Skip to main content

यादों के इडियट बॉक्स से झांकती कुछ स्मृतियाँ रिवाईंड होती, एक कहानी में जज़्ब होकर

Taaza Sur Taal (TST) - 18/2011 - REWIND - NINE LOST MEMORIES A NON FILM ALBUM BY "THE BAND CALLED NINE"

ताज़ा सुर ताल में एक बार हम फिर हाज़िर हैं कुछ लीक से हट कर बन रहे संगीत की चर्चा लेकर. पत्रकारिता में एक कामियाब नाम रहे नीलेश मिश्रा ने काफी समय पहले ट्रेक बदल कर बॉलीवुड का रुख कर लिया था. एक उभरते हुए गीतकार के रूप में यहाँ भी वो एक खास पहचान बना चुके हैं. "जादू है नशा है" (जिस्म), "तुमको लेकर चलें" (जिस्म), "क्या मुझे प्यार है" (वो लम्हें), "गुलों में रंग भरे" (सिकंदर), "आई ऍम इन लव" (वंस अपौन अ टाइम इन मुंबई) और 'अभी कुछ दिनों से (दिल तो बच्चा है जी) खासे लोकप्रिय रहे हैं. निलेश ने संगीत की दुनिया में अपना अगला कदम रखा एक बैंड "द बैंड कोल्ड नाईन" बना कर. आज हम इसी बैंड के नए और शायद पहले अल्बम "रीवायिंड" की यहाँ चर्चा करने जा रहे हैं.

अभी बीते सप्ताह इस अल्बम का दिल्ली में एक भव्य कार्यक्रम में विमोचन हुआ, "मोहल्ला लाईव" के इस कार्यक्रम में मैंने भी शिरकत की. दरअसल नीलेश और उनकी टीम केवल इसी बात से हम सबकी तालियों की हकदार हो जाती है कि उन्होंने इस अल्बम में कुछ बेहद नया कॉसेप्ट ट्राई किया है. जिस तरह हिंद युग्म में अपनी पहली अल्बम "पहला सुर" में कविताओं और गीतों को मिलाकर पेश करने का अनूठा प्रयोग किया था, यहाँ भी एक कवितामयी कहानी है जिसके बीच में गीत भी चलते हैं, यानी "थोड़े गीत थोड़ी कहानी". इस प्रयोग को नाम दिया गया है "किस्सागोई". यानी कि श्रोता को ये भी पता चल जाता है कि अमुख गीत किस सिचुएशन के लिए बना होगा. इस प्रयोग में मगर एक खामी है, गीत आप बार बार सुन सकते हैं, मगर सुनी हुई कहानी को बार बार सुनना शायद बहुत से श्रोता पसंद न करें. मगर मैं आपको बता दूं कि नीलेश की आवाज़ और कहानी को कहने की अदायगी बेहद शानदार और बाँध के रखने वाली है.

अब इस किस्सागोई में जो किस्सा है उसमें छोटे शहर और मध्यमवर्गीय परिवारों के किरदार चुनकर एक रिश्ता कायम करने की कोशिश तो की गयी है, पर कहानी में कुछ खास नयापन नहीं है हाँ उसे कहने के लिए नीलेश ने जो शब्द चुने हैं शानदार हैं बेशक. तो चलिए अब गीतों की बढ़ा जाए.

"इडियट बॉक्स" में वो सब है जो आपके बचपन को आपके लिए रीवायिंड कर देगा. आकाशवाणी की सुबहें और दूरदर्शन की शामें, बड़े सुहाने दिन थे, आज की पीढ़ी को तो शायद यकीन भी न हो उन बातों पर. शिल्पा राव की आवाज़ में वो नोस्टोलोजिया बहुत खूब छलकता है.

छोटे शहर से बड़े शहर में आये एक इंसान की तनहाईयाँ दिखती है "माज़ी" में. सूरज जगन एक उभरते हुए रोक्क् गायक है. पर मुझे शिकायत है कि जब प्रयोग में इतनी ताजगी है तो संगीत में क्यों नहीं. जब आजकल बॉलीवुड में भी सिर्फ और सिर्फ रोक्क् ही चालू है तो "बैंड कोल्ड नाईन" को यहाँ भी कुछ नया करना चाहिए था. गीत में जान आती है शिल्प राव जब 'मोरे पिया' गाती है.

"कोल्लेज में कोई दस बीस साल लंबा कोर्स नहीं होता क्या.." नीलेश पूछते हैं, और वो लड़कपन की यादें एक बार फिर उभरती है इस बार सूरज जगन की आवाज़ में "इडियट बॉक्स" के एक अन्य संस्करण में. "काठ गोदाम की बस ५ बजे जाती है...पूरी फिल्म भी नहीं देखने दी उसने..." के बाद "रूबरू" प्यार के उस अल्हडपन की कहानी है. संगीत पक्ष मुझे यहाँ भी बोलों के लिहाज से कमजोर लगा. धुन वही बढ़िया होती है जो दिल के तार छेड़े और गीत वही यादगार होता है जिसे हम अकेले में गुनगुना सकें. अगला गीत 'शायद" भी आजकल बन रहे बॉलीवुड के गीतों से कुछ खास अलग नहीं है, पर मैं बताता चलूँ कि नीलेश के बोल और उनकी कमेंट्री इन सब गीतों में भी शानदार है. नायक को सामने की बिल्डिंग में अचार के लिए नीम्बू सुखाती औरत को देख कर याद आती है "माँ" और गीत उभरता है "आँगन" "खाली खाली शामों में, उलझन से भरी दुपहरों में, कुछ ढूँढता है मन...." वाह बेहद खूबसूरत है ये गीत, यहाँ सौभाग्यवश संगीत पक्ष भी गीत के बोलों के टक्कर का है, और सूरज जगन ने दिखाया है कि वो गीतों में भाव लाना भी खूब जानते हैं.

टूटते रिश्तों की कहानी बयां करती "नैना तोरे" में शिल्पा खूब जमी है, सुन्दर शब्द और संगीत उनका भरपूर साथ देते हैं. इंटरल्यूड में सितार का सुन्दर इस्तेमाल हुआ है. ट्रांस मिक्स का उत्कृष्ट नमूना है ये गीत. नीलेश खुद माइक के पीछे आकर गाते भी हैं. एक मुश्किल कम्पोजीशन है ये. गज़ल नुमा ये गीत है "उनका ख्याल" जिसे वो अच्छा निभा गए हैं, गायिकी उनकी जैसी भी हो पर भाव पक्ष खूब संभाला है. एक गीत से रिश्ता जोड़ने के लिए ये काफी होता है. अल्बम का अंतिम गीत "दिल रफू" एक डांस नंबर है, जो भरपूर मज़ा देता है. कोंसर्ट के दौरान बहुत से लोगों को इस पर थिरकते देखा. संगीतकार अमर्त्य राहूत यहाँ कामियाब रहे हैं.

कुल मिलाकर ये अलबम आपको बेहद भाएगा ये मैं दावे के साथ कह सकता हूँ. एक नए और लाजवाब प्रयोग को इतने बेहतर तरीके से प्रस्तुत करने के लिए ये पूरी टीम बधाई की हकदार है. हम तो सिफारिश करेंगें कि आप इसे अवश्य सुनें.

आवाज़ रेटिंग - 9/10

मुझे इस अल्बम के गाने कहीं ऑनलाइन सुनने को नहीं मिले, पर फ्लिप्कार्ट से इसे खरीद कर आप सुन सकते हैं



अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं। "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है। आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रूरत है उन्हें ज़रा खंगालने की। हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं।

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की