Skip to main content

राह में रहते हैं, यादों में बसर करते हैं.....मुसाफिर गुलज़ार के यायावर दिल की बयानी है ये गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 465/2010/165

"मुसाफ़िर हूँ यारों, ना घर है ना ठिकाना, मुझे चलते जाना है, बस चलते जाना"। दोस्तों, गुलज़ार साहब के इसी गीत के बोलों को लेकर हमने इस शृंखला का नाम रखा है 'मुसाफ़िर हूँ यारों'। अब देखिए ना, कुछ कुछ इसी भाव से मिलता जुलता गुलज़ार साहब ने एक और गीत भी तो लिखा था फ़िल्म 'नमकीन' में! याद आया? "राह पे रहते है, यादों पे बसर करते हैं, ख़ुश रहो अहले वतन, हम तो सफ़र करते हैं"। किसी ट्रक ड्राइवर के किरदार के लिए इस गीत से बेहतर गीत शायद उसके बाद फिर कभी नहीं बन पाया है। किशोर कुमार की आवाज़ में राहुल देव बर्मन के संगीत से सँवरे इस गीत को आज हम पेश कर रहे हैं। 'नमकीन' गुलज़ार साहब के फ़िल्मी करीयर की एक बेहद महत्वपूर्ण फ़िल्म रही। यह १९८२ की फ़िल्म थी जिसका निर्देशन भी गुलज़ार साहब ने ही किया था। शर्मिला टैगोर, संजीव कुमार, वहीदा रहमान, शबाना आज़मी और किरण वैराले फ़िल्म के मुख्य किरदार निभाये। यह समरेश बासु की कहानी पर बनी फ़िल्म थी जिनकी कहानी पर गुलज़ार साहब ने उससे पहले १९७७ में फ़िल्म 'किताब' का निर्माण किया था। 'नमकीन' गुलज़ार साहब की उन सेन्सिटिव फ़िल्मों में से एक है जो हमारे समाज की कुछ ना कुछ अनछुये पहलु पर वार करती है जिन पहलुओं पर आम तौर पर किसी दूसरे फ़िल्मकारों की नज़र ना पड़ी हो। आप में से बहुतों ने यह फ़िल्म देखी होगी। और अगर नहीं देखी है तो हम आपको इसकी कहानी संक्षिप्त में बताना चाहेंगे क्योंकि यह आम फ़िल्मी कहानी से बिलकुल अलग है। तीन कुंवारी लड़कियाँ अपनी बूढ़ी माँ के साथ हिमाचल प्रदेश के किसी सुदूर गाँव में रहती हैं। जुगनी (वहीदा रहमान) जो किसी ज़माने में नौटंकी में नाच गानें किया करती थीं, अब मसाले बेच कर और अपने घर में किरायेदार रख कर अपना और अपनी तीन बेटियों का गुज़ारा करती है। बेटियों में सब से बड़ी है निमकी (शर्मिला टैगोर), उसके बाद है मिट्ठु (शबाना आज़मी) जो गूंगी है, और सबसे छोटी वाली का नाम है चिंकी (किरण वैराले)। जुगनी का पति धनिराम (टी.पी. जैन) एक सारंगीवादक है जो शराब के नशे में धुत रहता है, और बीच बीच में आकर अपनी बेटियों को अपने साथ ले जाकर नौटंकियों में नचवाने की कोशिश करता रहता है, लेकिन जुगनी ऐसा होने नहीं देती। एक बार गेरुलाल (संजीव कुमार), जो एक ट्रक ड्राइवर है, जुगनी के घर में किरायेदार बन कर आता है। वहाँ रहते रहते उसे उन चारों की ज़िंदगियों की कठिनाइयों का अंदाज़ा होने लगता है और उनसे हमदर्दी भी बढ़ने लगती है। वो निमकी को पसंद भी करने लगता है। लेकिन दूसरी तरफ़ मिट्ठु भी गेरुलाल को मन ही मन चाहने लगती है। एक ट्रक ड्राइवर होने की वजह से एक दिन गेरुलाल को वहाँ से जाना पड़ता है। जाने से पहले वो अपने दिल की बात निमकी से कह देता है और उससे शादी करने की भी बात कहता है। लेकिन अपनी बूढ़ी माँ और दो बहनों की जिम्मेदारी को नज़रंदाज़ कर अपना घर बसाने के बारे में वो भला कैसे सोचती! इसलिए वो गेरुलाल को मना कर देती है, और उसे मिट्ठु से शादी कर लेने को कहती है। लेकिन गेरुलाल को यह गवारा नहीं होता और वो चल देता है। उसके जाते ही उस परिवार की ज़िंदगियों में भी कई बदलाव आ जाते हैं। मिट्ठु, जो पहले से ही गूंगी थी, अब गेरुलाल के चले जाने से अपना मानसिक संतुलन खो बैठती है और आत्महत्या कर लेती है। जुगनी इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर पाती तो और वो भी चल बसती है। इस बात का फ़ायदा उठाकर धनिराम चिंकी को अपने साथ ज़बरदस्ती ले जाता है शहर। अब निमकी अकेली रह जाती है घर में। बरसों बाद गेरुलाल एक नौटंकी देखने जाता है और वहाँ पर चिंकी को नाचते हुए देख कर हैरान रह जाता है। उसे उस परिवार पर आई तूफ़ान का पता चल जाता है और वो तुरंत निमकी के घर जाता है जहाँ वो अकेली रह रही होती है। और आख़िरकार वो उसे अपने साथ ले जाता है। यही है 'नमकीन' की कहानी।

