसूरत प्रयोग है ये जिस्म है गीत में जिसके बारे में कहा गया है कि ये एक तुर्किश गीत से प्रभावित है. अज़मत की आवाज़ यहाँ एक बार फिर जादू सा असर करती है. ये एक ऐसा गीत है जिसे आप बार बार सुनना चाहेगें. गीतकार ने गीत के असर को कायम रखने में अहम भूमिका निभायी है.
इसके अलावा अल्बम में पाकिस्तान के एक और बैंड रुश्क का रचा एक गीत भी है जिसे नाजिया जुबेरी हसन ने गाया है, ये कुछ हैवी मेटल सरीखा गीत है जहाँ शब्दों को सुनने के लिए आपके कानों को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ सकती है. भारतीय सन्दर्भों में अभी इस तरह के गीतों की कामियाबी के आसार कम ही हैं. अल्बम में एक अंग्रेजी गीत भी है उनूषा का गाया हे वल्ला जो एक बार फिर भट्ट कैम्प की परंपरा अनुसार अल्बम में विविधता भरता है. कुल मिलाकर मेलोडियस है जिस्म २ का संगीत. रेडियो प्लेबैक इसे दे रहा है ३.३ की रेटिंग.   

 
पुस्तक चर्चा - ...और प्राण  
अभिनय के दौरान अभिनेता को ऐसी भावनाओं और भाव-भंगिमाओं को, जो वस्तुत: उसकी अपनी नहीं हैं, इस तरह व्यक्त करना होता है कि वे जीवंत हो उठें. प्राण की जीवनी ..एंड प्राण लिखी है बन्नी रुबेन ने।  हार्पर कोलिंस से यह किताब पहले आ चुकी है. हिंद पॉकेट बुक्स ने इसका हिंदी अनुवाद प्रकाशित किया  है ..और प्राण. अनुवाद किया है अजीत बच्छावत ने. भूमिका लिखी है अमिताभ बच्चन ने.
प्राण को The Villain of the Millennium” कहा जाता है. उन्होंने फिल्मी करियर में क्रूरतम पात्रों की भूमिकाएं निभाई और इतना जीवंत बना दिया कि लोग उन्हें उसी पात्र के रूप में देखने लगे. प्राण ने अभिनय नहीं करा बल्कि पात्रों को जिया हैं. पात्र के चरित्र से लेकर चाल-ढाल, बातचीत का अंदाज, रुचियां व जीवनशैली इतनी सहज और जीवंत कर देते थे कि दर्शकों को लगता ही नहीं कि वे फिल्म देख रहे हैं.  किताब में एक प्रसंग है कि एक बार प्राण साहब का बेटा उन्हें लेने सेट पर गया. पापा को न पाकर उसने आवाज लगाई-पापा आप कहां हैं? तभी वहां खडे एक आदमी ने कहा-बेटा मैं यहां हूं. प्राण को बदले रूप में उनका बेटा भी न पहचान सका. प्राण पहले अपनी भूमिका पढते थे, फिर अभिनय का अंदाज और बोलने का लहजा तय करने के लिए घंटों सोचते. इनकी जीवनी से जाहिर होता है कि प्राण अंतर्मुखी स्वभाव के हैं.
शुरुआत में प्राण की छवि खलनायक की बनी. राज कपूर ने पहली बार फिल्म आह में प्राण को सकारात्मक भूमिका दी. बॉक्स ऑफिस पर फिल्म बुरी तरह पिट गई तो निर्देशक डर गए और उन्हें नकारात्मक भूमिका में typecast  करने लगे. इसे गलत साबित किया मनोज कुमार ने. उपकार में उन्होंने प्राण पर गीत फिल्माने का प्रस्ताव किया तो कल्याणजी-आनंदजी ने विरोध करा. सोचा कि अगर प्राण पर गाना फिल्माया गया तो गाने का बुरा हश्र होना निश्चित है.  किशोर कुमार ने तो गीत ही गाने से मना कर दिया. मन्ना डे ने चेलेंज स्व्वेकर करा और गाना कसमे वादे प्यार वफा गाया और गाना सुपर हिट रहा.
प्राण निजी जीवन में समय  के पाबंद, उदार, परोपकारी, सहकर्मियों के साथ मौज-मस्ती करने वाले, शेरो-शायरी के शौकीन, फक्कड स्वभाव वाले इंसान रहे हैं.
जब राज कपूर संगम फिल्म के बाद आर्थिक संकट से जूझ रहे थे, तब प्राण ने एक रुपये के सांकेतिक पारिश्रमिक पर फिल्म साइन की थी।
इस किताब का नाम और प्राण रखने के पीछे तर्क यह है कि फिल्म में सारे कलाकारों के नाम के बाद अंत में प्राण का नाम आता था और प्राण’. 
 
  और अंत में आपकी बात- अमित तिवारी के साथ



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