Skip to main content

२२ फरवरी - आज का गाना


गाना: आज मेरे मन में सखी बाँसुरी बजाए कोई




चित्रपट:आन
संगीतकार:नौशाद अली
गीतकार:शकील
गायिका:लता




ल: आ हा हा...
आज मेरे मन में सखी बाँसुरी बजाए कोई
आज मेरे मन में...
आज मेरे मन में सखी बाँसुरी बजाए कोई
प्यार भरे गीत सखी बार\-बार गाए कोई
बाँसुरी बजाए...
बाँसुरी बजाए, सखी गाए सखी रे, कोई छैलवा हो
को: कोई अलबेलवा हो, कोई छैलवा हो
ल: रँग मेरी जवानी का किए झूमता घर आया है सावन
को: रँग मेरी जवानी का किए झूमता घर आया है सावन
ल: आ हा हा...
हो सखी, हो रे सखी, आया है सावन
को: मेरे नैनों में है साजन

ल: इन ऊँदी घटाओं में, हवाओं में सखी, नाचे मेरा मन
हो सखी, नाचे मेरा मन
को: हो आँगन में सावन मन\-भावन हो जी
ल: हो, इन ऊँदी घटाओं में, हवाओं में सखी, नाचे मेरा मन
को: लल्ला लाला ला लाला
ल: दिल के हिंडोले पे मोहे झूले न झुलाए कोई
को: प्यार भरे गीत सखी, बार\-बार गाए कोई
ल: बाँसुरी बजाए सखी गाए सखी रे
कोई छैलवा हो
को: कोई अलबेलवा हो, कोई छैलवा हो

ल: कहता है इशारों में कोई
आ मोहे अम्बुआ के तले मिल
को: भला वो कौन है घायल
कहता है इशारों में कोई
आ मोहे अम्बुआ के तले मिल
ल: मैं नाम न लूँ
आज लगे लाज सखी धड़के मेरा दिल हो सखी धड़के मेरा दिल
को: हो आँगन में सावन मन\-भावन हो जी
ल: हो, मैं नाम न लूँ
आज लगे लाज सखी धड़के मेरा दिल हो सखी धड़के मेरा दिल
को: लल्ला लाला ला लाला
ल: तार पे जीवन के मधुर रागिनी सुनाए कोई
को: प्यार भरे गीत सखी बार\-बार गाए कोई
ल: बाँसुरी बजाए सखी गाए सखी रे
ल: कोई छैलवा हो
को: कोई अलबेलवा हो, कोई छैलवा हो




Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की