इस फ़िल्म को बहुत सराहना मिली थी और कई सारे पुरस्कार भी जीते इस फ़िल्म ने उस साल, जो इस प्रकार हैं - राष्ट्रीय पुरस्कार: सर्वश्रेष्ठ ध्वनि (एसाभाई एम. सूरतवाला); फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार: सर्वश्रेष्ठ कहानी (समरेश बासु), सर्वर्श्रेष्ठ कला निर्देशन (अजीत बनर्जी), सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री (वहीदा रहमान - नामांकन), सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री (किरं वैराले - नामांकन)। सह-अभिनेत्री का पुरस्कार उस साल सुप्रिया पाठक ले गए थे फ़िल्म 'बाज़ार' के लिए। जहाँ तक फ़िल्म के गीत संगीत के पक्ष का सवाल है, किशोर कुमार के गाए इस गीत के अलावा, आशा भोसले और साथियों की आवाज़ों में उन तीनों बहनों की मसाले कूटते हुए "आँकी चली बाँकी चली, चौरंगी में झाँकी चली" गीत हमें सचमुच हिमाचल के किसी सुदूर गाँव में लिए जाता है। शबाना आज़मी पर फ़िल्माया गया "फिर से अय्यो बदरा बिदेसी, अब के पंख में मोती जड़ूँगी" भी एक बेहद सुंदर गीत है। आशा जी की ही आवाज़ में "बड़ी देर से मेघा बरसा हो रामा" भी लोकप्रिय हुआ था। लेकिन अल्का याज्ञ्निक का गाया और किरण वैराले पर फ़िल्माया नौटंकी गीत "ऐसा लगा कोई सुरमा नजर मा" लोकप्रिय नहीं हुआ। तो आइए आज किशोर दा का गाया गीत सुनते हैं जो आज भी ट्रक ड्राइवरों का ऐंथेम सॊंग्‍ बना हुआ है। आपको बता दें कि यह जो पंक्ति है "ख़ुश रहो अहले वतन हम तो सफ़र करते हैं", यह दरअसल गुलज़ार साहब का लिखा हुआ नहीं है, बल्कि इसे लिखा था राम प्रसाद बिसमिल ने जो एक क्रांतिकारी कवि थे और शहीद भगत सिंह के साथी भी। उनका लिखा हुआ एक देश भक्ति गीत १९७५ की फ़िल्म 'आंदोलन' में भूपेन्द्र ने गाया था जिसका शुरुआती शेर था "दर-ओ-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैं, ख़ुश रहो अहले वतन हम तो सफ़र करते हैं", जो इस देश पर मर मिटने वाले शहीदों को समर्पित है। इसी का इस्तेमाल गुलज़ार साहब ने फ़िल्म 'नमकीन' के इस गीत में किया था। और अब आपको यह बताते हुए कि परसों शनिवार 'ओल्ड इज़ गोल्ड - ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें' में ज़रूर पधारिएगा, अब हम आप से इजाज़त ले रहे हैं, नमस्कार!



