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Showing posts from September, 2008

मिलिए ग़ज़ल गायकी की नई मिसाल रफ़ीक़ शेख से

कर्नाटक के बेलगाम जिले में जन्मे रफ़ीक़ शेख ने मरहूम मोहम्मद हुसैन खान (पुणे)की शागिर्दी में शास्त्रीय गायन सीखा तत्पश्चात दिल्ली आए पंडित जय दयाल के शिष्य बनें. मखमली आवाज़ के मालिक रफ़ीक़ के संगीत सफर की शुरुवात कन्नड़ फिल्मों में गायन के साथ हुई, पर उर्दू भाषा से लगाव और ग़ज़ल गायकी के शौक ने मुंबई पहुँचा दिया जहाँ बतौर बैंक मैनेजर काम करते हुए रफ़ीक़ को सानिध्य मिला गीतकार /शायर असद भोपाली का जिन्होंने उन्हें उर्दू की बारीकियों से वाकिफ करवाया. संगीत और शायरी का जनून ऐसा छाया कि नौकरी छोड़ रफ़ीक़ ने संगीत को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया. आज रफ़ीक़ पूरे भारत में अपने शो कर चुके हैं. वो जहाँ भी गए सुनने वालों ने उन्हें सर आँखों पर बिठाया. २००४ में औरंगाबाद में हुए अखिल भारतीय मराठी ग़ज़ल कांफ्रेंस में उन्होंने अपनी मराठी ग़ज़लों से समां बाँध दिया, भाषा चाहे कन्नड़ हो, हिन्दी, मराठी या उर्दू रफ़ीक़ जानते हैं शायरी /कविता का मर्म और अपनी आवाज़ के ढाल कर उसे इस तरह प्रस्तुत करते हैं कि सुनने वालों पर जादू सा चल जाता है, महान शायर अहमद फ़राज़ को दी गई अपनी दो श्रद्धांजली स्वरुप ग़ज़लों क

तेरी नज्म से गुजरते वक्त खदशा रहता है...

चाहे बात हो गुलज़ार साहब की या जिक्र छिड़े अमृता प्रीतम का, एक नाम सभी हिन्दी चिट्टाकारों के जेहन में सहज ही आता है- रंजना भाटिया का, जिन्होंने इन दोनों हस्तियों पर लगातार लिखा है और बहुत खूब लिखा है, आज हम जिस एल्बम का जिक्र आवाज़ पर कर रहें हैं उसमें संवेदनायें हैं अमृता की तो आवाज़ है गुलज़ार साहब की. अब ऐसे एल्बम के बारे में रंजना जी से बेहतर हमें कौन बता सकता है. तो जानते हैं उन्हीं से क्या है इस एल्बम की खासियतें - तेरी नज्म से गुजरते वक्त खदशा रहता है पांव रख रहा हूँ जैसे ,गीली लैंडस्केप पर इमरोज़ के तेरी नज्म से इमेज उभरती है ब्रश से रंग टपकने लगता है वो अपने कोरे कैनवास पर नज्में लिखता है , तुम अपने कागजों पर नज्में पेंट करती हो -गुलजार अमृता की लिखी नज्म हो और गुलजार जी की आवाज़ हो तो इसको कहेंगे सोने पर सुहागा .....दोनों रूह की अंतस गहराई में उतर जाते हैं ..रूमानी एहसास लिए अमृता के लफ्ज़ हैं तो मखमली आवाज़ में गुलजार के कहे बोल हैं इसको गाये जाने के बारे में गुलजार कहते हैं की यह तो ऐसे हैं जैसे "दाल के ऊपर जीरा" किसी ने बुरक दिया हो ..गुलजार से पुरानी पीढी के साथ साथ

