Skip to main content

तितली उडी, उड़ जो चली...याद कीजिये कितने संस्करण बनाये थे शारदा के गाये इस गीत के आपने बचपन में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 339/2010/39

फ़िल्म जगत के श्रेष्ठतम फ़िल्मकारों में से एक थे राज कपूर, जिनकी फ़िल्मों का संगीत फ़िल्म का एक बहुत ही अहम पक्ष हुआ करती थी। क्योंकि राज कपूर को संगीत का अच्छा ज्ञान था, इसलिए वो अपनी फ़िल्म के संगीत में भी अपना मत ज़ाहिर करना नहीं भूलते थे। राज कपूर कैम्प की अगर पार्श्वगायिका का उल्लेख करें तो कुछ फ़िल्मों में आशा भोसले के गाए गीतों के अलावा उस कैम्प की प्रमुख गायिका लता जी ही हुआ करती थीं। ऐसे मे अगर राज कपूर किसी तीसरी गायिका को नायिका के प्लेबैक के लिए चुनें तो उस गायिका के लिए यह बहुत अहम बात थी। और अगर वो गायिका बिल्कुल नयी नवेली हो तो यह और भी ज़्यादा उल्लेखनीय हो जाती है। जी हाँ, राज साहब ने ऐसा किया था। ६० के दशक में एक बार राज कपूर तेहरान गए थे। वहाँ पर उनके सम्मान में एक पार्टी का आयोजन किया गया था। उन्ही दिनों तेहरान में एक तमिल लड़की थी जो पार्टियों में गानें गाया करती थी। संयोग से राज साहब की उस पार्टी में इस गायिका को गाना गाने क मौका मिला। राज साहब को उस गायिका की आवाज़ इतनी पसंद आई कि उन्होने उसे अपनी फ़िल्म में गवाने का वादा किया और बम्बई आ कर ऒडिशन देने को कहा। बस फिर क्या था, ऒडिशन भी हो गया और उस गायिका को भेज दिया गया शंकर जयकिशन के पास फ़िल्मी गायन की विधिवत तालीम हासिल करने के लिए। और आगे चलकर राज कपूर की तमाम फ़िल्मों में इस गायिका ने कई मशहूर गीत गाए, और राज साहब के बैनर के बाहर भी शंकर जयकिशन ने समय समय पर इनसे गीत गवाए। अब तक अप समझ ही गए होंगे कि ये गायिका और कोई नहीं, बल्कि शारदा हैं। कई सुपरहिट गीत गाने के बावजूद शारदा को फ़िल्म जगत ने कभी वो मुक़ाम हासिल करने नहीं दिया जिसकी वो सही मायने में हक़दार थीं। उन्ही के शब्दों में (सौजन्य: जयमाला, विविध भारती): "जब शुरु शुरु में मेरे गीत फ़िल्मों में आए तो आप सभी ने सराहा, सारे देश से मुझे प्रेरणा मिली। मेरे बहुत से गीत लोकप्रियता की चोटी पे गए, लेकिन न जाने क्यों फ़िल्मी दुनिया के कुछ लोगों ने मुझे पसंद नहीं किया। यही नहीं, उन्होने मेरी करीयर को ख़त्म करने की भी कोशिश की, कुछ हद तक शायद सफल भी हुए होंगे। पर इससे भला उन्हे क्या फ़ायदा हुआ होगा! मैं तो अलग ही ढंग से गाती थी, गाती हूँ। मेरी आवाज़ भी किसी से नहीं मिलती। और सब से बड़ी बात यह कि जब सभी लोगों ने मेरे गीतों को पसंद भी किया तो यह बात क्यों? मैं तो समझती हूँ कि ज़माने की रफ़तार के साथ साथ कला की दुनिया में भी नया रंग, नया मोड़, नया दौर आना ही चाहिए और नई दिशाएँ भी खुलनी ही चाहिए।"