क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्म 'नमकीन' को १९८२ में दूरदर्शन पर रिलीज़ करना पड़ा था क्योंकि इसे कोई डिस्ट्रिब्युटर ख़रीदने को तैयार नहीं हुआ। फ़िल्म का डी.वी.डी वर्ज़न १९९८ में जारी किया गया और जिसका क्लाइमैक्स मूल फ़िल्म से अलग था। मूल फ़िल्म के अंत में गेरुलाल वापस आकर करीब करीब ख़ाली घर देखता है। डी.वी.डी वर्ज़न में इस अंश को हटा दिया गया।

पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)

१. इस फिल्म के संवाद और गीत गुलज़ार साहब ने लिखे थे, निर्देशक कौन थे - २ अंक.
२. इस दार्शनिक गीत को किस गायक ने गाया है - २ अंक.
३. मुखड़े में शब्द है -"बंधू", संगीतकार बताएं - ३ अंक.
४. किस अभिनेता पर फिल्माया गया है ये गीत - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
एक बार फिर कनाडा टीम जम कर खेली, मगर ३ अंक शरद जी के खाते में आये जो अब ९० के आंकडे को छू चुके हैं, बधाई सबको

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

Music Director : vasant desai
AVADH said…
गायक: मन्ना डे
अवध लाल
इस फिल्म के संवाद और गीत गुलज़ार साहब ने लिखे थे, निर्देशक कौन थे - Aashirwaad

Pratibha
Canada
Kishore Sampat said…
किस अभिनेता पर फिल्माया गया है ये गीत - Yeh gaana Ashok Kumar aur Baiil Gaadiwale (Bullock-Cart driver) par filmaya gaya hai. Mere khayal se baiil gaadiwale abhineta ka naam hai - Ashim (Asim) Kumar

Kishore
Canada
indu puri said…
जीवन से लम्बे है बन्धु ये जीवन के रस्ते raaho se raahi kaa rishataa
kitane janam puraanaa
ek ko chalate jaanaa aage
ek ko pichhe aanaa
mod pe mat ruk jaanaa
bandhu
doraaho me phans ke
ye jiwan ke raste
jiwan se lambe hai bandhu

din aur raat ke haatho naapi
naapi ek umariyaa
saans ki dori chhoti pad ga_i
lambi aas dagariyaa
bhor ke manzil waale
uth kar
bhor se pahale chalate
ye jiwan ke raste
jiwan se lambe hai bandhu
...और ....एक था बचपन,बचपन के एक बाबूजी थे...
क्यों रुलाते हो सुजॉय?
मेरे पापा मुझे बहुत प्यार करते थे.इकलौती बेटी थी मैं उनकी,उनका चाँद,सूरज,पूरा ब्रह्माण्ड,पर...सदा कौन रहा है.
indu puri said…
'rishikesh mukhrji' aur gulzaar ji milkr jb bhi film bnaate ,wo film ek khoobsurt kalakriti hoti.
Kehna chahti thi Hrishikesh Mukherjee, parantu cut and paste ki wajah or proof reading nahi karne se 'Aashirwaad' likh diya.

Such is Life!

Pratibha
Canada

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की