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तू गंगा की मौज, मैं जमुना का धारा....रफी साहब के श्रेष्ठतम गीतों में से एक

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 60

दोस्तों, जब हमने आपको फ़िल्म बैजु बावरा का गीत "मोहे भूल गए सांवरिया" सुनवाया था तब हमने इस बात का ज़िक्र किया था कि इस फ़िल्म का हर एक गीत 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में शामिल होने की काबिलियत रखता है। इसलिए आज हमने सोचा कि क्यों न इस फ़िल्म का एक और गीत आप तक पहुँचाया जाए! तो लीजिए पेश है बैजु बावरा फ़िल्म का सबसे 'हिट' गीत "तू गंगा की मौज मैं जमुना का धारा"। युं तो इस गीत को मुख्य रूप से रफ़ी साहब ने ही गाया है, लेकिन आख़िर में लताजी और साथियों की भी आवाज़ें मिल जाती हैं। राग भैरवी पर आधारित यह गीत संगीतकार नौशाद और गीतकार शक़ील बदायूनीं की जोड़ी का एक महत्वपूर्ण गीत है। इस गीत के लिए नौशाद साहब को १९५४ में शुरु हुए पहले 'फ़िल्म-फ़ेयर' पुरस्कार के तहत सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पुरस्कार मिला था। मीना कुमारी को भी सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला था इसी फ़िल्म के लिये। लेकिन फ़िल्म के नायक भारत भूषण को पुरस्कार न मिल सका क्योंकि सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार उस साल ले गये दिलीप कुमार फ़िल्म "दाग़" के लिए। १९५३ में बैजु बावरा बनी थी और उसी साल से अमीन सायानी का मशहूर रेडियो प्रोग्राम गीतमाला शुरु हुआ था और इसी गीत को उस साल के सबसे लोकप्रिय गीत के रूप में इस कार्यक्रम में चुना गया था।

'बैजु बावरा' फ़िल्म के इस गीत के बारे में तो हम बता चुके, आइए अब कुछ बातें इस फ़िल्म के बारे में भी हो जाए! जैसा कि आपको पता होगा फ़िल्मकार भाइयों की जोड़ी विजय भट्ट और शंकर भट्ट प्रकाश पिक्चर्स के बैनर तले फ़िल्में बनाया करते थे। ४० के दशक में एक के बाद एक धार्मिक और पौराणिक फ़िल्में बनाने की वजह से एक समय ऐसा आया कि उनकी आर्थिक अवस्था काफ़ी हद तक ख़राब हो गई। यहाँ तक की प्रकाश पिक्चर्स को बंद करने की नौबत आने ही वाली थी। कोई और उपाय न पा कर दोनो भाई पहुँच गए नौशाद साहब के पास। नौशाद साहब के सम्पर्क में आकर उनके क़िस्मत का सितारा एक बार फिर से चमक उठा 'बैजु बावरा' के रूप में। 'बैजु बावरा' की अपार सफ़लता ने भट्ट भाइयों को डूबने से बचा लिया। दोस्तों, 'बैजु बावरा' से संबंधित कुछ और जानकारियाँ हम सुरक्षित रख रहे हैं किसी और अंक के लिए जब हम आपको इस फ़िल्म का एक और गाना सुनवायेगे। तो लीजिये, आज पेश है "तू गंगा की मौज..."



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. फिल्म के शीर्षक में "बम्बई" शब्द है. देव आनंद मुख्य कलाकार हैं.
२. बर्मन दा के संगीत से सजा एक अमर गीत है ये.
३. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"बाबुल".

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
भाई कल तो जम कर वोटिंग हुई, दो खेमे बँट गए एक तरफ रहे समीर लाल जी, पी एन साहब और नीलम जी, और दूसरी तरफ हमारे दिग्गज मनु और नीरज. इस बार जीत दिग्गजों की हुई. दरअसल जिस गीत का समीर लाल जी ने जिक्र किया वो भी नौशाद साहब का ही है पर वो लता और रफी का एक युगल गीत है जो दिलीप कुमार और मीना कुमारी पर फिल्माया गया है. जबकि आज का ये गीत मूलतः रफी साहब के स्वर में है, बस यही फर्क है. पर आपका सुझाया गीत भी बेहद प्यारा है और जल्द ही ओल्ड इस गोल्ड पर आएगा. निश्चिंत रहें. संगीता जी और प्रकाश जी का भी महफिल में स्वागत.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.


Comments

Neeraj Rohilla said…
chal ree sajni ab kya soche,
kajra na beh jaaye rote rote...

baabul pacchtaaye....
neelam said…
hum bhi neeraj ji ke gaane ke saath hain ekdam sahi hai ,iska doosra gana bhi sunvaaiye

deewana mastana hua dil jaane kahaan ho ke bahaar aayi .ek muddat ho gayi hai in gaanon ko sune hue .
manu said…
एक दम सही,,,,,,,,,
मुकेश की आवाज में वाकई दर्द भरा गीत,,,
PN Subramanian said…
नीलम जी ने जो गीत सुझाया बहुत ही सुन्दर है. आशा की जादू भरी आवाज़ और मस्ती. तबीयत मस्त मस्त हो जाती है.
sumit said…
This post has been removed by the author.
sumit said…
This post has been removed by the author.
sumit said…
aantre mei baabul shabd se to ek he gaana yaad aa raha hai

baabul pachtaye haato ko mal k, kahe diya pardesh tukde ko dil k, aansoo liye door khada soch raha hai....

chal ri sajni ab kya sooche......par mujhe ye nahi pata is mei kaun hero hai bus is shabd se andaaza lagaya

sumit bhardwaj
फिल्म बम्बई का बाबू तो नहीं? गीत तो पहले ही पहचाना जा चुका है.
Anil said…
रफी साहब का यह गाना मेरे सबसे पसंदीदा गानों में से है। इसका विडियो देखिये तो हैरत में पड़ जायेंगे, किसी के प्रेम का इतना सुंदर, ऊर्जापूर्ण चित्रण कैसे किया गया है!
AVADH said…
Paheli ka uttar to Neeraj ji aur 'Salil' ji de hi chuke hain. Film 'Bambai Ka Babu' mein Dev Anand aur Suchitra Sen ka bahut sundar abhinay to tha hi aur saath mein charitra abhineta Rasheed Khan ki khalnayaki ki adakari bhi bahut zabardast thi jo Dev Anand ko blackmail karte hain kyonki unke haathon achanak charitra abhineta Jagdish Raj ka khoon ho jata hai.
Shayad is film ka nirdeshan Raj Khosla Khosla ne kiya tha. Iski kahani mein anokhi baat yeh thi ki Nayak Dev Anand Nayika Suchitra Sen se pyar karte hain par woh unko apna bhai samajhti hai.
Neelam ji ke sujhav ka main bhi samarthan karta hoon.Aabhaar hoga.
Avadh Lal

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