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"सैयाँ रूठ गए, मैं मनाती रही..." रूठने और मनाने के बीच विरहिणी नायिका का अन्तर्द्वन्द्व

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 699/2011/139

पशास्त्रीय संगीत की अत्यन्त लोकप्रिय शैली -ठुमरी के फिल्मों में प्रयोग विषयक श्रृंखला "रस के भरे तोते नैन" की उन्नीसवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ| दोस्तों; आज का अंक आरम्भ करने से पहले आपसे दो बातें करने की इच्छा हो रही है| इस श्रृंखला को प्रस्तुत करने की योजना जब सुजॉय जी ने बनाई तब से सैकड़ों फ़िल्मी ठुमरियाँ मैंने सुनी, किन्तु इनमे से भक्तिरस का प्रतिनिधित्व करने वाली एक भी ठुमरी नहीं मिली| जबकि आज मुख्यतः श्रृंगार, भक्ति, आध्यात्म और श्रृंगार मिश्रित भक्ति रस की ठुमरियाँ प्रचलन में है| पिछली कड़ियों में हमने -कुँवरश्याम, ललनपिया, बिन्दादीन महाराज आदि रचनाकारों का उल्लेख किया था, जिन्होंने भक्तिरस की पर्याप्त ठुमरियाँ रची हैं| परन्तु फिल्मों में सम्भवतः ऐसी ठुमरियों का अभाव है| पिछले अंकों में हम यह भी चर्चा कर चुके हैं कि उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों से तवायफों के कोठे से हट कर जनसामान्य के बीच ठुमरी का प्रचलन आरम्भ हो चुका था| देश के स्वतंत्र होने तक ठुमरी अनेक राष्ट्रीय और प्रादेशिक महत्त्व के संगीत समारोहों के प्रतिष्ठित मंच पर शोभा पा चुकी थी| परन्तु फिल्मों में पाँचवें से लेकर आठवें दशक तक ठुमरी का चित्रण तवायफों के कोठों तक ही सीमित रहा|

चौथे दशक की फ़िल्मी ठुमरियों से आरम्भ हमारी यह श्रृंखला अब आठवें दशक में पहुँच चुकी है| आज हम जो ठुमरी प्रस्तुत करने जा रहे हैं, वह 1978 में प्रदर्शित फिल्म "मैं तुलसी तेरे आँगन की" से लिया गया है| परन्तु इससे पहले आपका परिचय वर्तमान ठुमरी-कलासाधक पण्डित अजय चक्रवर्ती से कराना आवश्यक है| श्री चक्रवर्ती वर्तमान में ठुमरी ही नहीं, एक श्रेष्ठ ख़याल गायक के रूप में लोकप्रिय हैं| 1953 में जन्में अजय चक्रवर्ती को प्रारम्भिक संगीत शिक्षा अपने पिता अजीत चक्रवर्ती, पन्नालाल सामन्त और कन्हाईदास बैरागी से प्राप्त हुई| संगीत की उच्चशिक्षा उन्हें (पद्मभूषण) ज्ञानप्रकाश घोष से मिली| अजय चक्रवर्ती को घरानेदार गायकी की दीक्षा, पटियाला (कसूर) घराने के संवाहक उस्ताद मुनव्वर अली खाँ (उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ के सुपुत्र) ने दी| आज वह पटियाला गायकी के सिद्ध गायक हैं| रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी स्नातकोत्तर अजय चक्रवर्ती, पहले ऐसे शास्त्रीय गायक हैं, जिन्हें फिल्म-पार्श्वगायन के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त हो चुका है| 1990 की बाँग्ला फिल्म "छन्दोंनीर" के गीत -"डोलूँ ओ चम्पाबोनेर..." को 1990 का सर्वश्रेष्ठ पुरुष स्वर का गीत चुना गया था| इस गीत के गायक अजय चक्रवर्ती को रास्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के अन्तर्गत "रजत कमल" से सम्मानित किया गया था| वर्तमान में श्री चक्रवर्ती देश के जाने-माने शास्त्रीय-उपशास्त्रीय गायक हैं|