लता संगीत पर्व- महीने भर चला संगीत प्रेमियों का उत्सव

आवाज़ पर आयोजित लता संगीत उत्सव पर एक विशेष रिपोर्ट और सुनें लता जी के चुने हुए २० गीत एक साथ. जब हमने लता संगीत उत्सव की शुरुवात की थी इस माह के पहले सप्ताह में, तब दो उद्देश्य थे, एक भारत रत्न और संगीत के कोहिनूर लता मंगेशकर पर हिन्दी भाषा में कुछ सहेजनीये आलेखों का संग्रह बने और दूसरा लता दी के चाहने वाले इंटरनेटिया श्रोताओं को हम प्रेरित करें की वो लता जी के बारे में हिन्दी भाषा में लिखें. जहाँ तक दूसरे उद्देश्य का सवाल है, हमें बहुत अधिक कमियाबी नही मिल पायी है. कुछ लिखते लिखते रह गए तो कुछ जब तक लिखना सीख पाते समय सीमा खत्म हो चली. प्रतियोगिता की दृष्टि से मात्र एक ही प्रवष्टि हमें मिली जिसे हम आवाज़ पर स्थान दे पाते. नागपुर के २२ वर्षीय अनूप मनचलवार ने अपनी मुक्कम्मल प्रस्तुति से सब का मन मोह लिया, सुंदर तस्वीरें और slide शो से अपने आलेख को और सुंदर बना दिया. हमारे माननीय निर्णायक श्री पंकज सुबीर जी ने अनूप जी को चुना है लता संगीत पर्व के प्रथम और एक मात्र विजेता के रूप में, अनूप जी को मिलेंगीं ५०० रुपए मूल्य की पुस्तकें और "पहला सुर" एल्बम की एक प्रति. अनूप जी का आलेख आ

तीसरी बार हुई अगस्त के अश्वारोही गीतों की परख

पहले चरण की तीसरी और अन्तिम समीक्षा को प्रस्तुत करने में कुछ विलंब हुआ, दरअसल हमारे माननीय समीक्षक जब पहले दो गीतों की समीक्षा हमें भेज चुकें थे तब उन्हें किसी व्यक्तिगत कारणों के चलते समयाभाव का सामना करना पड़ा. इसी कारण अन्तिम तीन गीतों की समीक्षा उन्होंने काफ़ी संक्षिप्त की है पहले दो गीतों की तुलना में. लेकिन अंक समीकरण हमारे लिए अधिक महत्वपूर्ण हैं सरताज गीत चुनने की प्रक्रिया में. तो प्रस्तुत है पहले चरण के अन्तिम समीक्षक के विचार हमारे ऑगस्त के अश्वारोही गीतों पर. मैं नदी गाना शुरू हुआ और सिग्‍नेचर मूजिक शुरू हुआ तो बहुत उम्मीदें बंधी । सुंदर सिग्‍नेचर तैयार किया है । और जब मानसी पिंपले की आवाज़ की आमद होती है तो एक तरह की ताज़गी का अहसास होता है । गाने का मुखड़ा बेहतरीन है । रिदम बेहतरीन तरीक़े से रखा गया है । पर पता नहीं क्‍यों मुझे हिंदी सिनेमा संसार के किसी गाने की झलक लगी इस गाने की ट्यून में । जब हम पहले अंतरे पर पहुंचे तो ये सुनकर कष्ट हुआ कि मिक्सिंग में कमी रह गयी है और गायिका मानसी की आवाज़ डूब गयी है । वाद्यों की आवाज़ ने बोलों की स्पष्ट कर ली है । पहले अंतरे के बाद का

प्रलय के बाद भी बचा रहेगा लता मंगेशकर का पावन स्वर !

लता मंगेशकर का जन्मदिन हर संगीतप्रेमी के लिये उल्लास का प्रसंग है. फ़िर हमारे प्रिय चिट्ठाकार संजय पटेल के लिये तो विशेष इसलिये है कि वे उसी शहर इन्दौर के बाशिंदे हैं जहाँ दुनिया की सबसे सुरीली आवाज़ का जन्म हुआ था. लताजी और उनका संगीत संजय भाई के लिये इबादत जैसा है. वे लताजी के गायन पर लगातार लिखते और अपनी अनूठी एंकरिंग के ज़रिये बोलते रहे हैं.आज आवाज़ के लिये लता मंगेशकर पर उनका यह भावपूर्ण लेख लता –मुरीदों के लिये एक विशिष्ट उपहार के रूप में पेश है. आइये भगवान से प्रार्थना करें लताजी दीर्घायु हों और उनकी पाक़ आवाज़ से पूरी क़ायनात सुरीली होती रहे...बरसों बरस. आप शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत या चित्रपट या सुगम संगीत के पूरे विश्व इतिहास पर दृष्टि डाल लीजिये, किंतु आप निराश ही होंगे यह जानकर कि एक भी नाम ऐसा नहीं है जो अमरता का वरदान लेकर इस सृष्टि में आया हो; एक अपवाद छोड़कर और वह नाम है स्वर-साम्राज्ञी भारतरत्न लता मंगेशकर। लताजी के जन्मोत्सव की बेला में मन-मयूर जैसे बावला-सा हो गया है। दिमाग पर ज़ोर डालें तो याद आता है कि लताजी अस्सी के अनक़रीब आ गईं.श्रोताओं की चार पीढ़ियों से राब्ता रखने वा

पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का तीसरा अंक

कविता वाचन की इंटरनेटीय परम्परा डॉक्टर मृदुल कीर्ति इंतज़ार की घडियां ख़त्म हुईं। लीजिये आपके सेवा में प्रस्तुत है सितम्बर २००८ का पॉडकास्ट कवि सम्मलेन। पिछली बार की तरह ही इस बार भी इस ऑनलाइन आयोजन का संयोजन किया है हैरिसबर्ग, अमेरिका से डॉक्टर मृदुल कीर्ति जी ने। पॉडकास्ट कवि सम्मेलन भौगौलिक दूरियाँ कम करने का माध्यम है और इसमें भारत व अमेरिका के कवियों ने भाग लिया है। इस बार के पॉडकास्ट कवि सम्मेलन ने पोंडिचेरी से स्वर्ण-ज्योति, फ़रीदाबाद से शोभा महेन्द्रू, दिल्ली से मनुज मेहता, ग़ाज़ियाबाद से कमलप्रीत सिंह, अशोकनगर (म॰प्र॰) से प्रदीप मानोरिया, रोहतक से डॉक्टर श्यामसखा "श्याम", भारत से विवेक मिश्र, पिट्सबर्ग (अमेरिका) से अनुराग शर्मा, तथा हैरिसबर्ग  (अमेरिका) से डॉक्टर मृदुल कीर्ति को युग्मित किया है। पिछले सम्मलेन की सफलता के बाद हमने आपकी बढ़ी हुई अपेक्षाओं को ध्यान में रखा है. हमें आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि इस बार का सम्मलेन आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा और आपका सहयोग हमें इसी जोरशोर से मिलता रहेगा। नीचे के प्लेयरों से सुनें। (ब्रॉडबैंड वाले यह प्लेयर चलायें) (

चलो, एक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों

मशहूर पार्श्व गायक महेन्द्र कपूर को अनिता कुमार की श्रद्धाँजलि दोस्तो, जन्म- ९ जनवरी १९३४ मूल- अमृतसर, पंजाब मृत्यु- २७ सितम्बर, २००८ अभी-अभी खबर आयी कि शाम साढ़े सात बजे महेंद्र कपूर सदा के लिए रुखसत हो लिए। सुनते ही दिल धक्क से रह गया। अभी कल ही तो हेमंत दा की बरसी थी और वो बहुत याद आये, और आज महेंद्र कपूर चल दिये। कानों में गूंजती उनकी आवाज के साथ साथ अपने बचपन की यादें भी लौट रही हैं। 1950 के दशक में जब महोम्मद रफ़ी, तलत महमूद, मन्ना डे, हेमंत दा, मुकेश और कालांतर में किशोर दा की तूती बोलती थी ऐसे में भी महेंद्र कपूर साहब ने अपना एक अलग मुकाम बना लिया था। एक ऐसी आवाज जो बरबस अपनी ओर खींच लेती थी। यूं तो उन्होंने उस जमाने के सभी सफ़ल नायकों को अपनी आवाज से नवाजा लेकिन मनोज कुमार भारत कुमार न होते अगर महेंद्र कपूर जी की आवाज ने उनका साथ न दिया होता। महेंद्र कपूर जी का नाम आते ही जहन में 'पूरब और पश्चिम' के गाने गूंजते लगते हैं "है प्रीत की रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूँ, भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात सुनाता हूँ" आज भी इस गीत को सुनते-सुनते कौन भार

