Skip to main content

"छोटे से पंख" - सार्थक लघु फिल्म निर्माण के क्षेत्र में युग्म का पहला प्रयास.

आपकी रचनात्मकता तभी सार्थक है जब आप खुद की जिम्मेदारी से ऐसा कुछ करते हैं जिससे समाज में एक सकारात्मक बदलाव आये। भारत में दृश्य और श्रव्य, जन साधारण तक अपनी बात पहुँचाने का सबसे सशक्त माध्यम है। कविता के भावों को सुरों में सजाकर सरल रूप में लोगों तक पहुँचने के लिए जुलाई २००८ में आवाज़ की शुरूआत की थी हिंद युग्म ने। आज इस कड़ी में एक और नयी पहल जुड़ रही है। नए संगीत का दूसरा कामियाब महासत्र पूरा करने के बाद अब युग्म ने दृश्य माध्यम से भी जन चेतना जगाने का बीडा उठाया है। ये शुरुआत मनुज मेहता, जगदीप सिंह, दिव्य प्रकाश दुबे और अकबर-आज़म जैसे युवा फिल्मकारों के दम पर हो रही है। इसी शृंखला की पहली फिल्म का आज विमोचन हो रहा है। हिंद युग्म के दिव्य प्रकाश दुबे जिन्हें हम DPD के नाम से भी संबोधित करते हैं, ने अपनी खुद की प्रोडक्शन "मास्टरस्ट्रोक प्रोडक्शन" के बैनर तले बनायी है ये लघु फिल्म। अधिक जानते हैं खुद दिव्य से-


"मुझे हमेशा से लगा है कि कुछ लोग हमारी दुनिया को बेहतर बनाने की दिशा में सतत प्रयासरत हैं और बहुत ही शांति से, धीरे-धीरे अपने मकसद की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं ...

मुझे लगता है कि ऐसी हर बात हर कोशिश ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुंचनी चाहिए| इस बार जैसे ही मुझे फुर्सत मिली तो मैंने सोचा कि एक शोर्ट मूवी बनाने की हिम्मत की जाये ..क्योंकि कई बार कविता बहुत अधूरी बात ही कह पाती है और उसमें वो सब नहीं आ पाता जो आप कहना चाहते हैं ..तो बस मैंने अपने कॉलेज (http://sibm.edu/) के मित्र (समर्थ) के साथ मिल के एक मूवी बना डाली ...दिक्कतें आयीं थोडी बहुत और उन थोड़ी बहुत दिक्कतों की वजह से ही हम बहुत सी बातें सीख भी पाए |"

Behind the scenes जानने के लिए यहाँ क्लिक करें )

Movie (छोटे से पंख ) के बारे में थोड़ा सा

हम सब में से कईयों के घर में पुरानी साइकिल पड़ी होती है। किसी-किसी के घर में एक से ज्यादा होती है जो बेकार पड़ी रहती है कई बार .... एक NGO इस दिशा में काम कर रहा है जो शहरों से ऐसी ही साइकिल लेते हैं ... और गाँव में वो साईकिल बाँट देते हैं ताकि कोई बच्चा स्कूल जा पाए, उसको स्कूल के लिए मीलों पैदल न चलना पड़े!!

इस विचार ने मुझे बहुत प्रभावित किया और तब हमने एक ऐसी मूवी बनाने की सोची जो इस विचार को आगे बढा पाए ...

कलाकार

रूबी - हमारे मोहल्ले में काम करने वाले माली की बिटिया है जो की अपनी क्लास में सेकंड आयी है, इसलिए उसको साईकिल चाहिए।

गौरांग- कॉन्वेंट में पढ़ने वाला मध्यमवर्गीय परिवार का लड़का है, जिसको साईकिल नहीं स्कूटी चलाना बहुत पसंद है।

(ये वो पात्र हैं जो आप सभी को अपने घर के आस पास मिल जायेंगे, गौरांग शायद आपके घर में हो, पड़ोस में हो ...और रूबी घर के बाहर खेलते हुए, पैदल स्कूल जाते हुए जरूर दिखती होगी आपको)



हो सकता कुछ लोग जानना चाहें कि Master Stroke क्या है ? कैसे बना, वो सब जानने के लिए यहाँ क्लिक करें

आग्रह -अपने ईमानदार, बेबाक सुझाव दें ...इससे हमारी अगली कोशिश को बेहतर होने में मदद मिलेगी !!

- दिव्य प्रकाश दुबे


हमारे अन्य फिल्मकार भी कुछ इसी तरह के सार्थक विषयों पर अपनी बात कहेंगे जिन्हें हम समय समय पर अपने मंच के माध्यम से आप तक पहुंचाते भी रहेंगे. यदि आप भी कुछ ऐसी बात "विसुअल" माध्यम से जन जन तक पहुंचाना चाहें तो हमसे संपर्क करें. हिंद युग्म के फिल्मकार मनुज मेहता ने दिल्ली के रेड लाइट इलाके को केंद्र कर जो डॉक्युमेंटरी फिल्म बनायीं थी उसका प्रीमियर भी हमने पिछले साल आवाज़ पर किया था, यदि अब तक आपने नहीं देखी तो इसे भी अवश्य देखें.
एक संवेदनशील फिल्म जी बी रोड की सच्चाईयों पर...

Comments

neerajguru said…
i hats off you.
aapka abhivadan karta hun,ek behtar aur sarthak prayas ke liye.
mera praman sweekar kare.
Manuj Mehta said…
vichar acha hai, script bhi thik hai
technical baaton par dhyan de. there is a large scope to improve camera work and eding.
Manuj Mehta said…
This post has been removed by the author.
बहुत ही खूब. Very Creative!!
बहुत ही बेहतरीन प्रयास...युग्म की इस सफलता से मैं बहुत ही आह्लादित हूँ...
सभी साथियों को बहुत बहुत शुभकामनाएं..
देखते वक्त थोडा बहुत जो तकनीकी ज्ञान था उसे बघारने की सोची लेकिन फिल्म के पहले ही सारी बातें स्पष्ट कर दी गयी थीं...तो, कुछ भी कहना ज्यादा और गलत होगा...शिवाय इसके कि...युग्म कि इमारत में आज एक और ईंट जुड़ गया..
आलोक सिंह "साहिल"
rachana said…
इस को देख के एक बात कहना चाहूंगी .बहुत मेहनत से बनाई है ये फिल्म .आपना सन्देश देने में सफल है .विषय अच्छा है .दोनों बच्चों में जो विरोधाभास दिखाया गया है वो बहुत ही सुंदर है .आप का प्रथम प्रयास उत्तम है .अगला अति उत्तम होगा एसी आशा है पूरी टीम को बधाई
सादर
रचना

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की