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पॉडकास्ट कवि सम्मेलन - जनवरी २००९

पॉडकास्टिंग की मदद से बना एक ऑनलाइन कवि सम्मेलन


Doctor Mridul Kirti - image courtesy: www.mridulkirti.com
डॉक्टर मृदुल कीर्ति
कविता प्रेमी श्रोताओं के लिए प्रत्येक मास के अन्तिम रविवार का अर्थ है पॉडकास्ट कवि सम्मेलन। आवाज़ के तत्त्वावधान में इस बार हम लेकर आए हैं सातवाँ ऑनलाइन कवि सम्मेलन। आवाज़ के सभी श्रोताओं और पाठकों को नव वर्ष की शुभ-कामनाओं के साथ प्रस्तुत है २००९ का पहला पॉडकास्ट कवि सम्मलेन। इस बार भी इस ऑनलाइन आयोजन का संयोजन किया है हैरिसबर्ग, अमेरिका से डॉक्टर मृदुल कीर्ति ने।

आवाज़ की ओर से हर महीने प्रस्तुत किए जा रहे इस प्रयास में गहरी दिलचस्पी, सहयोग और आपके प्रेम के लिए हम आपके आभारी हैं। हमें अत्यधिक संख्या में कवितायें प्राप्त हुईं और हमें आशा है कि आप अपना सहयोग इसी प्रकार बनाए रखेंगे। इस बार भी हम बहुत सी कविताओं को उनकी उत्कृष्टता के बावजूद इस माह के कार्यक्रम में शामिल नहीं कर सके हैं और इसके लिए क्षमाप्रार्थी है। कुछ कवितायें अपनी श्रेष्ठता के बावजूद ख़राब रिकार्डिंग के कारण शामिल न हो सकीं। उनके छूट जाने से हमें भी दुःख हुआ है इसलिए हम एक बार फ़िर आपसे अनुरोध करेंगे कि कवितायें भेजते समय कृपया समय-सीमा का ध्यान रखें और यह भी ध्यान रखें कि वे १२८ kbps स्टीरेओ mp3 फॉर्मेट में हों और पृष्ठभूमि में कोई संगीत न हो। ऑडियो फाइल के साथ अपना पूरा नाम, नगर और संक्षिप्त परिचय भी भेजना न भूलें क्योंकि हमारे कार्यक्रम के श्रोता अच्छे कवियों के बारे में जानने को उत्सुक रहते हैं।

प्रबुद्ध श्रोताओं की मांग पर सितम्बर २००८ के सम्मेलन से हमने एक नया खंड शुरू किया है जिसमें हम हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य कवियों का संक्षिप्त परिचय और उनकी एक रचना को आप तक लाने का प्रयास करते हैं। जनवरी मास में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिन और राष्ट्र के गणतंत्र दिवस के अवसर पर इसी प्रयास के अंतर्गत इस बार हम सुना रहे हैं एक ऐसे कवि को जिन्हें कई मायनों में हिन्दी की खड़ी बोली के अग्रगण्य कवियों में गिना जाता है। जी हाँ, इस बार आपके सामने हैं तेजस्वी राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त। इनकी रचनाएं हिन्दी-भाषियों में समस्त विश्व में पढी और गाई जाती हैं। उनकी सुमधुर रचनाओं का आनंद उठाईये।

पिछले सम्मेलनों की सफलता के बाद हमने आपकी बढ़ी हुई अपेक्षाओं को ध्यान में रखा है। हमें आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि इस बार का सम्मलेन आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा और आपका सहयोग हमें इसी जोरशोर से मिलता रहेगा। यदि आप हमारे आने वाले पॉडकास्ट कवि सम्मलेन में भाग लेना चाहते हैं तो अपनी आवाज़ में अपनी कविता/कविताएँ रिकॉर्ड करके podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें। कवितायें भेजते समय कृपया ध्यान रखें कि वे १२८ kbps स्टीरेओ mp3 फॉर्मेट में हों और पृष्ठभूमि में कोई संगीत न हो। आपकी ऑनलाइन न रहने की स्थिति में भी हम आपकी आवाज़ का समुचित इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे। पॉडकास्ट कवि सम्मेलन के अगले अंक का प्रसारण २२ फरवरी २००९ को किया जायेगा और इसमें भाग लेने के लिए रिकॉर्डिंग भेजने की अन्तिम तिथि है १५ फरवरी २००९

नीचे के प्लेयर से सुनें:


यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें)
VBR MP364Kbps MP3Ogg Vorbis

हम सभी कवियों से यह अनुरोध करते हैं कि अपनी आवाज़ में अपनी कविता/कविताएँ रिकॉर्ड करके podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें। आपकी ऑनलाइन न रहने की स्थिति में भी हम आपकी आवाज़ का समुचित इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे।

रिकॉर्डिंग करना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। हिन्द-युग्म के नियंत्रक शैलेश भारतवासी ने इसी बावत एक पोस्ट लिखी है, उसकी मदद से आप सहज ही रिकॉर्डिंग कर सकेंगे।

अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।

# Podcast Kavi Sammelan. Part 7. Month: January 2009.
कॉपीराइट सूचना: हिंद-युग्म और उसके सभी सह-संस्थानों पर प्रकाशित और प्रसारित रचनाओं, सामग्रियों पर रचनाकार और हिन्द-युग्म का सर्वाधिकार सुरक्षित है.