स्वर कोकिला लता मंगेशकर के लिये एक अदभुत कविता-तुम स्वर हो,स्वर का स्वर हो

माया गोविंद देश की जानी मानी काव्य हस्ताक्षर हैं.हिन्दी गीत परम्परा को मंच पर स्थापित करने में मायाजी ने करिश्माई रचनाएँ सिरजीं हैं.आवाज़ पर भाई संजय पटेल के माध्यम से हमेशा नई – नई सामग्री मिलती रही है.लता दीदी के जन्मदिन के ठीक एक दिन पहले आवाज़ पर प्रस्तुत है समर्थ कवयित्री माया गोविंद की यह भावपूर्ण रचना. तुम स्वर हो, तुम स्वर का स्वर हो सरल-सहज हो, पर दुष्कर हो। हो प्रभात की सरस "भैरवी' तुम "बिहाग' का निर्झर हो। चरण तुम्हारे "मंद्र सप्तकी' "मध्य सप्तकी' उर तेरा। मस्तक "तार-स्वरों' में झंकृत गौरवान्वित देश मेरा। तुमसे जीवन, जीवन पाए तुम्हीं सत्य-शिव-सुंदर हो। हो प्रभात की... "मेघ मल्हार' केश में बॉंधे भृकुटी ज्यों "केदार' "सारंग'। नयन फागुनी "काफ़ी' डोले अधर "बसंत-बहार' सुसंग। कंठ शारदा की "वीणा' सा सप्त स्वरों का सागर हो। हो प्रभात की... सोलह कला पूर्ण गांधर्वी लगती हो "त्रिताल' जैसी। दोनों कर जैसे "दो ताली' "सम' जैसा है भाल सखी। माथे की बिंदिया "ख़ाली

सच बोलता है मुंह पर, चाहे लगे बुरा सा

दूसरे सत्र के तेरहवें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज. नए गीतों को प्रस्तुत करने के इस चलन में अब तक ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई कलाकार अपने पहले गीत के ओपन होने से पहले ही एक जाना माना नाम बन जाए कुछ इस कदर कि आवाज़ के स्थायी श्रोताओं को लगातार ये जानने की इच्छा रही कि अपने संगीत और आवाज़ से उन पर जादू करने वाले रफ़ीक शेख का गीत कब आ रहा है. तो दोस्तों आज इंतज़ार खत्म हुआ. आ गए हैं रफ़ीक शेख अपनी पहली प्रवष्टि के साथ आवाज़ के इस महा आयोजन में. साथ में लाये हैं एक नए ग़ज़लकार अजीम नवाज़ राही को, रिकॉर्डिंग आदि में मदद रहा अविनाश जी का जो रफ़ीक जी के मित्र हैं. दोस्तों हमें यकीन है रफ़ीक शेख की जादू भरी आवाज़ में इस खूबसूरत ग़ज़ल का जादू आप पर ऐसा चलेगा कि आप कई हफ्तों, महीनों तक इसे गुनगुनाने पर मजबूर हो जायेंगे. तो मुलाहजा फरमायें युग्म की नयी पेशकश,ये ताज़ा तरीन ग़ज़ल - " सच बोलता है ....." ग़ज़ल को सुनने के लिए नीचे के प्लेयर पर क्लिक करें - After creating a lot of buzz by his rendition of Ahmed Faraz sahab's ghazals (as a musical tribute to the legend) singer/composer Ra

