Skip to main content

पॉडकास्ट कवि सम्मेलन - दिसम्बर २००८

Doctor Mridul Kirti - image courtesy: www.mridulkirti.com
डॉक्टर मृदुल कीर्ति

कविता प्रेमी श्रोताओं के लिए प्रत्येक मास के अन्तिम रविवार का अर्थ है पॉडकास्ट कवि सम्मेलन। देखते ही देखते पूरा वर्ष कब गुज़र गया, पता ही न लगा. श्रोताओं के प्रेम के बीच हमें यह भी पता न लगा कि आज का कवि सम्मलेन वर्ष २००८ का अन्तिम कवि सम्मलेन है। आवाज़ के सभी श्रोताओं और पाठकों को नव वर्ष की शुभ-कामनाओं के साथ प्रस्तुत है दिसम्बर २००८ का पॉडकास्ट कवि सम्मलेन। इस बार भी इस ऑनलाइन आयोजन का संयोजन किया है हैरिसबर्ग, अमेरिका से डॉक्टर मृदुल कीर्ति ने।

आवाज़ की ओर से हर महीने प्रस्तुत किए जा रहे इस प्रयास में गहरी दिलचस्पी, सहयोग और आपके प्रेम के लिए हम आपके आभारी हैं। हमें अत्यधिक संख्या में कवितायें प्राप्त हुईं और हमें आशा है कि आप अपना सहयोग इसी प्रकार बनाए रखेंगे। इस बार भी हम बहुत सी कविताओं को उनकी उत्कृष्टता के बावजूद इस माह के कार्यक्रम में शामिल नहीं कर सके हैं और इसके लिए क्षमाप्रार्थी है। कुछ कवितायें तो बहुत ही अच्छी थीं मगर वे हमें अन्तिम तिथि के बाद तब प्राप्त हुईं जब हम कार्यक्रम को अन्तिम रूप दे रहे थे। उनके छूट जाने से हमें भी दुःख हुआ है इसलिए हम एक बार फ़िर आपसे अनुरोध करेंगे कि कवितायें भेजते समय कृपया समय-सीमा का ध्यान रखें और यह भी ध्यान रखें कि वे १२८ kbps स्टीरेओ mp3 फॉर्मेट में हों और पृष्ठभूमि में कोई संगीत न हो। ऑडियो फाइल के साथ अपना पूरा नाम, नगर और संक्षिप्त परिचय भी भेजना न भूलें क्योंकि हमारे कार्यक्रम के श्रोता अच्छे कवियों के बारे में जानने को उत्सुक रहते हैं।

प्रबुद्ध श्रोताओं की मांग पर सितम्बर २००८ के सम्मेलन से हमने एक नया खंड शुरू किया है जिसमें हम हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य कवियों का संक्षिप्त परिचय और उनकी एक रचना को आप तक लाने का प्रयास करते हैं। इसी प्रयास के अंतर्गत इस बार हम सुना रहे हैं एक ऐसे कवि को जिन्हें कई मायनों में हिन्दी का सर्वमान्य कवि कहा जा सकता है। अपने जन्म के ४७६ वर्ष बाद भी इनकी रचनाएं न सिर्फ़ हिन्दी-भाषियों में बल्कि समस्त विश्व में पढी और गाई जाती हैं। उनकी सुमधुर रचनाओं का आनंद उठाईये।

नीचे के प्लेयर से सुनें:


यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें)
VBR MP364Kbps MP3Ogg Vorbis

भूल सुधार: पारुल जी द्वारा गाया गया गीत "भोर भये तकते पिय का पथ ,आये ये ना मेरे प्रियतम, आली" दरअसल श्रीमती लावण्या शाह द्वारा रचित है. लावण्या जी का नाम छूट जाने के लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं.
पिछले सम्मेलनों की सफलता के बाद हमने आपकी बढ़ी हुई अपेक्षाओं को ध्यान में रखा है। हमें आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि इस बार का सम्मलेन आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा और आपका सहयोग हमें इसी जोरशोर से मिलता रहेगा। यदि आप हमारे आने वाले पॉडकास्ट कवि सम्मलेन में भाग लेना चाहते हैं तो अपनी आवाज़ में अपनी कविता/कविताएँ रिकॉर्ड करके podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें। कवितायें भेजते समय कृपया ध्यान रखें कि वे १२८ kbps स्टीरेओ mp3 फॉर्मेट में हों और पृष्ठभूमि में कोई संगीत न हो। आपकी ऑनलाइन न रहने की स्थिति में भी हम आपकी आवाज़ का समुचित इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे। पॉडकास्ट कवि सम्मेलन के नववर्ष के पहले अंक का प्रसारण २४ जनवरी २००९ को किया जायेगा और इसमें भाग लेने के लिए रिकॉर्डिंग भेजने की अन्तिम तिथि है १७ जनवरी २००९

