Skip to main content

प्लेबैक वाणी (3) -शंघाई, टोला और आपकी बात

संगीत समीक्षा - शंघाई



खोंसला का घोंसला हो या ओए लकी लकी ओए हो, दिबाकर की फिल्मों में संगीत हटकर अवश्य होता है. उनका अधिक रुझान लोक संगीत और कम लोकप्रिय देसिया गीतों को प्रमुख धारा में लाने का होता है. इस मामले में ओए लकी का संगीत शानदार था, तू राजा की राजदुलारी और जुगनी संगीत प्रेमियों के जेहन में हमेशा ताज़े रहेंगें जाहिर है उनकी नयी फिल्म शंघाई से भी श्रोताओं को उम्मीद अवश्य रहेगी. अल्बम की शुरुआत ही बेहद विवादस्पद मगर दिलचस्प गीत से होती है जिसे खुद दिबाकर ने लिखा है. भारत माता की जय एक सटायर है जिसमें भारत के आज के सन्दर्भों पर तीखी टिपण्णी की गयी है. सोने की चिड़िया कब और कैसे डेंगू मलेरिया में तब्दील हो गयी ये एक सवाल है जिसका जवाब कहीं न कहीं फिल्म की कहानी में छुपा हो सकता है, विशाल शेखर का संगीत और पार्श्व संयोजन काफी लाउड है जो टपोरी किस्म के डांस को सप्पोर्ट करती है. विशाल ददलानी ने मायिक के पीछे जम कर अपनी कुंठा निकाली है. अल्बम का दूसरा गीत एक आइटम नंबर है मगर जरा हटके. यहाँ इशारों इशारों में एक बार फिर व्यंगात्मक टिप्पणियाँ की गयी है, जिसे समझ कर भरपूर एन्जॉय किया जा सकता है.  इम्पोर्टेड कमरिया का नौटकी नुमा अंदाज़ श्रोताओं को रास आ सकता है. गीतकार कुमार ने अच्छे शब्द बुने हैं दुआ गीत के लिए वहीँ नंदनी श्रीकर की आवाज़ अच्छी जमी है भरे नैना गीत में. खुदाया अल्बम का सर्वश्रेष्ठ गीत प्रतीत होता है. इस सूफी अंदाज़ के गीत में श्रोताओं को काफी गहराई नज़र आएगी. मोर्चा गीत संभवता फिल्म के क्लाईमेक्स में आता होगा जहाँ, क्रांति का बिगुल है और अन्याय के खिलाफ उठ खड़े होने का जज्बा दिखाता रोष है, ये गीत अन्ना और उनकी टीम को निश्चित ही प्रेरित करेगा. भगवान विष्णु के १००० नामों की ध्वनि है मंत्र विष्णु सहस्र्नामम में, जिसको प्रमुख धारा की एक बॉलीवुड अल्बम में शामिल करना वाकई हिम्मत का काम है. विशाल शेखर यहाँ कहानी वाला जादू तो यहाँ नहीं रच पाए मगर निराश भी नहीं करते. कुल मिलाकर शंघाई के संगीत को रेडियो प्लेबैक की और से दी जा रही है २.८ की रेटिंग  


पुस्तक चर्चा - टोला




पिकरेस्क (picaresque) यानी कि स्लमडोग मिलेनियर सरीखी कहानियों का चलन हर भाषा के साहित्य में मिलता है. ऐसा ही एक उपन्यास है रमेश दत्त दुबे लिखित "टोला". यहाँ ये कहानी इस श्रेणी की अन्य कहानियों जैसे निराला की "बिल्लेसुर बकरिहा" और "कुल्लीभाट" या फिर केदारनाथ अग्रवाल की "पतिया" जैसे उपन्यासों से अलग इस मामले में भी है कि ये व्यक्ति केंद्रित न होकर समूह केंद्रित अधिक है. बकौल कांति कुमार जैन रमेश के टोले में रहने वाले वो लोग हैं जो समाज के सबसे निचले स्तर पर है या कहें कि हाशिए पर हैं, उनके होने न होने से किसी को कुछ फरक नहीं पड़ता, वो बीडी और अवैध शराब बनाते हैं, गर्भपात करवाते हैं, स्त्रियां जंगल से लकड़ी बीन कर लाने, देह व्यापार करने, लड़ने झगडने और पति की मार खाने के लिए ही जन्म लेती है यहाँ. बाढ़, सूखा और महामारी में कभी पूरा का पूरा टोला खतम हो जाता है मगर कुछ दिनों बाद फिर से बस भी जाता है. किसी बेहतर जीवन का न कोई वादा, न कोई यकीं, न कोई उम्मीद...मगर लेखक इन घुप्प अंधेरों में भी कहीं मानवीय संवेदना तलाश रहा है. दमयंती और मर्दन के प्रेम में जैसे कोई दबी हुई आस टिमटिमा रही है. लेखक ने अपने रियलिस्टिक अप्रोच से पाठकों को बाँध कर रखा है. पृथ्वी का टुकड़ा और गांव का कोई इतिहास नहीं होता जैसे काव्य संग्रह रचने वाले रमेश दत्त दुबे का ये उपन्यास अँधेरी गलियों में जिंदगी के सहर की तलाश है, जो कुछ अलग किस्म का साहित्य पढ़ने को इच्छुक पाठकों को पसंद आ सकती है. उपन्यास के प्रकाशक हैं राधाकृष्ण प्रकाशन और कुल १०७ पृष्ठों की इस उपन्यास की कीमत है १५० रूपए मात्र    


और अंत में आपकी बात, अमित और दीपा तिवारी के साथ

 

Comments

Sajeev said…
geeta ji, swagat aapka podcasting kii duniya men...bahut badhiya awaaz

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की