बेकरार कर के हमें यूँ न जाइए, आप को हमारी कसम लौट आइए

हेमंत कुमार की 19वीं बरसी पर अनिता कुमार की ख़ास पेशकश आज 26 सितम्बर, हेमंत दा की 19वीं पुण्यतिथि। बचपन की यादों के झरोंखों से उनकी सुरीली मदमाती आवाज जहन में आ-आ कर दस्तक दे रही है। पचासवें दशक के किस बच्चे ने 'गंगा-जमुना' फ़िल्म का उनका गाया ये गीत कभी न कभी न गाया होगा! "इंसाफ़ की डगर पे बच्चों दिखाओ चल के, ये देश है तुम्हारा"। हेमंत कुमार हेमंत कुमार मुखोपाध्य जिन्हें हम हेमंत दा के नाम से जानते हैं, 16 जून 1920 को वाराणसी के साधारण से परिवार में जन्में लेकिन बचपन में ही बंगाल में स्थानातरित हो लिए। उनके बड़े भाई कहानीकार थे, माता पिता ने सपना देखा कि कम से कम हेमंत इंजीनियर बनेगें। लेकिन नियति ने तो उनकी तकदीर में कुछ और ही लिखा था। औजारों की टंकार उनके कवि हृदय को कहां बाँध पाती, कॉलेज में आते न आते वो समझ गये थे कि संगीत ही उनकी नियति है और महज तेरह वर्ष की आयु में 1933 में ऑल इंडिया रेडियो के लिए अपना पहला गीत गा कर उन्होंने गीतों की दुनिया में अपना पहला कदम रखा और पहला फ़िल्मी गीत गाया एक बंगाली फ़िल्म 'निमयी संयास' के लिए। 1943 में आये बंग अकाल ने

लता मंगेशकर- संगीत की देवी

लता मंगेशकर का जीवन परिचय लता का परिवार लता मंगेशकर का जन्म इंदौर, मध्यप्रदेश में सितम्बर २८, १९२९ को हुआ। लता मंगेशकर का नाम विश्व के सबसे जानेमाने लोगों में आता है। इनका जन्म संगीत से जुड़े परिवार में हुआ। इनके पिता प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक थे व उनकी एक अपनी थियेटर कम्पनी भी थी। उन्होंने ग्वालियर से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। दीनानाथ जी ने लता को तब से संगीत सिखाना शुरू किया, जब वे पाँच साल की थी। उनके साथ उनकी बहनें आशा, ऊषा और मीना भी सीखा करतीं थीं। लता अमान अली खान, साहिब और बाद में अमानत खान के साथ भी पढ़ीं। लता मंगेशकर हमेशा से ही ईश्वर के द्वारा दी गई सुरीली आवाज़, जानदार अभिव्यक्ति व बात को बहुत जल्द समझ लेने वाली अविश्वसनीय क्षमता का उदाहरण रहीं हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण उनकी इस प्रतिभा को बहुत जल्द ही पहचान मिल गई थी। जब १९४२ में उनके पिता की मृत्यु हुई तब वे परिवार में सबसे बड़ी थीं इसलिये परिवार की जिम्मेदारी उन्हें के ऊपर आ गई। अपने परिवार के भरण पोषण के लिये उन्होंने १९४२ से १९४८ के बीच हिन्दी व मराठी में करीबन ८ फिल्मों में काम किया। उनके पार्श्व गायन की शुरुआत १९४२ की

बहा के लहू इंसां का मिलेगी क्या...तुमको वो जन्नत...

आतंकवाद के खिलाफ आवाज़ की 'ऑडियो-वीडियो' पहल सड़कों पर पड़े लोथड़ों में ढूँढ रहा फिरदौस है जो, सौ दस्त, हज़ार बाजुओं पे लिख गया अजनबी धौंस है जो, आँखों की काँच कौड़ियों में भर गया लिपलिपा रोष है जो, ईमां तजकर, रज कर, सज कर निकला लिए मुर्दा जोश है जो, बेहोश है वो!!!! ओ गाफ़िल! जान इंसान है क्या, अल्लाह है क्या, भगवान है क्या, कहते मुसल्लम ईमान किसे, पाक दीन इस्लाम किसे, दोजख है कहाँ, जन्नत है कहाँ, उल्फत है क्या, नफ़रत है कहाँ, कहें कुफ़्र किसे, काफ़िर है कौन, रब के मनसब हाज़िर है कौन, गीता, कुरान का मूल है क्या, तू जान कि तेरी भूल है क्या!!!! सबसे मीठी जुबान है जो, है तेरी, तू अंजान है क्यों? उसमें तू रचे इंतकाम है क्यों? पल शांत बैठ, यह सोच ज़रा, लहू लेकर भी तेरा दिल न भरा, सुन सन्नाटे की सरगोशी, अब तो जग, तज दे बेहोशी, अब तो जग, तज दे बेहोशी। -विश्व दीपक 'तन्हा' ऊपर लिखी 'तन्हा' की कविता से स्पष्ट हो गया होगा कि हम क्या संदेश लेकर हाज़िर हुए हैं। आज दुनिया में हर जगह आतंक का साया है। कोई रोज़ी-रोटी कमाकर नहीं लौट पा रहा है, तो कोई दवा लेकर नहीं वापिस हो पा रह