हम सभी कवियों से यह अनुरोध करते हैं कि अपनी आवाज़ में अपनी कविता/कविताएँ रिकॉर्ड करके podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें। आपकी ऑनलाइन न रहने की स्थिति में भी हम आपकी आवाज़ का समुचित इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे। रिकॉर्डिंग करना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। हिन्द-युग्म के नियंत्रक शैलेश भारतवासी ने इसी बावत एक पोस्ट लिखी है, उसकी मदद से आप सहज ही रिकॉर्डिंग कर सकेंगे। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।

# Podcast Kavi Sammelan. Part 6. Month: December 2008.

कॉपीराइट सूचना: हिन्द-युग्म और उसके सभी सह-संस्थानों पर प्रकाशित और प्रसारित रचनाओं, सामग्रियों पर रचनाकार और हिन्द-युग्म का सर्वाधिकार सुरक्षित है।

Comments

मृदुल जी, अनुराग भाई, पारुल जी द्वारा गाया गया गीत "भोर भये तकते पिय का पथ ,आये ये ना मेरे प्रियतम, आली " मेरी लिखी हुई कविता है - मुझे बहुत खुशी है कि जैसा आपने कहा है, पारुल सुकँठी हैँ और माँ सरस्वती का सँगीत प्रसाद उन्हेँ मिला हुआ है - भाई सत्यनारायण "कमलजी" का गीत अनुराग भाई ने बहुत भाव पूर्ण रीत से सुनाया और अनुराग भाई की स्वयम की कविता भी सुँदर लगी - और डा. मृदुल जी का सँचालन तो हमेशा की भाँति सधी हुई शैली से, विद्वत्ता पूण अभी आधा ही सुन पाई हूँ और सुँदर लगा है - फिर आकर टीप्पणी करुँगी दूसरे सभी कवि साथियोँ को सुन कर -
तब तक आप भी आनँद लीजिये और काव्य सरिता मेँ डूब कर, स्वर्गीय सुख पाइये ~
स स्नेह,
- लावण्या
अब पूरा कवि सम्मेलन सुन लिया और स्व. मुकेश जी के स्वर मेँ राम चरित मानस की दोहावली सुनकर अभिभूत हूँ -
मुझे याद है,
पूज्य पापाजी पँडित नरेन्द्र शर्मा जी ने मुकेश जी के साथ इसे तैयार करवाया था -
आज वे दोनोँ सशरीर हमारे साथ नहीँ रहे :-(
अन्य सभी के प्रयास बहुत ज्यादा पसँद आये - डा.मृदुलजी , हिन्दी युग्म से जुडे हरेक श्रोतागणोँ को तथा अनुराग भाई तथा पारुल को पुन: बधाई तथा २००९ के आगामी नव वर्ष की शुभकामनाएँ
स स्नेह
- लावण्या
मैंने भी कुछ देर पहले पूरा कार्यक्रम सुना, बहुत अच्छा लगा. लावण्या जी, "भोर भये तकते पिय का पथ..." के बारे में जानकारी देने के लिए आपका आभार. चूक के लिए क्षमाप्रार्थी हैं! मगर सच कहूं तो कविता बहुत ही अच्छी लगी. कार्यक्रम के आरम्भ में समय के बारे में मृदुल जी की भुमिका से लेकर मुकेश के स्वर में गोस्वामी तुलसीदास की रचनाओं तक सम्पूर्ण कार्यक्रम ने पूरी तरह बांधकर रखा. बधाई!
Anonymous said…
आत्‍मीया मृदुल जी