Comments

पॉडकास्ट कवि सम्मेलन की ओर लोगों का रूझान बढ़ रहा है, इसके लिए मृदुल जी, अनुराग जी और पूरी आवाज़ टीम बधाई के पात्र हैं। अभी तो प्रवासी कवियों की भागीदारी अधिक है। जैसे ही भारतीय कवियों को रिकॉर्डिंग कैसे करनी है, यह समझ में आ जायेगा, तब यह कार्यक्रम माह में ४ बार करना होगा।

लावण्या जी, भरत जी और नीलम जी का काव्यपाठ ख़ासा पसंद आया। अनुराग जी की प्रस्तुति के लिए तो साधुवाद ही दिया जा सकता है। महाकवि की कविता के ऊपर क्या कहना!
shanno said…
सारा कवि सम्मलेन बहुत अच्छा लगा. मृदुल जी की प्रस्तुति और निखरी है इस बार. लावण्या जी, नीलम जी, अजीत जी और भरत जी की कवितायें बड़ी सुंदर थीं सम्पूर्ण भावों के साथ, और उनके पढने का अंदाज़ भी. भरत जी की कविता ने तो पेड़ के साथ शरीर के बूढे हो जाने के बाद उसकी निरर्थकता का बहुत ही अहसास कराया. कितनी बड़ी सचाई है यह जीवन की. और फिर अनुराग जी के अपने सुंदर सधे हुए अंदाज़ में पढ़ी हुई मैथिलीशरण जी की रचना ने अच्छा समापन किया. कवि सम्मलेन और तरक्की करे ऐसी कामना है मेरी. धन्यबाद.
शन्नो
शोभा said…
कवि सम्मेलन अच्छा लगा। गणतंत्र दिवस की बधाई।
एक बार फ़िर बढ़िया प्रस्तुति, इस बार बहुत से नए लोगों ने इस सम्मलेन को सुना है. सभी बहुत प्रभावित दिखे. "पेड़ तुम गिर क्यों नही जाते" विशेष पसंद आई. मृदुल का सञ्चालन हर बार की तरह इस बार भी सब कविताओं पर भारी रहा....बहुत बहुत बधाई
गणतँत्र दिवस की शुभेच्छाएँ ~~

और सभी को हमारी बहुत बहुत बधाईयाँ

हिन्दी ब्लोग जगत मेँ ऐसे कवि सम्मेलन स्वागत योग्य हैँ --

और डा.मृदुल कीर्ति जी का
काव्य पँक्तियोँ के उध्धरण सहित,
निजी अनुभव तथा सँस्मरण सहित सँचालन..
भाई अनुराग जी द्वारा श्रध्धेय दद्दा
" मैथिली शरण गुप्त जी की अमर काव्य पँक्तियाँ
( खास कर भारत के किसान के प्रति )

- सुभाष बाबू को याद करना

शन्नो जी की कोमल कविता ,
शोभा जी,
डा.अजित जी,
भरत जी
और नीलम जी
तथा आदरणीय शर्मा जी की
(उनकी पत्नी के लिये पढी गई कविता)
तथा अन्य सारे प्रयास मन को छू गये -

ऐसे प्रयास अब भारत के कवि साथियोँ द्वारा भी शीघ्र सुनने को मिल पायेँ ऐसी कामना है -

शायद, जो तकनीकि ज्ञान रखते होँ वैसे हर शहर के हिन्दी साहित्य प्रेमी सुधिजन के
ई -मेल पते
हिन्दी युग्म टीम सुलभ करवायेँ
तब ये सही दिशा मेँ एक सार्थक कदम रहेगा -