जितनी सुरीली हैं ग़ालिब की ग़ज़लें; गाने में दोगुना तप मांगती हैं

आज एक बार फ़िर आवाज़ पर हमारे प्रिय संगीत समीक्षक और जानेमाने चिट्ठाकार संजय पटेल तशरीफ़ लाए हैं और बता रहे हैं लता मंगेशकर की गायकी की कुछ अदभुत ख़ासियतें.हमें उम्मीद है कि इस पोस्ट को पढ़कर संगीत विषय से जुड़े विद्यार्थी,गायक,संगीतकार बहुत लाभान्वित होंगे.आशा है आवाज़ पर जारी सुगम समारोह में सुनी और सराही जा रही ग़ालिब की ग़ज़लों का आनंद बढ़ाने वाली होगी संजय भाई की ये समीक्षा.मुलाहिज़ा फ़रमाएँ...... एक बात को तो साफ़ कर ही लेना चाहिये कि लता मंगेशकर अपने समय की सबसे समर्थ गायिका हैं.मीरा के भजन,डोगरी,मराठी,गुजराती,और दीगर कई भाषाओं के लोकगीत,भावगीत,भक्तिगीत और सुगम संगीत गाती इस जीवित किंवदंती से रूबरू होना यानी अपने आपको एक ऐसे सुखद संसार में ले जाना है जहाँ सुरों की नियामते हैं और संगीत से उपजने वाले कुछ दिव्य मंत्र हैं जो हमारे मानस रोगों और कलुष को धो डालने के लिये इस सृष्टि में प्रकट हुआ हैं. लता मंगेशकर के बारे में गुलज़ार कहते हैं कि लताजी के बारे में कोई क्या कह सकता है.उनके बारे में कोई बात करने की ज़रूरत ही नहीं है बल्कि उनको एकाग्र होकर सुनने की ज़रूरत है. उनके गायन के ब

सुनिए 'मुगलों ने सल्तनत बख़्श दी'

भगवती चरण वर्मा की प्रसिद्ध कहानी का पॉडकास्ट आज हम लेकर आए हैं भगवती चरण वर्मा जी की एक सुंदर कहानी 'मुग़लों ने सल्तनत बख़्श दी'। यह एक व्यंग्य हैं, जिसमें लेखक ने अंग्रेजों द्वारा भारत पर धीरे -धीरे कब्जा कर लेने की घटना को बड़े ही रोचक रूप मैं प्रस्तुत किया है। इसमें तत्कालीन मुग़ल साम्राज्य मैं व्याप्त राग, रंग और अकर्मण्यता पर करारी चोट की है। सुनिए शोभा महेन्द्रू की आवाज़ में, और आनंद लीजिये इस व्यंग्य कथा का जिसको सुना रहे हैं इस कथा के मुख्य पात्र हीरो जी। नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।) यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें) VBR MP3 64Kbps MP3 Ogg Vorbis आज भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं, तो यहाँ देखें। #First Story, : Mughalon Ne Saltanat Bakhsh Dee, Bhagvati Charan Varma/Hi