दिसम्‍बर माह के इस भावुक कवि सम्‍मेलन के लिए आपको शुभकामनाएं। अनुराग जी की कविता "मर्म" की दो पंक्तियां - यदि सार्थक करते दिन को तो रातों को यूं रोते न, बह‍ुत कुछ कह गयी। सत्‍यनारायण जी की कविता हांलाकि एक प्रसिद्ध गीत गुबार देखती रही पर आधारित था लेकिन फिर भी ऑंखों को गीली करने वाला था। कवि सम्‍मेलन का प्रारम्‍भ जहॉं आपकी आवाज और आपके चिंतन के साथ था, जिसमें तत्‍काल दर्शी शब्‍द से त्रिकाल दर्शी शब्‍द को कुछ कहे बिना ही परिभाषित कर दिया, तो सम्‍मेलन का समापन मंगल भवन अमंगल हारी से हुआ जो हमें नव वर्ष के लिए आशीर्वाद दे गया। कुल मिलाकर आज का कवि सम्‍मेलन हमेशा की तरह आप के नाम रहा, वहीं अनुराग जी ने अपनी चन्‍द पंक्तियों से मन को जीत लिया। आप सभी को मेरी शुभकामनाएं।
अजित गुप्‍ता
उदयपुर
ajit gupta said…
आत्‍मीया मृदुल जी
दिसम्‍बर माह के इस भावुक कवि सम्‍मेलन के लिए आपको शुभकामनाएं। अनुराग जी की कविता "मर्म" की दो पंक्तियां - यदि सार्थक करते दिन को तो रातों को यूं रोते न, बह‍ुत कुछ कह गयी। सत्‍यनारायण जी की कविता हांलाकि एक प्रसिद्ध गीत गुबार देखती रही पर आधारित था लेकिन फिर भी ऑंखों को गीली करने वाला था। कवि सम्‍मेलन का प्रारम्‍भ जहॉं आपकी आवाज और आपके चिंतन के साथ था, जिसमें तत्‍काल दर्शी शब्‍द से त्रिकाल दर्शी शब्‍द को कुछ कहे बिना ही परिभाषित कर दिया, तो सम्‍मेलन का समापन मंगल भवन अमंगल हारी से हुआ जो हमें नव वर्ष के लिए आशीर्वाद दे गया। कुल मिलाकर आज का कवि सम्‍मेलन हमेशा की तरह आप के नाम रहा, वहीं अनुराग जी ने अपनी चन्‍द पंक्तियों से मन को जीत लिया। आप सभी को मेरी शुभकामनाएं।
अजित गुप्‍ता
उदयपुर
shanno said…
हर बार का कवि सम्मलेन बेहतर होता जा रहा है. और इस बार का तो पिछली बार से भी बहुत सुंदर रहा. मृदुल जी ने अपने सुंदर शब्द-चयन और अपनी कविता से अपनी मृदुल आवाज़ में तो सारे सम्मलेन की शोभा तो खूब बढाई ही हमेशा की तरह अपनी प्रस्तुति से लेकिन लावण्या जी की '' भोर भये..'' कविता पारुल की प्यारी आवाज़ में, अनुराग जी की कवितायें उनकी प्यारी आवाज़ में, शोभा जी की कविता के भाव, और फिर अन्य सभी की कवितातायें भी मन के अंतःकरण को बहुत स्पर्श कर गईं हैं. कुल मिला के यही कह सकती हूँ कि इस कवि सम्मलेन की बहार की खुशबू हमेशा महसूस करूंगी. और सभी कविजनों व सभी श्रोताओं को मेरी तरफ़ से नवबर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं !
शन्नो
मृदुल जी पता नही मेरी टिपण्णी वहां क्यों नही आई, खैर मेरे हिसाब से ये एपिसोड अब तक का सबसे बढ़िया एपिसोड रहा, कविताओं में बहुत संजीदगी थी, बीच में शन्नो जी ने अच्छा भरा हास्य का रंग भी, अनुराग जी अंत में आकर बाज़ी मार गए, एक ग़मगीन से आलम से शुरू हुई दास्ताँ एक उम्मीद पर छोड़ती है, आपने एक एक सूत्र को बेहद सफाई से एक दूजे में पिरोया है....नए साल पर हम सब और बेहतर करें यहाँ कामना है

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की