दोस्तों, आज शारदा जी की आवाज़ में हम सुनने जा रहे हैं फ़िल्म 'सूरज' का बड़ा ही कामयाब गीत "तितली उड़ी, उड़ जो चली"। अभी हाल ही में शारदा जी फिर एक बार विविध भारती में पधारीं थीं और 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम के लिए एक लम्बा सा इंटरव्यू रिकार्ड करवाया था। उसमें उन्होने इस गीत के बारे में विस्तार से जो बातें बताईं, आइए उन्ही पर एक नज़र डालें। "इसको generation song भी बोल सकते हैं। इसको अभी के लोग भी पसंद करते हैं। जब भी मैं प्रोग्राम्स में जाती हूँ तो लोग कहते हैं कि मेरी बच्ची ने इस गाने पे डांस किया, किसी ने मुझसे पूरा लिरिक्स मंगवाया कि मेरी बच्ची के प्रोग्राम के लिए चाहिए, so it is going on like this. Its really surprising because this is a very simple song. इसके पीछे ना ऐसा कोई डांस है, ना कोई romantic scene है, बहुत simple song है, एक घोड़ा गाड़ी में जा रही है राजकुमारी और वो गा रही है। और इस गाने में क्या है कि वो अब तक लोगों को attract कर रहा है। मैंने इस गाने के लिए बहुत research किया और पिछले कुछ सालों में मेरे दिमाग़ में आया कि शैलेन्द्र जी कुछ ना कुछ दर्शन रखते थे हर गीत में। आत्मा को हम पक्षी या तितली कहते हैं। आत्मा wants to go to source, आत्मा भगवान की तरफ़ जाना चाहती है, आकाश में जाना चाहती है। लेकिन फूल और पत्ते जो हैं माया की तरह उसको ज़मीन पर खींचना चाहते हैं। लेकिन तितली कहती है कि मुझे जाना है अपने source। "तितली उड़ी, उड़ जो चली, फूल ने कहा आजा मेरे पास, तितली कहे मैं चली आकाश"। देखा दोस्तो, शारदा जी ने इस गीत में छुपे हुए दार्शनिक पक्ष को किस तरह से ख़ुद ढ़ूंढ निकाला है। ऐसे न जाने शैलेन्द्र के लिखे और कितने गीत होंगे जिन्हे हम रोज़ गुनगुनाते हैं लेकिन उनमें छुपे दर्शन को शायद ही महसूस करते होंगे! ख़ैर, आइए सुनते हैं "तितली उड़ी" और शुभकामनाएँ देते हैं शारदा जी को एक ख़ुशनुमा ज़िंदगी के लिए।



चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम रोज आपको देंगें ४ पंक्तियाँ और हर पंक्ति में कोई एक शब्द होगा जो होगा आपका सूत्र. यानी कुल चार शब्द आपको मिलेंगें जो अगले गीत के किसी एक अंतरे में इस्तेमाल हुए होंगें, जो शब्द बोल्ड दिख रहे हैं वो आपके सूत्र हैं बाकी शब्द बची हुई पंक्तियों में से चुनकर आपने पहेली सुलझानी है, और बूझना है वो अगला गीत. तो लीजिए ये रही आज की पंक्तियाँ-

मौत का अँधेरा छाया है,
फिर से घनी परछाईयों जैसे,
दुनिया की गर्द और हम हैं,
राख में दबी चिंगारियों जैसे...

अतिरिक्त सूत्र- जितनी कमचर्चित रहीं ये गायिका उतने ही कम चर्चिते रहे इस अमर गीत के संगीतकार भी

पिछली पहेली का परिणाम-
शरद जी, एकदम सही गीत है....आपका स्कोर हुआ २४. बधाई...इंदु जी ये तटस्थ रहने का निर्णय क्यों ? आप रहेंगीं तो शरद जी को जरा तक्दी टक्कर मिल सकेगी...

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

गायिका : मुबारक बेगम
कभी तनहाइयों में यूं हमारी याद आएगी
अंधेरे छा रहे होंगे कि बिजली कौंध जाएगी
ये बिजली राख कर जाएगी तेरे प्यार की दुनिया, न तू फिर जी सकेगा और न तुझको मौत आएगी ।

इस गीत का एक ही अंतरा सुनने में आता है । मैं खुशनसीब हूँ कि मुबारक बेगम जी के साथ मुझे भी कई सालों पूर्व कोटा के दशहरे मेले में कार्यक्रम देने का अवसर मिला था ।
सुजॊय जी
ऐसा लग रहा है कि जब एक कोई सबसे पहले सही जवाब दे देता है तो बाकी लोग शायद यह सोच कर हिस्सा नहीं लेते हैं कि जवाब तो आ ही गया है ,अंक तो अब मिलेंगे नही हिस्सा लेने से क्या लाभ। मेरा एक सुझाव है कि किसी भी गीत में (१) गीत के बोल (२) गायक या गायिका (३) फ़िल्म (४) गीतकार और (५) संगीतकार ये ५ बातें प्रमुख होतीं है । आप पहेली में इन सभी जानकारी देने वालों को अंक दें तो कुछ रोचकता आ सकती है लेकिन यह शर्त भी हो कि जवाब देने वाला सिर्फ़ एक ही नाम बताएगा । उदाहरण के लिए सबसे पहले गीत के बोल बताने वाले को ३ अंक , गायक या गायिका के लिए २ अंक तथा फ़िल्म, गीतकार और संगीतकार के लिए एक एक अंक मिलेगा लेकिन एक प्रतियोगी मात्र इन पाचों में से एक का ही नाम बताए । यदि किसी ने संगीतकार और गीत के बोल या फ़िल्म का नाम बता दिए तो उसको एक भी अंक न दिए जाए । यह मेरा सुझाव है और पाठ्क गंण भी अपनी रय दे सकते हैं\

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की