एक गीत मेरी जीवन संगिनी के लिए - जे एम सोरेन

किशोर कुमार के जबरदस्त फैन जे एम सोरेन ख़ुद को एक गायक पहले मानते हैं, उनके अपने शब्दों में अगर कहें तो संगीत उनका पहला प्यार, पहला जनून है और संगीत ही उनकी आत्मा उनकी सांसें और जीवन का ओक्सिजेन है. सोरेन गीटार सिखाते हैं साथ ही सीखना भी जारी है. आज कल CAC कोच्ची से पाश्चात्य संगीत में ग्रेड परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं. फ़िल्म जगत में बतौर गायक / संगीतकार अपनी पहचान बनाने के इच्छुक सोरेन आर डी बर्मन उर्फ़ पंचम को अपना गुरु मानते हैं. हमने की ओ मुनिया के रचेता जे एम् सोरेन से कुछ ख़ास बातें - हिंद युग्म - सम्मोहन और ओ मुनिया दोनों बिल्कुल अलग अलग फ्लेवर के गीत है सोरेन, क्या ये एक सोची समझी कोशिश थी मुक्तलिफ़ अंदाज़ में ख़ुद को परोसने की...? सोरेन -नहीं ऐसी कोई बात नहीं है की ये एक सोची समझी कोशिश थी. हाँ ये बात ज़रूर है की सम्मोहन और मुनिया दोनों अलग अलग किस्म के गाने हैं. चाहें जिस फ्लेवर के गाने हों ये दोनों अपने को प्रिय हैं. क्योंकि गाने की डिमांड थी इसलिए गाना ऐसा बनाया मैंने. पहले वैसे मैंने किसी डांस गीत पर उतना ज़्यादा काम नहीं किया था. हाँ इच्छा ज़रूर थी और मैं सोचता हूँ कि म

जिंदगी से यही गिला है मुझे...

भारी फरमाईश पर एक बार फ़िर रफ़ीक शेख़ लेकर आए हैं अहमद फ़राज़ साहब का कलाम पिछले सप्ताह हमने सदी के महान शायर अहमद फ़राज़ साहब को एक संगीतमय श्रद्धाजंली दी,जब हमारे संगीतकार मित्र रफ़ीक शेख उनकी एक ग़ज़ल को स्वरबद्ध कर अपनी आवाज़ में पेश किया. इस ग़ज़ल को मिली आपार सफलता और हमें प्राप्त हुए ढ़ेरों मेल और स्क्रैप में की गयी फरमाईशों से प्रेरित होकर रफीक़ शेख ने फ़राज़ साहब की एक और शानदार ग़ज़ल को अपनी आवाज़ में गाकर हमें भेजा है. हमें यकीन है है उनका ये प्रयास उनके पिछले प्रयास से भी अधिक हमारे श्रोताओं को पसंद आएगा. अपनी बेशकीमती टिप्पणियों से इस नवोदित ग़ज़ल गायक को अपना प्रोत्साहन दें. ग़ज़ल - जिंदगी से यही... ग़ज़लकार - अहमद फ़राज़. संगीत और गायन - रफ़ीक शेख ghazal - zindagi se yahi gila hai mujhe... shayar / poet - ahmed faraz singer and composer - rafique sheikh जिदगी से यही गिला है मुझे, तू बहुत देर से मिला है मुझे. तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल, हार जाने का हौंसला है मुझे. दिल धड़कता नही, टपकता है, कल जो ख्वाहिश थी आबला है मुझे. हमसफ़र चाहिए हुजूम नही, एक मुसाफिर भी काफिला है मु

सुनिए 'हाहाकार' और 'बालिका से वधू'

सूखी रोटी खायेगा जब कृषक खेत में धरकर हल, तब दूँगी मैं तृप्ति उसे बनकर लोटे का गंगाजल। उसके तन का दिव्य स्वेदकण बनकर गिरती जाऊँगी, और खेत में उन्हीं कणों से मैं मोती उपजाऊँगी। फूलों की क्या बात? बाँस की हरियाली पर मरता हूँ। अरी दूब, तेरे चलते, जगती का आदर करता हूँ। इच्छा है, मैं बार-बार कवि का जीवन लेकर आऊँ, अपनी प्रतिभा के प्रदी से जग की अमा मिटा जाऊँ।- विश्चछवि ('रेणुका' काव्य-संग्रह से) उपर्युक्त पंक्तियाँ पढ़कर किस कवि का नाम आपके दिमाग में आता है? जी हाँ, जिसने खुद जैसे जीव की कल्पना की जीभ में भी धार होना स्वीकारा था। माना था कि कवि के केवल विचार ही बाण नहीं होते वरन जिसके स्वप्न के हाथ भी तलवार से लैश होते हैं। आज यानी २३ सितम्बर २००८ को पूरा राष्ट्र या यूँ कह लें दुनिया के हर कोने में हिन्दी प्रेमी उसी राष्ट्रकवि रामधारी दिनकर की १००वीं जयंती मना रहे हैं। आधुनिक हिन्दी काव्य राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना का शंखनाद करने वाले युग-चारण नाम से विख्यात, "दिनकर" का जन्म २३ सितम्बर १९०८ ई. को बिहार के मुंगेर ज़िले के सिमरिया घाट नामक गाँव में हुआ था. इन की शिक्षा मोकाम

