Skip to main content

तुम इतना जो मुस्कुरा रही हो....जब कैफी के सवालों को स्वरों में साकार किया जगजीत ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 770/2011/210

मस्कार! श्रोता-मित्रों, गत १० अक्टूबर को काल के क्रूर हाथों नें हमसे छीन लिया एक बेमिसाल फ़नकार को। ये वो फ़नकार रहे जिनकी मख़मली आवाज़ नें ग़ज़ल गायकी को न केवल एक नया आयाम दिया, बल्कि छोटे, बड़े, बूढ़े, हर पीढ़ी के चहेते ग़ज़ल गायक बन कर उभरे। ग़ज़ल-सम्राट जगजीत सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। ब्रेन-हैमरेज की वजह से उन्हें २३ सितम्बर को मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया था। १८ दिनों तक ज़िन्दगी और मौत के बीच लड़ाई चली और आख़िर में मौत हावी हो गया, और १० अक्टूबर सुबह ८:१० बजे जगजीत जी इस फ़ानी दुनिया को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह गए। ऐसा लगा जैसे उन्हीं का गाया वह गीत उन पर लागू हो गया कि "चिट्ठी न कोई संदेस, जाने वह कौन सा देस, जहाँ तुम चले गए"। पर जीवितावस्था में जगजीत जी जो काम कर गए हैं, वो उन्हें अमर बना दिया है। जब जब ग़ज़ल गायकी की बात चलेगी, जब जब ग़ज़लों का ज़िक्र छिड़ेगा, तब तब जगजीत सिंह का नाम सम्मान से लिया जाएगा। स्वर्गीय जगजीत सिंह को 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से श्रद्धांजली स्वरूप आज से हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर शुरु कर रहे हैं उन्हीं को समर्पित लघु शृंखला 'जहाँ तुम चले गए'। दोस्तों, यूं तो जगजीत सिंह एक महान ग़ज़ल गायक के रूप में जाने जाते रहेंगे, पर यही एक क्षेत्र नहीं था उनकी महारथ का। वो न केवल एक बेहतरीन गायक थे, बल्कि एक सुरीले संगीतकार भी थे। ग़ज़लें तो उन्होंने कम्पोज़ की ही, कई फ़िल्मों में कई सुमधुर गीतों का संगीत भी उन्होंने तैयार किया है। और क्योंकि 'ओल्ड इज़ गोल्ड' मूलत: फ़िल्मी गीतों पर आधारित स्तंभ है, इसलिए इस शृंखला में हम जगजीत की आवाज़ का जादू तो बिखेरेंगे ही, पर ज़्यादातर वो गीत शामिल किए जाएंगे जिन्हें उन्होंने स्वरब्द्ध किया है और अन्य गायक-गायिकाओं नें अपनी आवाज़ें बख्शी हैं।

'जहाँ तुम चले गए' शृंखला की पहली कड़ी हम जगजीत जी की मखमली आवाज़ से ही सजाना चाहेंगे। फ़िल्म 'अर्थ' में उनका और चित्रा जी का संगीत था और इस फ़िल्म के तमाम गीत और ग़ज़लें उन दोनों नें ही गाए थे। फ़िल्म का हर गीत लाजवाब, हर ग़ज़ल बेहतरीन। जब भी इस फ़िल्म की रचनाओं में से एक को चुनने की बात आती है तो बड़ी दुविधा होती है कि किसे चुने और किसे छोड़ दें। "झुकी झुकी सी नज़र", "तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो", "कोई ये कैसे बताये कि वो तन्हा क्यों है", "तेरे ख़ूशबू में बसे ख़त" और "तू नहीं तो ज़िन्दगी में और क्या रह जाएगा"। आज के लिए हमने चुना है "तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो"। जगजीत जी के चेहरे पर एक मुस्कुराहट ज़रूर बनी रहती थी, पर उनके मन में एक गहरा ग़म भी छुपा हुआ था। उनका एकलौता जवान बेटा विवेक एक कार ऐक्सिडेण्ट में चल बसा। किसी बाप के लिए अपने बेटे के जनाज़े से ज़्यादा बोझ और किस चीज़ का हो सकता है भला! ख़ैर, 'अर्थ' फ़िल्म की बात करें, तो यह १९८२ की महेश भट्ट की फ़िल्म थी जिसमें शबाना आज़मी, कुलभूषण खरबन्दा, स्मिता पाटिल, राज किरण और रोहिणी हत्तंगड़ी नें मुख्य भूमिकाएँ निभाईं। दोस्तों, इस फ़िल्म की तमाम जानकारियाँ हमनें अपनी उस कड़ी में दिया था जिसमें हमने इस फ़िल्म से "तू नहीं तो..." ग़ज़ल सुनवाई थी। आज जब जगजीत जी हमारे बीच नहीं हैं, ऐसा लगता है कि चित्रा जी की गाई इस ग़ज़ल का एक एक शब्द सच हो गया है -"तू नहीं तो ज़िन्दगी में और क्या रह जाएगा, दूर तक तन्हाइयों का सिलसिला रह जाएगा"। पहले बेटे और अब पति को खोने के बाद आज चित्रा जी की मनस्थिति क्या होगी, इसका हम भली-भाँति अंदाज़ा लगा सकते हैं। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि जगजीत जी की आत्मा को शान्ति दें और चित्रा जी को शक्ति दें इस कठीन स्थिति से गुज़रने की। 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से जगजीत सिंह की पुण्य स्मृति को नमन! सुनते हैं "तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो" और याद करते हैं जगजीत के उसी हर-दिल-अज़ीज़ मुस्कुराते हुए चेहरे को। इस ग़ज़ल को लिखा है कैफ़ी आज़मी नें। और हाँ, जगजीत जी के निधन पर 'अर्थ' के फ़िल्मकार महेश भट्ट नें अपने ट्विटर पेज पर लिखा है - "Just heard the news that Jagjit Singh has paased away. My film ARTH would not have touched the hearts of millions of people without the contribution of Jagjit Singh. Thank you friend.Thank you."



चलिए अब खेलते हैं एक "गेस गेम" यानी सिर्फ एक हिंट मिलेगा, आपने अंदाजा लगाना है उसी एक हिंट से अगले गीत का. जाहिर है एक हिंट वाले कई गीत हो सकते हैं, तो यहाँ आपका ज्ञान और भाग्य दोनों की आजमाईश है, और हाँ एक आई डी से आप जितने चाहें "गेस" मार सकते हैं - आज का हिंट है -
जगजीत सिंह द्वारा संगीतबद्ध ये गीत शुरू होता है इस शब्द से "सिन्दूर"

पिछले अंक में
अमित जी अब समझे कौन सी मशहूर गज़ल है ये ?
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

मेरे सावरियां फिल्म 'कानून की आवाज़', जयाप्रदा पर फिल्माया गया है, लता जी ने गाया है.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की