आइए अब हम आज की ठुमरी और उसकी गायिका (पद्मभूषण) शोभा गुर्टू के बारे में कुछ चर्चा करते हैं| सुप्रसिद्ध उपशास्त्रीय गायिका शोभा गुर्टू का जन्म 8 फरवरी,1925 को बेलगाम, कर्नाटक में हुआ था| उनकी प्रारम्भिक संगीत-शिक्षा अपनी माँ मेनका बाई शिरोडकर से हुई जो जयपुर-अतरौली घराने के उस्ताद अल्लादिया खाँ की शिष्या थीं| उस्ताद अल्लादिया खाँ के सुपुत्र भुर्जी खाँ ने शोभा गुर्टू को प्रशिक्षित किया| इसके अलावा उस्ताद नत्थन खाँ से शास्त्रीय और उस्ताद गम्मन खाँ से उपशास्त्रीय संगीत का विशेष प्रशिक्षण भी शोभा जी को प्राप्त हुआ| शोभा गुर्टू को उपशास्त्रीय गायन में बहुत प्रसिद्धि मिली, जबकि वो ख़याल गायकी में भी समान रूप से दक्ष थीं| उनकी गायकी पर आश्चर्यजनक रूप से उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ और बेगम अख्तर की शैली का प्रभाव था| उनकी श्रृंगार पक्ष की गायकी श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित होती थी तथा अध्यात्मिक गायकी पर कबीर का प्रभाव था| कबीर की पुत्री कमाली के नाम से जिन पदों को चिह्नित किया जाता है, ऐसे पदों के गायन में वो अत्यन्त कुशल थीं| उनका विवाह से पूर्व नाम भानुमती शिरोडकर था जो श्री विश्वनाथ गुर्टू से विवाह कर लेमे के बाद बदल कर शोभा गुर्टू हो गया था| 1987 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और २००२ में पद्मभूषण सम्मान सहित अन्य अनेक सम्मानों से अलंकृत किया गया था| शोभा गुर्टू के व्यक्तित्व और कृतित्व की अधिक जानकारी के लिए आप हमारे साप्ताहिक स्तम्भ "सुर संगम" के 22 वें अंक का अवलोकन कर सकते हैं|

आइए अब सुनते हैं 1978 की फिल्म "मैं तुलसी तेरे आँगन की" से ली गई राग "पीलू" की श्रृंगार रस प्रधान ठुमरी -"सैयाँ रूठ गए मैं मनाती रही..."| शोभा गुर्टू के स्वरों में गायी इस परम्परागत ठुमरी पर फिल्म में अभनेत्री आशा पारेख ने आकर्षक नृत्य प्रस्तुत किया है| यह ठुमरी श्रृंगार के विरह पक्ष को रेखांकित करता है| ठुमरी के दूसरे अन्तरे में हल्का सा प्रकृति-चित्रण भी किया गया है, जो नायिका की विरह-वेदना को बढाता है| इस श्रृंखला में शामिल अन्य कई ठुमरियों की तरह इस ठुमरी का फिल्मांकन भी मुजरे के रूप में ही हुआ है| संगीतकार लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल के गीतों को संगीतप्रेमी गीतों में प्रयुक्त ताल वाद्यों के ठेके से पहचान लेते हैं, इस ठुमरी में संगीतकार-द्वय को पहचानने का आप भी प्रयास करें| आप इस रसभरी ठुमरी का आनन्द लीजिए और मैं कृष्णमोहन मिश्र आज आपसे अनुमति लेता हूँ, कल इस श्रृंखला के समापन अंक में आपसे पुनः भेंट होगी, नमस्कार|



क्या आप जानते हैं...
कि 'मैं तुलसी तेरे आंगन की' और 'बदलते रिश्ते' फ़िल्मों के कुछ गीतों को छोड़कर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साल १९७८ के अधिकांश गीत चलताउ किस्म के ही रहे।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 18/शृंखला 19
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - पारंपरिक ठुमरी है
सवाल १ - गायिका पहचाने - 3 अंक
सवाल २ - संगीत संयोजन किसका है - 2 अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - 1 अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
अमित, अवनीश और क्षितिजी को बधाई, इस श्रृंखला में आप सब ने जम कर स्कोर किया है
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

Avinash Raj said…
Hira Devi Mishra
Prateek Aggarwal said…
HiraDevi Mishra
Gayika: Hira Devi Mishra
Kshiti said…
Jaidev
indu puri said…
गमन फिल्म में एक ठुमरी है जिसे हीरादेवी मिश्र ने गाई थी.
इंदु पुरी गोस्वामी
डोली का आईडी काम में ले रही हूँ भाई मेरी तो ब्लोक हो गई है .हा हा हा
indu puri said…
yakiin nhi?are kya kru?aisich hun main to
आती रहूंगी जब तक मेरा मेल आईडी वापस मिल नही जाता तब तक डोली के आईडी से ही सही .आप लोगो से दूर कैसे रह सकती हूँ?

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