ख़ुसरो निज़ाम से बात जो लागी

भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित सूफ़ी संगीत की विधाओं में सबसे लोकप्रिय है क़व्वाली. इस विधा के जनक के रूप में पिछली कड़ी में अमीर ख़ुसरो का ज़िक़्र भर हुआ था. उत्तर प्रदेश के एटा जिले के पटियाली गांव में १२५३ में जन्मे अमीर खुसरो का असली नाम अबुल हसन यमीनुद्दीन मुहम्मद था. कविता और संगीत के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धियां अपने नाम कर चुके अमीर खुसरो को तत्कालीन खिलजी बादशाह जलालुद्दीन फ़ीरोज़ खिलजी ने को तूती-ए-हिन्द का ख़िताब अता फ़रमाया था. 'अमीर' का बहुत सम्मानित माना जाने वाला ख़िताब भी उन्हें खिलजी बादशाह ने ही दिया था. भीषणतम बदलावों, युद्धों और धार्मिक संकीर्णता का दंश झेल रहे तेरहवीं-चौदहवीं सदी के भारतीय समाज की मूलभूत सांस्कृतिक एकता को बचाए रखने और फैलाए जाने का महत्वपूर्ण कार्य करने में अमीर खुसरो ने साहित्य और संगीत को अपना माध्यम बनाया. तब तक भारतीय उपमहाद्वीप में सूफ़ीवाद अपनी जड़ें जमा चुका था और उसे इस विविधतापूर्ण इलाक़े के हिसाब से ढाले जाने के लिये जिस एक महाप्रतिभा की दरकार थी, वह अमीर ख़ुसरो के रूप में इस धरती पर आई. सूफ़ीवाद के मूल सिद्धान्त ने अमीर खुसरो को भी गहरे छ

पंकज सुबीर की कहानी "शायद जोशी" में लता मंगेशकर

(ये आलेख नहीं है बल्कि मेरी एक कहानी ''शायद जोशी'' का अंश है ये कहानी मेरे कहानी संग्रह ''ईस्‍ट इंडिया कम्‍पनी'' की संभावित कहानियों में से एक है ।) - पंकज सुबीर अचानक उसे याद आया कल रात को रेडियो पर सुना लता मंगेशकर का फिल्म शंकर हुसैन का वो गाना 'अपने आप रातों में' । उसे नहीं पता था कि शंकर हुसैन में एक और इतना बढ़िया गाना भी है वरना अभी तक तो वो 'आप यूं फासलों से गुज़रते रहे' पर ही फिदा था । हां क्या तो भी शुरूआत थी उस गाने की 'अपने आप रातों में चिलमनें सरकती हैं, चौंकते हैं दरवाज़े सीढ़ियाँ धड़कती हैं' उफ्फ क्या शब्द हैं, और कितनी खूबसूरती से गाया है लता मंगेशकर ने । 'अपने आप रातों में चिलमनें सरकती हैं चौंकते हैं दरवाज़े सीढियां धड़कती हैं अपने आप.....' और उस पर खैयाम साहब का संगीत, कोई भारी संगीत नहीं, हलके हल्‍के बजते हुए साज और बस मध्यम मध्यम स्वर में गीत । और उसके बाद 'अपने आप' शब्दों को दोहराते समय 'आ' और 'प' के बीच में लता जी का लंबा सा आलाप उफ्फ जानलेवा ही तो है । एक तो फिल्म का नाम ही कितना