ताकि ज्यादा से ज्यादा कवियोँ को सुना जा सके बहुत शुभकामनाओँ सहित,
- लावण्या
Anonymous said…
कवि सम्‍मेलन के दो भाग हैं, एक पद्यमय और दूसरा गद्यमय। पद्य में लालित्‍य होता है इसी कारण वे मन में स्‍थायी रूप से बस जाते हैं लेकिन मृदुलजी का गद्यमय संचालन इतना प्रभावी होता है कि सारे ही पद्यों से पूर्व उनका संचालन मन में जगह बना लेता है। वे कहती हैं कि मौन सर्वांश कहता है और वाक्‍य एकांश कहता है। वे मौन को मुखर बताती हैं साथ ही मन की विजय को भी अपना लक्ष्‍य बताकर हम सबके मनों पर विजयी हो जाती हैं। वे इसी तरह से अपने शब्‍दों के द्वारा हमें आप्‍लावित करती रहें और हम शब्‍दों की निर्झरणी में स्‍नान करते रहें। कवि सम्‍मेलन के दूसरे भाग में आस्‍ट्रेलिया से ध्रुव भरत जी की रचना ओ पेड़ तुम गिर क्‍यूँ नहीं जाते? वृद्धावस्‍था को संकेत है। लेकिन घर के बाहर लगा वृक्ष संरक्षक के रूप में होता है। जब वो गिर पड़ता है तब समझ आता है कि इसे के आसपास तो बच्‍चे घूम घूमकर खेला करते थे, यहीं तो कोयल गीत गाया करती थी और इसी के रुदन से निकले निर्यास से ऐसा गोंद निर्मित होता रहा है जो पीढ़ियों को जोड़ता रहा है। भाई ध्रुव जी को मेरा प्रणाम। कवि सम्‍मेलन में नेताजी सुभाष का स्‍मरण कविता की उपादेयता देश के प्रति समर्पण के भाव को दर्शाती है और अंत में राष्‍ट्र कवि मैथिली शरण गुप्‍त की रचना अनुराग जी के स्‍वर में सुनकर निराशा के बादल छंटने लगते हैं कि नर हो न निराश करो मन को। सभी कवियों की कवितां भी श्रेष्‍ठ रहीं सभी को मेरी शुभकामनाएं।
अजित
ajit gupta said…
कवि सम्‍मेलन के दो भाग हैं, एक पद्यमय और दूसरा गद्यमय। पद्य में लालित्‍य होता है इसी कारण वे मन में स्‍थायी रूप से बस जाते हैं लेकिन मृदुलजी का गद्यमय संचालन इतना प्रभावी होता है कि सारे ही पद्यों से पूर्व उनका संचालन मन में जगह बना लेता है। वे कहती हैं कि मौन सर्वांश कहता है और वाक्‍य एकांश कहता है। वे मौन को मुखर बताती हैं साथ ही मन की विजय को भी अपना लक्ष्‍य बताकर हम सबके मनों पर विजयी हो जाती हैं। वे इसी तरह से अपने शब्‍दों के द्वारा हमें आप्‍लावित करती रहें और हम शब्‍दों की निर्झरणी में स्‍नान करते रहें। कवि सम्‍मेलन के दूसरे भाग में आस्‍ट्रेलिया से ध्रुव भरत जी की रचना ओ पेड़ तुम गिर क्‍यूँ नहीं जाते? वृद्धावस्‍था को संकेत है। लेकिन घर के बाहर लगा वृक्ष संरक्षक के रूप में होता है। जब वो गिर पड़ता है तब समझ आता है कि इसे के आसपास तो बच्‍चे घूम घूमकर खेला करते थे, यहीं तो कोयल गीत गाया करती थी और इसी के रुदन से निकले निर्यास से ऐसा गोंद निर्मित होता रहा है जो पीढ़ियों को जोड़ता रहा है। भाई ध्रुव जी को मेरा प्रणाम। कवि सम्‍मेलन में नेताजी सुभाष का स्‍मरण कविता की उपादेयता देश के प्रति समर्पण के भाव को दर्शाती है और अंत में राष्‍ट्र कवि मैथिली शरण गुप्‍त की रचना अनुराग जी के स्‍वर में सुनकर निराशा के बादल छंटने लगते हैं कि नर हो न निराश करो मन को। सभी कवियों की कवितां भी श्रेष्‍ठ रहीं सभी को मेरी शुभकामनाएं।
सुरुचिपूर्ण रचनाएँ, ध्वन्यांकन में कहीं-कहीं सुधार अपेक्षित. संचालन जानदार...शब्दचयन सटीक
neelam said…
गीला गीला मन होता जब ,तुम आकर बस जाती हो रीता रीता मन होता जब झोंका बन छू जाती हो अजित जी की इस रचना को संगीत दे सकते हैं ,सजीव जी |

anuraag ji ki kavitaayen ,aur abhishek ji ki aawaj ne bhi khaasa prabhaavit kiya hai ,baaki sabhi guni jan to apni jagah hain hi
books rds said…
Rameshwer Daysl Sharma Bhatt from Roorkee, India
aaj phali bar maine aap ka yh kavi sammalan suna mrdula ji vastv main aap badhai ki patr hn jo asa accha krya kram hum hindi bhasi logo ke liy pash kiya, bhartiy kavi jaise Ashok Chakrdhar ji ya Hari om Panwar ji ki kavitaon ko aur sunviain to accha lgega.
subh kamnaon ke sath ......

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